भारतीय वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष अनुसंधान में इतनी उन्नति कर ली है कि आज अमेरिका जैसा देश इस का लोहा मानता है. वहीं, दूसरी तरफ देश का समाज अंतरिक्ष संबंधी अंधविश्वासों में उलझ कर अपना एक पैर गोबर में ही रखना चाहता है. हमारा समाज सदियों से अंधविश्वासों की बेडि़यों में जकड़ा है. इस समाज को पथभ्रष्ट करने वाली धार्मिक पोथियों में ‘गरुड़ पुराण’ का नाम सब से ऊपर है.

गरुड़ पुराण एक कर्मकांड शास्त्र है जिस में आम आदमी को मौत का भय दिखा कर तरहतरह के अंधविश्वासों व दान जैसी मिथ्या बातों में उलझाने का प्रयत्न किया गया है. यह विडंबना ही है कि सदियों बाद भी समाज ने गरुड़ पुराण में वर्णित मृत्यु संबंधी कर्मकांडों का त्याग नहीं किया है. परिवारों में आज भी मृत्यु हो जाने पर गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है और पुत्र सिर मुंडवा कर आयुपर्यंत दानपुण्य के नाम पर लुटता है.

गरुड़ पुराण में 16 अध्याय हैं. हर अध्याय में मृत्यु के बाद मनुष्य की कथित यमलोक यात्रा का हास्यास्पद विवरण है. आरंभ के अध्यायों में ‘पाप’ विशेष की यातना, यातना देने के तरीकों, देवीदेवताओं, पुजारियों व पुरुषों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है. जबकि अंतिम अध्यायों में तरहतरह का दान करने की सलाह दे कर पापों से मुक्ति प्राप्त करने की बात कही है.

आम धारणा है कि मनुष्यों को कथित यमदूत उन के पापों की सजा देते हैं लेकिन गरुड़ पुराण के अंतिम अध्यायों से तो यही जाहिर होता है कि मनुष्य पाप कर के यदि गरुड़ पुराण में वर्णित तरीके से दान करे तो वह पापों से मुक्त हो जाता है.

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