उत्तर प्रदेश में 2012 के बाद से सांप्रदायिक तनाव, लड़ाईझगडे़ और दंगों का जो सिलसिला चल रहा है वह 2 साल के बाद भी रुकने का नाम नहीं ले रहा. प्रदेश में 2012 में सांप्रदायिक तनाव की 134 घटनाएं घटी थीं. 2013 में 247 घटनाओं में 77 लोग मरे और 360 लोग घायल हुए. 2014 में घटी अब तक 56 घटनाओं में 15 लोग मारे गए.
2013 में पूरे देश में कुल 823 घटनाएं घटीं. इन में 133 लोग मरे और 2269 लोग घायल हुए. उन में सब से अधिक घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटीं. उस साल देश का सब से बड़ा दंगा उत्तर प्रदेश के मुजफ्फनगर जिले में हुआ. परेशानी की बात यह है कि बहुत सारी कोशिशों के बाद भी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव खत्म नहीं हो पा रहा है. छोटीछोटी घटनाएं कब दंगे का रूप ले लेती हैं, पता ही नहीं चलता है. इस का सब से अधिक प्रभाव प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में पड़ रहा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश सब से संपन्न व खुशहाल क्षेत्र माना जाता था. दलित, पिछड़ों और किसानों के राजनीतिक समीकरण ने देश और प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने का काम किया था. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत जैसे नेता इसी क्षेत्र से आंदोलन शुरू कर के देश के पटल पर छा गए थे. यहां अलगअलग धर्म और जातियों के लोग मिलजुल कर खेतों में काम करते थे. इस वजह से यह देश के सब से संपन्न खेती वाले इलाकों में आता था. अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पहचान बदल चुकी है. यहां सांप्रदायिक गोलबंदी शुरू हो चुकी है. ऐसे में राजनीतिक दलों को भी मजा आ रहा है. हर दल दूसरे दल पर सांप्रदायिकता के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगा रहा है. जरूरत इस बात की है कि जनता खुद ऐसे तत्त्वों को सबक सिखाने का काम करे.
केंद्रीय खुफिया एजेंसी आईबी ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश पुलिस को चौकन्ना रहने के लिए कहा है. आईबी ने उत्तर प्रदेश को भेजी अपनी जानकारी में कहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धर्म परिवर्तन, महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों और अपहरण को ले कर घट रही घटनाओं को शरारती तत्त्व सांप्रदायिक रंग दे सकते हैं. आईबी ने पुलिस को ऐसे मामलों से सही तरीके से निबटने और इलाके में पुलिस बल बढ़ाने की बात कही है. आईबी ने यह जानकारी उस समय भेजी है जब मेरठ के खरखौंदा इलाके में एक युवती के साथ बलात्कार, अपहरण और धर्मपरिवर्तन का मामला गरम है.
खरखौंदा का धर्मपरिवर्तन कांड
मेरठ के खरखौंदा में रहने वाली लड़की गरीब परिवार की थी. वह पढ़ने में होशियार थी. घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए उस ने मसजिद में चलने वाले स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया. यहीं उस के संबंध कलीम नामक युवक से बन गए जिस से उस को गर्भधारण हो गया. परेशानी की बात यह थी कि गर्भ बच्चेदानी के बजाय फैलोपियन ट्यूब में ठहर गया जिस को मैडिकल की भाषा में एक्टोपिक प्रैग्नैंसी कहते हैं. एक्टोपिक प्रैग्नैंसी में गर्भ ठहरने से पेट में दर्द होने लगता है. गर्भ के बढ़ने से फैलोपियन ट्यूब के फटने का खतरा रहता है. जब इस युवती को पेट में दर्द शुरू हुआ तो कलीम उसे ले कर लाला लाजपत राय मैमोरियल अस्पताल, मेरठ गया. अस्पताल में उस ने महिला डाक्टर सुनीता को परचा और अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट दिखाई. इस के बाद 23 जुलाई को लड़की का औपरेशन किया गया. 29 जुलाई को लड़की अपने घर वापस आई. इस के बाद 31 जुलाई को उस के अपहरण और धर्मपरिवर्तन की बात सामने आई.
इस बात को ले कर पुलिस के अलगअलग बयान आ रहे हैं जिस के कारण मामला उलझ गया है. मेरठ ही नहीं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दूसरे शहरों में भी गांव की गरीब लड़कियों को बहलाफुसला कर फंसाने के तमाम मामले बिखरे पड़े हैं. ऐसे में इस तरह की अफवाहों को रंग देने में समय नहीं लगता. पुलिस अगर समय पर सही ढंग से बिना किसी भेदभाव के छानबीन करे और दोषियों को सजा दे तो ऐसी अफवाहों को रोका जा सकता है.
