9 अगस्त को तकरीबन 5 बजे देवघर के बेलाबगान इलाके के मंदिर के पास कतार में लगे कांवरिये अफरातफरी मचाने लगते हैं. जल्दी जल चढ़ाने की होड़ में पुलिस के घेरे और अनुशासन को तोड़ डालते हैं और उस के बाद शुरू हुई धक्कामुक्की भगदड़ में बदल जाती है. देखते ही देखते ‘बोल बम’ का जयकारा चीखपुकार में बदल जाता है. हर ओर से रोने और चिल्लाने की आवाजें आने लगती हैं. शिव को जल चढ़ाने के लिए 100 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पैदल तय कर के देवघर पहुंचे अंधभक्ति में डूबे कांवरियों की जान तथाकथित ईश्वर शिव भी नहीं बचा सके. धर्म के नाम पर लगने वाले मजमों में भगदड़ मचना अब नई बात नहीं रह गई है. सरकार और प्रशासन के खासे बंदोबस्त के बावजूद भगदड़ मचती है और बेतहाशा मौतें होती हैं. ऐसी भगदड़ों के पीछे पोंगापंथियों का उपद्रव ही होता है. भीड़ में होने की वजह से वे किसी की सुनते नहीं और अपनी मनमानी करते हैं.

हर साल सावन के महीने में बिहार के भागलपुर जिले के सुल्तानगंज कसबे से कांवर ले कर लोग पैदल झारखंड में देवघर शहर के शिवमंदिर तक जाते हैं. सुल्तानगंज में गंगा नदी उत्तरवाहिनी है. सुल्तानगंज में अजगैबीनाथ मंदिर में पूजा करने के बाद गंगा का पानी ले कर लोग 110 किलोमीटर पैदल चल कर देवघर के शिवमंदिर तक पहुंचते हैं. सुल्तानगंज से ले कर देवघर तक अंधविश्वास का खुला खेल चलता है. भगवा रंग के कपड़े पहने और कंधे पर कांवर उठाए ज्यादातर शिवभक्त खुद को किसी बादशाह से कम नहीं समझते हैं. रास्ते में कानून की धज्जियां उड़ाना और मनमानी करना उन का शगल होता है. कांवरियों की भीड़ में चलने वाले अधिकतर लोग पूजा के नाम पर पिकनिक का मजा लूटते हैं.

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