विश्व में एक बार फिर धर्मों के भीतर लड़ाई जोर पकड़ रही है. इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में मुसलमान गुटों में खूनी संघर्ष बताता है कि अब देशों में राजनीतिक लड़ाई की जगह एक ही धर्म के अलगअलग पंथों के बीच कलह चरम पर पहुंच रही है. भारत में कुछ ऐसा ही मामला साईं बाबा की पूजा को ले कर द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उठाया है. यह भी हिंदू धर्म के मानने वालों की आस्था और विश्वास से जुड़ा हुआ है.

एक ही धर्म में विश्वास और मान्यताओं को ले कर विवाद कोई नई बात नहीं है. विश्व के धर्मों में आपसी लड़ाई बहुत पुरानी है. हर धर्म में अकसर विचारों और मान्यताओं को ले कर मतभेद जगजाहिर होते आए हैं. काफी खूनखराबे हुए हैं. 2 अलगअलग धर्मों के बीच हिंसा और मारकाट तो स्वाभाविक है पर यहां तो एक ही धर्म के लोग आपस में युद्धरत हैं. इराक व सीरिया में इसलाम धर्म के अनुयायियों–शिया और सुन्नियों के बीच हजारों जानें ले चुका गृहयुद्ध आज का नहीं है. यूरोप में ईसाइयों में कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट के बीच झगड़ा चलता आया है. भारत में भी हिंदू धर्म में आपसी वैरविद्वेष और कलह का रक्तरंजित इतिहास रहा है. बौद्धों में हीनयान और महायान लड़तेझगड़ते रहे हैं.

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा साईं बाबा की पूजा की मुखालफत के बाद हिंदू धर्र्म के ही 2 गुट आमनेसामने हैं. देश के प्रमुख धार्मिक तीर्थस्थलों पर इस मामले को ले कर खासी हलचल है. इलाहाबाद, बनारस और हरिद्वार में मठों, आश्रमों, मंदिरों में सामान्य भक्तों से ले कर साधुसंतों, महंतों, महामंडलेश्वरों की प्रतिक्रियाओं का दौर जारी है.हरिद्वार में हर की पैड़ी से ले कर शंकराचार्य चौक, संन्यास रोड, भीमगौड़ा, सप्त सरोवर मार्ग, कनखल, ऋषिकेश तक शंकराचार्य-साईं पूजा विवाद चर्चा में है. इस विवाद पर हर किसी के कान खड़े हैं. हरिद्वार में स्थित सभी अखाड़े और महामंडलेश्वर  शंकराचार्य के साथ हैं तो साईं बाबा के भक्त शंकराचार्य के विरोध में गुस्साए हुए हैं. नागा अखाड़ा तो साईं पूजा के खिलाफ खासा आक्रोशित है. वह धर्मयुद्ध पर उतारू नजर आता है.

जो सनातनी हिंदू यानी ब्राह्मण हैं वे इस विवाद पर धिक कुछ नहीं बोलना चाहते पर अंदर से शंकराचार्य के साथ हैं. हरिद्वार में करीब एक दर्जन महामंडलेश्वर आश्रमों की ओर से केवल यही कहा जा रहा है कि जब शंकराचार्य ने कहा है तो सही है. हम सब उन के साथ हैं. लेकिन जो गैरब्राह्मण यानी दलित, शूद्र साधु और उन की धार्मिक संस्थाएं हैं, वे  हिंदू धार्मिक व्यवस्था और शंकराचार्य द्वारा उठाए गए इस विवाद की निंदा करते हैं. हालांकि वे यह भी कहते हैं कि हम इस धर्मनगरी में रहते हैं और इसी धार्मिक व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं तो अधिक बोलना ठीक नहीं है.

धर्म और मत

हरिद्वार के निर्मला छावनी बेगमपुर में स्थित श्री रविदास साधु संप्रदाय सोसायटी को इस विवाद का पता है. सोसायटी का कहना है कि हम सभी धर्मों का आदर करते हैं. परमात्मा का बनाया हुआ कोई धर्र्म नहीं है. उन का धर्म सिर्फ इंसानियत है और हम इंसान की कद्र करते हैं. हम यह विश्वास करते हैं कि लोग जातिपांति और धर्र्म में न पड़ें. श्री रविदास साधु संप्रदाय सोसायटी को हिंदू धर्म की ऊंचनीच, भेदभावपूर्ण व्यवस्था की टीस भी है पर वह खुल कर अधिक बुराई नहीं करना चाहती.