मेरठ की ही तरह सहारनपुर में गुरुद्वारा और मसजिद की जमीन के विवाद में भड़के दंगे ने सहारनपुर की फिजा को नुकसान पहुंचाने का काम किया है.
कांठ में लाउडस्पीकर की गांठ
धार्मिक झगड़ों की कोई बड़ी वजह नहीं होती. उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कांठ इलाके में आने वाले गांव अकबरपुर चैदरी के नयागांव मजरा में भी यही हुआ. यह गांव पीस पार्टी के विधायक अनीसुर्रहमान के चुनावी क्षेत्र में है. वे समाजवादी पार्टी के भी करीबी माने जाते हैं. यहां हिंदू और मुसलिम मिलीजुली आबादी के रूप में रहते हैं. हिंदुओं में बड़ी संख्या जाटव जाति के लोगों की है जो दलित वर्ग से आते हैं. यहां के शिवमंदिर में शिवरात्रि के त्यौहार पर लाउडस्पीकर लगा कर पूजा की जाती थी. 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं ने मंदिर को लाउडस्पीकर दान में दिया़ इस के बाद रोज पूजा के समय लाउडस्पीकर बजने लगा. इस बात का विरोध दूसरे वर्ग के लोगों ने किया. उन का तर्क था कि मसजिद में होने वाली अजान के समय मंदिर का लाउडस्पीकर बजने से अजान में खलल पड़ता है.
इस बात को ले कर दोनों पक्षों में तनाव बढ़ गया. बीच का रास्ता यह तय हुआ कि जब तक रमजान का महीना चल रहा है, मंदिर पर लाउडस्पीकर न बजाया जाए. 3 अगस्त के बाद लाउडस्पीकर फिर से लगा लिया जाए. कु छ लोग इस बात को ले कर सहमत थे तो कुछ लोग इस के विरोध में थे. उन का मानना था कि जब एक पक्ष लाउडस्पीकर लगा सकता है तो दूसरा क्यों नहीं? मामला नहीं सुलझा तो 20 जून को थाना कांठ में सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के लिए अपराध संख्या 84/14 के अधीन धारा 153, 120 बी के तहत 10 लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम कर दिया गया. जिला प्रशासन ने मंदिर से लाउडस्पीकर हटाने के लिए पुलिस बल का प्रयोग किया. विरोध में वहां के भाजपा सांसद ने 4 जुलाई को महापंचायत बुला ली.
प्रशासन ने धारा 144 लगा कर जब महापंचायत को रोकने का काम किया तो भाजपा के 3 सांसद नेपाल सिंह, सतपाल सैनी और भंवर सिंह तंवर व विधायक संगीत सोम विरोध में उतर आए. बाद में हरिद्वारमुरादाबाद रेल मार्ग जाम कर रहे लोगों ने पुलिस और प्रशासन के लोगों पर पथराव शुरू कर दिया जिस में कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. पथराव करने आए लोगों ने अपने चेहरे पर कपड़ा बांध रखा था जिस से उन को पहचाना न जा सके. झगड़े में हुई पत्थरबाजी में मुरादाबाद के डीएम चंद्रकांत को गंभीर चोट लगी. उन की एक आंख की रोशनी चली गई.
लापरवा प्रशासन
मुराबादबाद के एसएसपी धर्मवीर सिंह कहते हैं, ‘‘भाजपा ने ठाकुरद्वारा विधान- सभा सीट पर होने वाले उपचुनावों को सामने रख कर तनाव फैलाने का काम किया है.’’ एसएसपी के इस बयान का भाजपा ने खुलेरूप में विरोध किया. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई कहते हैं, ‘‘एसएसपी का यह बयान समाजवादी पार्टी के नेता सा बयान है. उन का काम जिले में तनाव को रोकना था. वे एकतरफा कार्यवाही कर रहे हैं, जिस के चलते क्षेत्र के लोग सरकार और प्रशासन दोनों का विरोध कर रहे हैं.’’ लोकसभा चुनावों में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में सफलता मिली उस से एक संदेश यह चला गया कि सांप्रदायिक तनाव और झगड़ों के चलते यह जीत मिली है. ऐसे में कुछ नेता 2017 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए ऐसे तनाव को बढ़ाने में लगे हैं.
दरअसल, घटना कहीं भी घट सकती है, तनाव हो सकता है लेकिन दंगा तभी भड़कता है जब उस में राजनीति लिप्त कर दी जाती है, खासकर वोट की राजनीति. वहीं, कुछ चेहरे संप्रदाय विशेष का मसीहा बनने की फिराक में तनाव को दंगे का रूप देने से बाज नहीं आते. समय रहते अगर दंगों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो सामाजिक विद्रोह की चिंगारी सुलगती रहेगी.