कभी किसी ने खासतौर पर सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों ने तो कल्पना तक नहीं की होगी कि कभी उन्हें प्राकृतिक रूप से होने वाले महिलाओं में मासिकधर्म के मामले पर भी सुनवाई करनी पड़ेगी जिस का धर्मग्रंथों में विस्तार से उल्लेख है. धर्मप्रधान इस देश की अदालतों में रोजरोज बेमतलब के वक्त बरबाद करने वाले जो मुकदमे दायर किए जाते हैं उन में से एक सबरीमाला मंदिर में मासिकधर्म से गुजर रही महिलाओं के प्रवेश का विवाद भी है.

वैसे महिलाओं को कम मुश्किलें नहीं हैं मगर महीने के उन मुश्किल भरे 5 दिनों में बंदिशों का कोई अंत नहीं. घरपरिवार के बड़ेबुजुर्गों को स्पर्श नहीं किया जा सकता. उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं दिया जा सकता. धुले कपड़ों की अलमारी या ड्रौअर को हाथ नहीं लगाया जा सकता. रसोई में प्रवेश की मनाही होती है.

कहने की जरूरत नहीं कि पूजा, मंदिर, भगवान तो इन दिनों में दूर की ही कौड़ी हैं. मासिकधर्म को धार्मिक कुसंस्कार से जोड़ कर इन मुश्किल दिनों में महिलाओं को अछूत, अपवित्र माना जाता है. कुसंस्कार की बलिहारी है कि कुछ धार्मिक स्थलों में तो 5 दिनों की तो छोडि़ए, सिरे से महिलाओं के ही प्रवेश पर रोक है. इस मामले में दक्षिण के मंदिर काफी चर्चा में रहे हैं.

दक्षिण के ब्रह्मचारी अयप्पन के केरल में तिरुवनंतपुरम स्थित सबरीमाला मंदिर मासिकधर्म के दिनों से गुजरने वाली महिलाओं के लिए मैनस्ट्रुएशन स्कैनर लगाने की तैयारी में है. मंदिर के ट्रस्ट ‘सबरीमाला देवासम बोर्ड’ के पदाधिकारी प्रयार गोपालकृष्णन ने केरल में दिए एक साक्षात्कार में कहा है कि मासिकधर्म से गुजरने वाली किसी महिला को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए मंदिर का ट्रस्ट एक विशेष तरह का स्कैनर लगाने पर विचार कर रहा है बशर्ते ऐसा कोई स्कैनर उन के हाथ लग जाए. मंदिर में प्रवेश करने से पहले महिलाओं को स्कैनर से हो कर गुजरना होगा.

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