हरिद्वार की गांधी हरिजन धर्मशाला के प्रबंधक रामदास हिंदू धर्म की बुराइयों पर खुल कर बोलते हैं. वे कहते हैं, ‘‘इस विवाद के पीछे शंकराचार्य का क्या ध्येय है, हम समझ ही  नहीं पाए.’’ वे दलितों के साथ भेदभाव पर गहरा दुख जताते हैं पर अब वे उसी व्यवस्था को अंगीकार किए बैठे हैं. इस धर्मशाला में प्रवेश करते ही सामने एक छोटा मंदिर बना दिखाई देता है जिस में राम, कृष्ण की मूर्तियां स्थापित हैं.

सप्त सरोवर मार्ग पर स्थित विश्व सद्भावना साईं मंदिर के प्रमुख पारसमुनि कहते हैं, ‘‘साईं बाबा ने सनातन धर्म को कोई चोट नहीं पहुंचाईर् है. बाबा ने किसी को कुछ नहीं कहा. शिष्यों ने सम्मान दिया है. साईं को गुरु माना है. न तो बाबा ने कहा कि उन्हें भगवान मानो, न भक्तों ने उन्हें भगवान या अवतार माना है. भक्त तो उन्हें गुरु मान रहे हैं. गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया गया है. सब लोग अपनेअपने हिसाब से मान रहे हैं. शंकराचार्य ने विरोध क्यों किया, हो सकता है उन पर कोई दबाव हो. उन के मन में कुछ आया हो. हम साईं को गुरु मानेंगे. साईं बाबा ने अपना कोई प्रचार नहीं किया. भक्त ही कर रहे हैं. उन्होंने तो पाखंडों का विरोध किया. बिना किसी जाति, धर्म  के इंसानियत की सीख दी और इंसानियत का ही प्रचार किया. हिंदू लोग उधर क्यों जा रहे हैं, यह शंकराचार्य देखें, वे सनातन धर्म को बढ़ाएं.’’

हर की पैड़ी मार्ग स्थित दुर्गा साईं मंदिर के पुजारी शीशराम उनियाल साईं बाबा की मूर्ति के पास बैठे पूजा कर रहे हैं. गहरा भगवा पहने, माथे पर ऊपर लाल और नीचे पीला तिलक लगाए उनियाल साईं बाबा की पैरवी करते हुए कहते हैं, ‘‘साईं बाबा कलियुग के देवता हैं. भगवान ने कहा था कि वह प्रत्यक्ष रूप में दर्शन नहीं दे पाएंगे. किसी न किसी रूप में दर्शन देंगे. लोग भक्ति कर रहे हैं तो उन्होंने चमत्कार देखे हैं.’’यह सच है कि हरिद्वार के वैष्णव मंदिरों में आज भी दलित, शूद्र प्रवेश करने से कतराते हैं. गंगा में डुबकी लगाने में हिचकते हैं.

विष्णु, राम, कृष्ण, लक्ष्मीनारायण और सूर्य मंदिर लगभग सूने से नजर आ रहे हैं. भक्तों की आवाजाही काफी कम है. लेकिन कबीर, रविदास, साईं बाबा आश्रम और मंदिरों में भीड़ दिखती है. चारधाम की यात्रा शुरू है फिर भी हरिद्वार के रास्तों और यहां के होटलों, धर्मशालाओं और आश्रमों में खालीपन पसरा हुआ है. 8 जुलाई को मोक्षदायी एकादशी होने के बावजूद मंदिरों में भीड़ कम थी.

सूना है आश्रम

विवाद खड़ा करने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कनखल स्थित आश्रम सूना पड़ा है. यहां केवल 1-2 केयरटेकरों के अलावा और कोई नजर नहीं आया. 7 और 8 जुलाई को इस आश्रम में राजा नाम का एक युवक मिला. उस ने बताया कि यहां शंकराचार्य साल में 1-2 बार ही आते हैं. संन्यास मार्ग स्थित महामंडलेश्वरों के आश्रम लगभग खाली दिखाईर् पड़ रहे हैं. इन में भक्तों की अधिक आवाजाही नहीं है. माथे पर तिलक और भगवाधारी महामंडलेश्वर के शिष्य अनजान के साथ बातचीत में अहंकारी दिखाई देते हैं.

