किसी भी जंत्री, पंडित या ज्योतिषी द्वारा असूझ विवाह के लिए (जिस में मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती) कुछ दिन बताए जाते हैं, जिन में ‘देवोत्थान एकादशी’ प्रमुख है. इस दिन भारत में बहुत बड़ी संख्या में विवाह संपन्न होते हैं.

हर वर्ष देवोत्थान एकादशी पर अकेली दिल्ली में ही हजारों विवाह संपन्न होते हैं. पर टैलीविजन चैनलों पर कई पंडितों के मुख से सुनने को मिलता है कि शैलेंद्र मांगलिक कार्य में ग्रहोंनक्षत्रों का रोड़ा है. चूंकि जिस देवोत्थान एकादशी पर शुक्र अस्त हो तो इस दिन विवाह नहीं करना चाहिए. अगर विवाह करेंगे तो सामंजस्य नहीं बनेगा और वैवाहिक जीवन मजबूत नहीं होगा. इसलिए जो लोग विवाह कर चुके हैं उन्हें अपना शुक्र मजबूत करना होगा. इस बारे में और अधिक जानकारी के लिए अन्य ज्योतिषियों या फिर पंडितों से चर्चा कराई जाती है. अन्य ज्योतिषी इस से भी एक कदम आगे बढ़ कर बताते हैं कि देवोत्थान एकादशी के अलावा और भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त होते हैं जैसे-चैत्रशुक्ला प्रतिपदा, विजयादशमी, दीपावली का केवल प्रदोषकाल.

इन मुहूर्तों में विवाह करना शुभ होता है. उन के अनुसार, विवाह आदि के लिए पंचांग में दिए गए मुहूर्त या पंडित की सलाह पर ही तारीख निश्चित करनी चाहिए. खराब ग्रहों में किया गया विवाह कभी सफल नहीं होता. इस बात को कभी भी मजाक में नहीं लेना चाहिए.

ग्रहनक्षत्रों का मायाजाल

एक महिला ज्योतिषाचार्य डा. किरन का कहना है, ‘‘शुक्रास्त में विवाह आदि शुभ कार्य निषिद्ध एवं त्याज्य हैं. इन में राहूकाल का भी ध्यान रखना चाहिए.’’ शुक्रअस्त के महत्त्व व अर्थ को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘शुक्र, पुरुषत्व का प्रतीक होता है और उस के अस्त होने का तात्पर्य है स्त्रीपुरुष संबंधों में कमी का होना.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘‘गुरु’ विवाह कराता है और ‘शुक्र’ विवाहोपरांत पतिपत्नी संबंध देखता है. सो, ‘शुक्र’ निर्बल हो तो विवाह की आज्ञा न दें.’’ आज के वैज्ञानिक समय में जब नपुंसकता तक का इलाज है तो फिर ‘शुक्र’ की निर्बलता से क्यों डरना? ऐसी शंका व भय अच्छे रिश्तों को हाथ से निकल जाने का मार्ग बना देते हैं. हालांकि कुछ ज्योतिषियों का यह भी कहना है कि प्रेम विवाह तथा स्वयंवर के लिए ऐसे कोई भी मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती.

यहां प्रश्न उठता है कि क्या ग्रहनक्षत्र भी प्रेम विवाह व स्वयंवर को विशेष रियायत देते हैं या उन से कुछ अधिक ही प्रसन्न हो जाते हैं? विचारणीय तथ्य यह है कि ग्रहों को कैसे पता चलता है कि इस जोड़े ने विवाह से पूर्व प्रेम किया था या प्रेम विवाहोपरांत हुआ? और फिर यह प्रेमप्यार कितना सच्चा है या बनावटी. कुछ ज्योतिषियों का यह भी कहना है कि पहाड़ों व तीर्थों पर भी विवाह के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती. कारण, पहाड़ों पर गुरुत्वाकर्षण बल कम होता है. इसलिए वहां ग्रहों का प्रभाव कम होता है.’’ यहां फिर प्रश्न उठता है कि क्या शुभ मुहूर्त पर विवाह करने से मैदानी इलाकों में गुरुत्वाकर्षण बल कम हो जाता है? और जब गुरुत्वाकर्षण बल का ज्ञान नहीं था तब ये ज्योतिषी क्या तर्क देंगे? विवाह संबंधी विचार में गुरुत्वाकर्षण बल को जोड़ना कहां तक तर्कसंगत है? जाहिर है कि अपनी प्रभुता बनाए रखने के लिए और हाथ से शिकार न निकल जाए, इस के लिए नएनए हथकंडे अपनाए जाते हैं. सही बात तो यह है कि प्रेमविवाह लड़का, लड़की की चाहत व इच्छा पर निर्भर होगा, ऐसे में यह तथ्य (पंडितों का) सटीक उतरता है कि ऐसे संबंध में मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं क्योंकि मुहूर्त के चक्कर में उस जोड़े के पास वक्त नहीं होगा और ऐसे में वह कोई और मार्ग अपना लेगा. इसलिए पंडित लोग अपने वाक्चातुर्य से ऐसे जोड़े का विवाह करा अपनी जेबें गरम कर लेते हैं. आजकल ऐसे विज्ञापन खूब दिखते हैं जिन में शीघ्र विवाह कराने का आमंत्रण दिया जाता है. वर्ष 2014 में 26 नवंबर से 10 दिसंबर तक ही विवाह संभव बताए गए थे. 10 दिसंबर, 2014 से 14 जनवरी, 2015 तक विवाह निषिद्ध थे क्योंकि इस अवधि में ‘वृहस्पति’, ‘सिंह’ राशि में प्रवेश कर रहा था. अब कोई पूछे कि सिंह राशि में विवाह करने से क्या सिंह प्रकट हो कर दहाड़ेगा?

