धर्म के नाम पर चल रहे पाखंडों की पोल खोलने वाले अखबार और सिनेमा जैसे माध्यमों पर कट्टरपंथियों का कहर खतरनाक दौर में पहुंच चुका है. बोलने, लिखने की स्वतंत्रता को हिंसा के जरिए दबाने की कोशिशें की जा रही हैं. भारत में राजकुमार हिरानी और आमिर खान की फिल्म ‘पीके’ का विरोध, धरनाप्रदर्शन, सिनेमाहालों में तोड़फोड़, पुतला दहन व उसे बैन करने की मांग और पेरिस में दशकों से मजहबी पाखंडों को लेखों, कार्टूनों के माध्यम से उजागर करने के लिए मशहूर साप्ताहिक पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ के दफ्तर पर हमला कर 10 पत्रकारों समेत 12 लोगों की हत्या किए जाने से जाहिर है कि कट्टरपंथी पोल खुलने के भय से किस कदर बौखला कर  शांति, प्रेम, अहिंसा, इंसानियत जैसी धर्र्म की तमाम सीखों को ताक पर रख अहिंसक खूनी खेल पर उतारू हैं.

‘पीके’ फिल्म पर हिंदू धर्र्म विरोधी होने के आरोप लग रहे हैं. आरोपों को ले कर हिंदू संगठनों ने फिल्म के खिलाफ मोरचा खोल दिया. सिनेमाहालों में पोस्टर फाड़ डाले, टिकट खिड़कियों पर टिकटें नहीं बिकने दीं. विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, शिवसेना, हिंदू महासभा जैसे संगठनों ने विधु विनोद चोपड़ा, राजकुमार हिरानी, आमिर खान को गिरफ्तार करने की मांग की. हिंदू संगठनों द्वारा फिल्म पर सैंसर बोर्ड से प्रतिबंध लगाने की मांग की गई पर बोर्ड द्वारा ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया गया. विरोध के बावजूद पीके देशभर के सिनेमाहालों में कामयाबी के झंडे गाड़ती रही. इस फिल्म ने कमाई के सारे रिकौर्ड तोड़ दिए. सोचने वाली बात यह है कि अगर फिल्म पीके से आम जनता या भक्त नाराज होते तो इतनी भीड़ नहीं उमड़ती. फिल्म दूसरे दिन ही फ्लौप हो जाती. और यदि फिल्म से भगवान नाराज होते तो इसे इतनी बड़ी सफलता नहीं मिलती. इधर, अपनी फिल्म के खिलाफ प्रदर्शनों से दुखी राजकुमार हिरानी तमाम आरोपों से इनकार करते हुए कहते हैं कि यह फिल्म किसी धर्र्म का अपमान नहीं करती. फिल्म मानव की एकात्मकता को दर्शाती है.

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