हर की पैड़ी पर एक दिलचस्प नजारा देखा जा सकता है. यहां देशभर से अस्थि विसर्जन कराने और अन्य कर्मकांड कराने आने वालों के लिए पुरोहितों की कतार लगी है. इन में एक हैं पंडित गंगाराम. इन महानुभाव ने अपनी दुकान के बाहर दीवार पर लिख रखा है, ‘‘अनुसूचित जातियों के एकमात्र तीर्थपुरोहित.’’ आगे लिखा है, ‘‘इन सीटों पर केवल अनुसूचित जाति के लोग ही बैठ सकते हैं.’’

मजे की बात है कि इस यजमान के यहां भीड़ लगी है और बाहर टेबल पर बहीखातों का ढेर लगा है जिन में पीढि़यों का लेखाजोखा दर्ज रहता है. तिलक लगाए एक प्रौढ़ मुख्य सीट पर तो दूसरे युवा पंडित इधरउधर बैठे हैं जो शायद पुरोहित परिवार के हैं. दूसरे सनातनी ब्राह्मण खाली बैठे हैं. दरअसल, साईं बाबा जैसे धर्मस्थलों में अधिकतर वे लोग जाते हैं जिन्हें हिंदू धर्म में सम्मान नहीं मिला, जिन के लिए पूजापाठ, पढ़नालिखना वर्जित किया गया था. तीर्थों पर जाने की पाबंदी थी. उन के लिए मोक्ष के कोई माने न थे.

‘जाति न पूछो साधु की’, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ जैसी बातें सुनने में अच्छी लगती हैं पर यहां साधु और भक्त की जाति पहले पूछी जाती है. माथा देख कर तिलक लगाया जाता है. यहां सदियों तक जाति पूछ कर मंदिरों में प्रवेश का अधिकार ऊंची जातियों के पास सुरक्षित रहा है. तो क्या साईं की पूजा हिंदू देवीदेवताओं, अवतारों, धर्मगुरुओं और शंकराचार्यों की नाकामी का नतीजा है, जो भक्तों की मुरादें पूरी करने में नाकाम साबित हो रहे हैं? हिंदू धर्र्म के इतने सारे चमत्कारी लोग भक्तों की मनोकामनाएं पूरी नहीं कर पा रहे हैं? क्या इसीलिए भक्त लोग 20-30 साल बाद कोई न कोई नया चमत्कारी भगवान गढ़ लेने पर मजबूर  हो रहे हैं?

लेकिन इन जातियों का भला भी किसी साईं बाबा की पूजापाठ से नहीं हो सकेगा. यह तो वही हिंदूवादी व्यवस्था है जिस के शिकार ये लोग सदियों से रहे हैं. देवताओं, गुरुओं, बबाओं के चमत्कारों में पोल ही पोल है. इन के प्रति विश्वास खोखला है. कुछ समय पहले संतोषी माता के मंदिर उग आए थे.

शंकराचार्य कहते हैं कि साईं बाबा और संतोषी माता जैसे देवीदेवताओं का हिंदू शास्त्रों में कहीं कोई जिक्र नहीं है. लेकिन कई निराश भक्त पूछ रहे हैं कि जिन की शास्त्रों में गाथाएं गाई गई हैं और धर्मगुरु जिन के बारे में दिनरात गुणगान करते हैं उन्होंने कौन सी भक्तों की नैया पार लगा दी, कौन सी समस्याएं दूर कर दीं? गनीमत है कि अब भारत में एक ही धर्म के लोग आपस में युद्ध नहीं करते. सिर्फ बातें बनाते हैं या छोटीमोटी तोड़फोड़ करते हैं जैसे सिखों में संत गुरमीत रामरहीम सिंह. वे साथ ही रहते हैं. पहले इस तरह के विवादों पर सेनाएं खड़ी कर ली जाती थीं.

आज इराक और सीरिया के शिया व सुन्नियों की तरह यूरोप के देशों में भी कहीं कैथोलिक तो कहीं प्रोटेस्टैंट राजा थे. यूरोप में दशकों तक कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट ईसाइयों के बीच युद्ध चलता रहा. लाखों लोगों को जानें गंवानी पड़ीं. एकदूसरे के चर्च तोड़े गए, संपत्ति लूटी गई, कब्जाई गई.