‘पर्व दीपिका 2014’ से प्रकाशित पंचांग (गणेश शास्त्री) में अप्रैल 2014 से मार्च 2015 के अंत तक केवल 101 दिन, विवाह के लिए शुभ व शुद्ध बताए गए हैं. यह पंचांग दिल्ली के अक्षांश पर आधारित है. दिल्ली की जनसंख्या के हिसाब से केवल 101 दिन कितने पर्याप्त हो सकते हैं, कोई भी सोच सकता है. यही कारण है कि दिल्ली में 1 ही दिन में 20 से 25 हजार विवाह संपन्न होते हैं. इसीलिए बारात स्थल, बैंडबाजा आदि की कमी के साथसाथ ये महंगे भी हो जाते हैं. इस चक्कर में झगड़े, परेशानी, ट्रैफिकजाम की समस्या गंभीर हो जाती है. ‘ज्योतिषतत्त्वांक’ में डा. रामेश्वर प्रसाद गुप्त लिखित एक लेख में बताया गया है कि भारतीय परंपरा में साढे़ 3 मुहूर्त ऐसे सिद्ध व सुकीर्तित हैं जिन में किया गया कार्य अवश्य ही शुभ व फलदायी होता है. ये मुहूर्त हैं-

‘अक्षयतृतीया’, ‘विजयादशमी’, ‘दीपावली के उपरांत प्रतिपदा का अर्धदिन’ तथा ‘बसंतपंचमी’. एक तरफ तो कहा जाता है कि ये सिद्ध व शुभ मुहूर्त हैं फिर समयसमय पर कोई न कोई ग्रह इन में प्रवेश कर इन्हीं को निषिद्ध कर देता है. ऐसी बातें पंडितों व ज्योतिषियों द्वारा अंधविश्वास को फैलाने के साथ उन की वर्चस्वता बढ़ाने में कारगर सिद्ध होती हैं.

विचारणीय तथ्य

भारतवर्ष में सवा सौ करोड़ से ज्यादा आबादी निवास करती है, जिस में युवावर्ग की तादाद ज्यादा है. तो स्पष्ट है कि विवाह भी ज्यादा होंगे. अब अगर मुहूर्तों के हिसाब से चला जाए तो विवाह आदि शुभ कार्यों के लिए बहुत ही कम दिन मिलते हैं. लोग इन मुहूर्तों के चक्कर में न पड़ सुविधानुसार विवाह आदि का कार्य करें. अपने मन में ‘अनिष्ट’ का निर्मूल भय व आशंका निकाल दें. कभी ‘शुक्र’ अस्त तो कभी ‘मंगली’ दोष तो कभी ‘नाड़ी दोष’ के चक्कर में काफी अच्छे रिश्ते जुड़ने से वंचित रह जाते हैं और फिर मजबूरी में इन ग्रहचक्रों के कारण अनमेल विवाह कर पतिपत्नी जीवनभर सामंजस्य बिठाते रहते हैं या अलग होने की त्रासदी सहते हैं. कुछ समुदाय बिना किसी शंका व भय के मुहूर्त नहीं, अपनी सुविधानुसार विवाह आदि करते हैं, जैसे कि सिख, ईसाई, मुसलमान आदि. इन का एक बड़ा प्रतिशत सफल व सुखी जीवनयापन करता देखा जाता है. छोटीमोटी दुर्घटना तो कभी भी, कहीं भी हो सकती है.

अंधविश्वास को हवा देते तथ्य

वैसे तो हर रोज सुबह के समय टैलीविजन खोलते ही अपना प्रवचन देते और लोगों की गृहदशा का निवारण करते नजर आ जाते हैं. ये पंडित भ्रामक धारणा उत्पन्न करते  हैं. एक तरफ, अशुभ मुहूर्त की बात कर फिर उस की पूजापाठ करा, समाधान भी पंडितों द्वारा दे दिया जाता है. फलांफलां पूजा करा लो, अशुभ समाप्त होगा. है न हास्यास्पद बात और एक शातिर तरीका कमाई का. यह स्थिति भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है. वहां भी जन्मपत्री दिखाई जाती है. बाल्टीमोर मेरीलैंड स्थित ‘जौन हौकिंस यूनिवर्सिटी’ के वैज्ञानिकों ने रिसर्च द्वारा बताया कि 37 फीसदी व्यक्ति अपना कोई भी बड़ा कार्य करने से पूर्व अपनी जन्मपत्री पढ़वाते हैं. यह काम चर्च या किसी और तरह के बिचौलिया का होता है जो पैसा कमाता है. आखिरकार, एक ही बात स्पष्ट होती है कि पंडितों, ज्योतिषियों, ग्रहों के चक्कर में लोग अपने ज्ञान, विवेक, बुद्धि दांव पर लगाते हैं. जन्म से ले कर मृत्यु तक फैलाए इन के जाल में इंसान न जाने कितने वर्षों से चक्करघिन्नी सा घूम रहा है. पंडितों का भ्रम व जाल प्रचार के बल पर फलफूल रहा है. वैज्ञानिक तरीकों को जानें, समझें और अपनाएं.

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