इसलाम धर्म के पैगंबर मुहम्मद के दुनिया से जाने के बाद ही मुसलमानों में विवाद शुरू हो गया था. शिया और सुन्नी का झगड़ा इमाम और खलीफाओं को मानने को ले कर है. यह झगड़ा सदियों से चला आ रहा है. ईरान अकेला देश है जहां शिया राष्ट्रीय धर्र्म है. इस के अलावा इराक और बहरीन में शिया बहुमत में हैं. सीरिया, फलस्तीनी अरब आदि इलाकों में सुन्नी बहुलता है. उत्तरी अफ्रीका के बहुत से देशों में सुन्नियों की आबादी अधिक है. इराक व सीरिया के गृहयुद्ध में अन्य देश भी कूद पड़े हैं.

भारत में 10वीं शताब्दी के आसपास हिंदुओं में ही शैव और वैष्णवों के बीच खूनी लड़ाई चली. बौद्धों में हीनयान और महायान संप्रदाय के बीच झगड़ा चला. जैनों में श्वेतांबर और दिगंबरों के बीच विवाद रहा है.

लोग एक से दूसरे भगवान, गुरु की शरण में भटकते रहेंगे पर हाथ कुछ नहीं आना है. धर्म के दलाल एकदूसरे को लड़ाते, मरवाते रहेंगे. मान्यताओं, विश्वासों पर अपनी राय थोपने की कोशिश करेंगे. दुनियाभर में यही हो रहा है. दुनियाभर में आपस में लोगों की जानें लेने, वैरविद्वेष, झगड़ा कराने वाले धर्म कैसे हैं? ये कैसे धर्मगुरु हैं जो मान्यताओं के नाम पर, पूजापाठ के नाम पर, विश्वास के नाम पर लोगों को एकदूसरे से लड़वाते आए और आज भी वही कर रहे हैं.

साईं बनाम शंकराचार्य

साईं पूजा किन हिंदुओं की व्यथा का स्वरूप है : हिंदू धर्म जिस में नदी, पहाड़, पेड़ और पशुपक्षी तक पूजे जाते हों उस में एक फकीर की पूजा को ले कर पैदा किए विवाद से करोड़ों लोग हैरत में हैं कि साईं बाबा की पूजाअर्चना पर विवाद क्यों? हिंदू धर्म की कथित उदारता एक बार फिर कठघरे में है. इस दफा बवाल खड़ा किया है द्वारका पीठ के धर्मगुरु और ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ के मुखिया जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने. उन के एतराज की मंशा या व्याख्या अगर एक लाइन में की जाए तो वह लाइन होगी ‘क्योंकि साईं बाबा ब्राह्मण नहीं थे.’

अपनी बात समझाने के लिए स्वरूपानंद एक पखवाड़े तक अलगअलग जगहों पर अलगअलग तर्क और उपदेश देते रहे. हिंदू धर्म की मान्यता और मूल्य सनातन धर्म पर आधारित हैं. ये कौन सी मान्यताएं और कौन से मूल्य हैं जो हिंदू धर्म की सनातन कमजोरी हैं. जिन्हें खूबियां बता कर हिंदू धर्म के ठेकेदार और दुकानदार चांदी काटते रहे हैं? साईं बाबा के बहाने इस सनातन धर्म की दुकान घाटे में चलने लगी और ढहती दुकान को फायदे का धंधा बनाने की कोशिश जारी है. इस का एक पहलू यह है कि हिंदू धर्म, जिसे स्वरूपानंद सनातन धर्म कहते हैं, ब्राह्मणसंतों की जागीर है. दूसरा पहलू आर्थिक है कि अरबों का चढ़ावा शिरडी क्यों जा रहा है जिसे पंडे, पुजारियों और संतमहंतों के श्रीचरणों में होना चाहिए था. तीसरा पहलू राजनीतिक है कि अब कांग्रेस हिंदुत्व के मुद्दों पर से भारतीय जनता पार्टी का दबदबा तोड़ने पर आमादा है.

एक खतरनाक पहलू सामाजिक है कि साईं बाबा के बहाने हिंदू समाज को एक बार और तोड़ने व बांटने की कोशिशें की जा रही हैं, वह भी हिंदू संतों द्वारा ही.

शास्त्रीय सिद्धांतों के अनुसार, स्वरूपानंद की तमाम बातें और दलीलें सच हैं. दरअसल, हिंदू धर्म का खोखलापन, आडंबर, पाखंड और जातिविशेष की पूजा हिंदुओं में ही आपस में भेदभाव, वैमनस्य को उजागर करते हैं. करोड़ों हिंदुओं और साईं भक्तोंमें स्वरूपानंद कोई असमंजस पैदा नहीं कर पाए क्योंकि धर्म को मानने वाले अब बदल रहे हैं. यह बदलाव सुखद किसी लिहाज से नहीं है पर दुखद इस लिहाज से है कि इस घोर कलियुग में छोटी जाति वाले हिंदू, जो कल तक अछूत कह कर अपमानित किए जाते थे, आज ब्राह्मणों और दूसरी ऊंची जाति वालों पर राज कर रहे हैं.

धर्म की दुकान

स्वरूपानंद ने कोई विवाद खड़ा नहीं किया है बल्कि अपनी व्यथा व्यक्त की है जिस का सार समझने से पहले यह जानना जरूरी है कि उन्होंने जो कहा उस के असल माने क्या थे और इस के नतीजे क्या होंगे. बीते 2 दशकों में समाज में भारी बदलाव आए हैं. हिंदुओं की नई पीढ़ी विश्लेषण नहीं करती, सीधे फैसला लेती है. ये हिंदू आसमान से नहीं टपके हैं बल्कि क्रमबद्ध तरीके से समाज की मुख्यधारा को काटते खुद मुख्यधारा बन बैठे हैं. ये शिक्षित हैं पर तार्किक नहीं हैं, धर्म और भगवान को मानने का अपना मौलिक तरीका इन्होंने विकसित कर लिया है जो हिंदू धर्म का हिस्सा होते हुए भी पंडों का मुहताज नहीं है. और इसी व्यथा को स्वरूपानंद ने व्यक्त किया और इतने आक्रामक तरीके से किया कि खुद मजाक का पात्र बन बैठे.

जबलपुर के नजदीक श्रीधाम (गोटेगांव) में स्वरूपानंद का भव्य वातानुकूलित आश्रम है जिस की शानोशौकत देखते ही बनती है.  जबलपुर के ही एक भाजपा के कार्यकर्ता की मानें तो स्वरूपानंद को साईं बाबा से कम चढ़ोत्री नहीं मिलती है. आश्रम की 20 एकड़ जमीन या तो दान में मिली है या औनेपौने दामों में उन्होंने खरीद ली है. कुछ सरकारी जमीन भी दबाए जाने की बात इस कार्यकर्ता ने कही. स्वरूपानंद सोने के मोटेमोटे गहने पहनते हैं और बेशकीमती रत्न धारण करते हैं.

साईं बाबा की पूजा पर उन का एतराज दुकानदारी के अलावा कुंठा, पूर्वाग्रह, ईर्ष्या ज्यादा लगता है जिस से मुक्त रहने और होने की बात तमाम धर्मगुरु करते हैं यानी ‘हम करें तो लीला, कोई और करे तो अपराध’ वाली बात उन पर लागू होती है.

क्या था मामला

बीती 25 जून को स्वरूपानंद ने बयान दिया कि शिरडी वाले साईं बाबा कोई भगवान नहीं हैं. उन की पूजा को बढ़ावा देना हिंदू धर्म को बांटने की साजिश है. बकौल स्वरूपानंद, हिंदू धर्म में अवतार और गुरु की पूजा होती है. हिंदू धर्म के 24 अवतारों में से कलियुग में बुद्ध और कल्कि ही अवतार हुए हैं. साईं पूजा को निरर्थक बताते हुए शंकराचार्य ने उन के मंदिरों को भी अनुचित ठहराया. जल्द ही स्वरूपानंद मुद्दे की बात चढ़ावे पर आते हुए बोले कि शिरडी में चढ़ावा ब्रिटेन से आता है, साईं के नाम पर व्यवसाय किया जा रहा है. उन्होंने साईं बाबा को हिंदूमुसलिम एकता का प्रतीक मानने से भी इनकार किया.

इस बयान की उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया हुई. करोड़ों साईंभक्तों के अलावा गैर साईंभक्तों ने भी सोचना, पूछना और कहना शुरू कर द या कि लोग साईं बाबा को पूजें. इस से आप को क्या, यह तो व्यक्तिगत बात है. एक वर्ग के लोगों ने स्पष्ट माना कि संतों को पैसे से मोह नहीं होना चाहिए. लोग अगर साईं बाबा को चमत्कारी मानते हैं तो मानने दें. आप इस लायक हैं तो आप भी चमत्कार दिखा कर पैसा कमाने लगें. आम राय यह भी बनी कि चूंकि बड़ी तादाद में लोग शिरडी जा कर चढ़ावा चढ़ाते हैं इसलिए शंकराचार्य कुढ़ रहे हैं.

इस पर साईंभक्त चुप नहीं बैठे. उन्होंने स्वरूपानंद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करानी शुरू कर दी. स्वरूपानंद इस दुसाहस पर भड़क उठे और खुल कर मैदान में आ गए. लोगों ने इस दलील से कोई इत्तेफाक नहीं रखा कि साईंपूजा हिंदू धर्म को बांटने वाली है, न ही अवतारों वाली बात में रुचि ली. मंदिर न बनाने की बात भी यह कहते खारिज कर दी गई कि इस देश में तो सचिन तेंदुलकर और अमिताभ बच्चन के भी मंदिर बनाए जाते हैं, फिर साईं मंदिरों पर एतराज क्यों?

किसी को यह समझ नहीं आया कि स्वरूपानंद का एतराज एक ऐसे आदमी को संत या भगवान न मानने का है जो छोटी जाति का या कथितरूप से मुसलमान है. यह भी लोग नहीं समझ पाए कि वे हिंदू देवीदेवताओं के मंदिरों में पैसा चढ़ाने का मशविरा दे रहे हैं जहां पुजारी ब्राह्मण होता है और चढ़ावे का पैसा उसे ही मिलता है.

वाराणसी से शिरडी तक स्वरूपानंद के खिलाफ साईंभक्तों ने प्रदर्शन किए तो वे घबरा कर हरिद्वार आ गए पर बजाय बयान वापस लेने के आग में घी डालते कह डाला कि साईंभक्तों को राम का पूजन नहीं करना चाहिए, न ही हरहर महादेव का जाप करना चाहिए. इस दिन यानी 24 जून को पहली दफा स्वरूपानंद ने बजाय हिंदू धर्म के सनातन धर्म शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा कि सनातन धर्म की रक्षा करना उन का कर्तव्य है.

पैंतरा बदलते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मैं शास्त्रसम्मत बात कर रहा हूं. आखिर क्यों कुछ लोग साईं बाबा को हिंदू देवता बताने पर तुले हुए हैं. साईंभक्त अपनी आस्था के लिए स्वतंत्र हैं पर वे साईं को हिंदू देवता के तौर पर प्रकट कर प्रोजैक्ट करें तो यह गलत है.

इस बखेड़े में 28 जून को साध्वी उमा भारती भी कूदीं. उन्होंने कहा, ‘‘मैं खुद भी साईंभक्त हूं, साईं पूजा में गलत कुछ नहीं है.’’ कभी हिंदुत्व की पैरोकार और विवादित ढांचा ढहाए जाने की नायिका रहीं उमा भारती के इस पत्र पर स्वरूपानंद बिफर उठे. वे अब तक हरिद्वार में संतमहंतों की बैठकों में अपने पक्ष में काफी अच्छा माहौल तैयार कर चुके थे.

29 जून को हरिद्वार में संतों की एक बैठक  हुई जिस में महामंडलेश्वर स्वामी दिव्यानंद महाराज, स्वामी श्यामसुंदर दास शास्त्री, स्वामी मंगलदास, महंत कपिल मुनि महाराज और महंत कमलदास महाराज सहित दर्जनों संतों ने मिल कर उमा पर हमला बोल दिया. शुरुआत स्वरूपानंद ने यह कहते हुए की कि उमा भारती मुद्दे का राजनीतिकरण न करें और न ही धार्मिक मामलों में दखल दें. उमा भारती केंद्रीय सरकार में मंत्री हैं, देवी नहीं. स्वरूपानंद ने यह भी कहा कि उमा भारती के गुरु मेरे विचारों से सहमत हैं.

साईं से चिढ़ क्यों

न केवल स्वरूपानंद बल्कि देशभर के तमाम धर्मस्थलों पर दोनों हाथों से दक्षिणा और चढ़ावा बटोरते पंडेपुजारी भी साईंबाबा से चिढ़ते हैं. इस की खास वजह सालाना अरबों रुपयों का चढ़ावा शिरडी के मंदिर पर जाना है. सत्यनारायण, संतोषी माता और वैभव लक्ष्मी जैसे देवीदेवताओं का बुखार अब धर्मांध और अंधविश्वासी लोगों के सिर से उतर रहा है. ऐसे में साईं बाबा  उन्हें  बेहतर विकल्प के रूप में मिल गए. इसलिए यह कोई नहीं देखता है कि वे कौन थे और किस धर्म के मानने वाले थे.

स्वरूपानंद जैसे शंकराचार्य और तमाम पंडेपुजारी जानतेसमझते हैं कि साईंबाबा बुद्ध की तरह हिंदू कर्मकांड के घोर विरोधी थे. उन्होंने वाकई कभी गंगाजल नहीं पिया, न ही ग्रहनक्षत्रों की बात की, ज्योतिष का विरोध उन्होंने किया और दीक्षा जैसे पैसा बरसाने वाले संस्कार से भी सरोकार नहीं रखा. वे स्त्रीशोषण के भी खिलाफ थे. दूसरे छोटेबड़े हिंदू मंदिरों की तरह शिरडी के मंदिर में जातिपांति या धर्म को ले कर कोई भेदभाव नहीं है. इस लिहाज से स्वरूपानंद का यह कहना ठीक है कि वे हिंदू नहीं थे. ऐसा आदमी जो हिंदू धर्म में व्याप्त पाखंडों से दूर रहे और भक्तों को भी दूर रखे उसे हिंदू कहलाने का हक भी नहीं.

बहरहाल, स्वरूपानंद की चिढ़ शिरडी को ले कर ही नहीं है बल्कि इस बात को ले कर भी है कि शहरशहर में साईं मंदिर खुल रहे हैं. अकेले भोपाल में आधा दर्जन साईं मंदिर बन चुके हैं जिन में हिंदू मंदिरों की तरह चढ़ावा आने लगा है. यह हालांकि अभी काफी कम है लेकिन इतना जरूर है कि इस से फर्क हनुमान, राम, कृष्ण और शंकर मंदिरों की आमदनी पर पड़ रहा है. दूसरे, साईं मंदिर बनाने और चलाने वाले जाति के ब्राह्मण नहीं हैं इसलिए मशविरा और नसीहत ये दिए जा रहे हैं कि साईं के नाम पर चढ़ावा मत चढ़ाओ.

कई हिंदू मंदिरों में दूसरे देवीदेवताओं के बराबर साईं बाबा की मूर्ति स्थापित कर दी गई है. इस के पीछे पंडों का मकसद साईं भक्तों के यानी अपने पुश्तैनी ग्राहकों को दोबारा हिंदू मंदिरों की तरफ आकर्षित करना है. लेकिन जगहजगह साईं मंदिर खुलने लगे और उन की पालकी और पादुकाएं यात्राएं भी निकलने लगीं, जिन में हर कोई चढ़ावा चढ़ाने लगा. यही वह वजह थी जिस के चलते स्वरूपानंद, साईं बाबा और साईं भक्तों पर फट पड़े.

नए भोपाल इलाके में स्थित एक साईं मंदिर संचालक का कहना है कि हम चढ़ावे का हिसाब देने को तैयार हैं लेकिन पहले हिंदू मंदिरों का हिसाब सार्वजनिक किया जाए. हम चढ़ावे के पैसे का इस्तेमाल व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं करते. उसे सामाजिक कार्य में लगाते हैं. यह भी कड़वा सच है कि धीरेधीरे यही सामाजिक कार्य उदरपोषण का जरिया बन निकम्मों की फौज खड़ी कर देते हैं. चढ़ावे का यही पैसा मुफ्त की मलाई जीमने को उकसाता है. यहीं से साईं बाबा और पंडों का वैर शुरू होता है जो अब चरम पर है.

-भारत भूषण श्रीवास्तव के साथ जगदीश पंवार

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...