5 प्लेटफौर्मों वाला छोटा सा नासिक रेलवे स्टेशन उस समय लोगों की भीड़ से उफन रहा था. एक के बाद एक मुंबई और मनमाड की ओर से आने वाली रेलगाडि़यां इसी स्टेशन पर यात्रियों को उडे़ल कर आगे बढ़ रही थीं. सुबह के 6 बजे थे. सैकड़ों लोग प्लेटफौर्मों पर सोते दिखाई दे रहे थे. गाडि़यों से उतर कर सवारियां स्टेशन के 2 दरवाजों से बाहर की ओर निकल रही थीं. सवारियों की इस बेशुमार भीड़ में भगवा, पीले व सफेद वस्त्रधारी, बूढे़, जवान, स्त्रियां, बच्चे थे. स्टेशन के सामने बसों, टैक्सियों में सवार हुए इन यात्रियों से गोदावरी के रामघाट तक 12 किलोमीटर और वहां से त्र्यंबकेश्वर तक का 28 किलोमीटर लंबा रास्ता भरा हुआ था. 29 अगस्त के दिन नासिक सिंहस्थ कुंभ का पहला शाही स्नान था. चारों तरफ विचित्र नजारा अजीब सा पागलपन लिए था. कोई लंगोट पहने है, कोई सफेद या भगवा वस्त्र में, किसी की जटा बढ़ी है, किसी के खिचड़ी बाल हैं तो कोई सफाचट, किसी की लंबी दाढ़ी, कोई क्लीन शेव, पतले, पेटू तो कई मुस्टंडे और साधुओं के आगेपीछे चेलों की भीड़ थी.
338 एकड़ क्षेत्रफल में यहां बने साधुग्राम में धर्मनिरपेक्ष सरकार ने जनता के करों के पैसे से साधुओं के ठहरने के शाही इंतजाम किए थे. शाही महलों को मात देते आश्रमों के भीतर मखमली गलीचे, सामने ऊंचे चांदी से मढे़ सिंहासन, फलफ्रूट्स, मेवों के ढेर, महंगे मोबाइल, लैपटौप और इर्दगिर्द चेलेचेलियों में सेठसेठानियां थीं. कुछ आश्रमों के अंदर तो कुछ के बाहर, महंगी लग्जरी गाडि़यां खड़ी थीं जो साधुओं की विलासिता को उजागर कर रही थीं. सांसारिक वस्तुओं व मोहमाया के त्याग की सीख देने वाले संन्यासियों के भोगविलास का इंतजाम देख कर नहीं लगता कि वे किसी त्यागी का जीवन जी रहे हैं.
शाही संत
क्या साधुसंन्यासी भी शाही हो सकते हैं? आश्चर्य की बात है कि राजामहाराजाओं के साथ तो शाही शब्द का तालमेल सही बैठता है पर यहां तपोवन में संतों के शाही ठाट थे और पूरा सरकारी अमला इन शाही साधुओं की सेवा में खड़ा था. तपोवन में श्रीश्री 1008 महंत श्री रामदास त्यागी के आश्रम में खड़ी महंगी गाड़ी महंत के ‘त्याग’ की पोल खोल रही थी. महंत की इस गाड़ी के आगे उन के ‘त्यागी’ नाम और पदवी वाला एक बैनर भी लगा था जिसे पढ़ कर हंसी छूटने लगी. भक्तों को अपनी ओर खींचने की होड़ में कहीं रामकथा चल रही थी, कहीं सत्संग हो रहा था, कहीं प्रवचन चल रहा था, कहीं रामलीला तो कहीं रासलीला, कहीं भंडारा हो रहा था. महामंडलेश्वर सीतारामदास महाराज (नेपाली बाबा) के यहां 21 दिन का रामचरितमानस का पाठ चल रहा था. सतपाल महाराज के आश्रम में सद्भावना सम्मेलन हो रहा था. किशोरीशरण भक्तमाल द्वारा एकादश दिवसीय श्रीबृहद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा था. महामंडलेश्वर बाबा बालकराम दास महाराज, रमणरेती वृंदावन के आश्रम में रामकथा चल रही थी. हरेरामा हरेकृष्णा के विदेशी गोरे युवकयुवतियां, भक्तों व भारतीय साधुसंन्यासियों को ज्यादा ही लुभा रहे थे. महामंडलेश्वर श्रीराघवशरण महाराज के यहां भागवत, रामायण, सत्संग, ध्यान, सहज योग कार्यक्रम चलाए जा रहे थे. राष्ट्रीय संत चिन्मयानंद बापू, राष्ट्रसंत जनार्दन स्वामी (मौनगिरि महाराज), मोरारी बापू और स्वामी रामकमल दास वेदांती महाराज रामकथा बेच रहे थे. मोरारी बापू तो रामकथा के सब से अमीर, बड़े और पुराने व्यापारी हैं. अपना रामकथामृत देशविदेश के अमीर सेठसेठानियों को ही बेचते हैं, गरीब ग्राहकों में नहीं. देश का सब से धनी अंबानी परिवार इन के खास ग्राहकों में है. यानी हर बाबा कुछ न कुछ बेच रहा था. हर आश्रम में एकदो दानपात्र और टेबलकुरसी लगा कर दान लेने वाले 2-3 लोग बैठे दिखे जो आयकर की धारा 80 बी के तहत बाकायदा आप को कर में छूट प्राप्त करने के लिए रसीद दे रहे थे.
इन सब महंत, महामंडलेश्वरों ने ये काम बाकायदा लिखित में प्रचारित, प्रदर्शित किए और प्रचारप्रसार की ही महिमा है कि लोग इन के यहां ढाई माह तक उमड़ते रहे. आश्रमों में भक्तों से दान देने की बात कही जा रही थी और कुछ जगहों पर तो लिखा दिया गया-
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्.
अर्थात, यज्ञ, दान और तप यही बुद्धिमान पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं.
श्रीपहाड़ी बाबा अपने विशाल पंडाल में कथा सुना रहे थे, ‘‘क्या वेश्या महासती हो सकती है? वेश्या रोज भगवान का सत्संग सुनती थी. किसी ने पूछा, ‘तुम महासती कैसे हो सकती हो?’ वेश्या ने जवाब दिया, ‘जब तक मैं किसी के साथ रहती हूं, अपने पतिधर्र्म का पालन करती हूं, पतिव्रता नारी का धर्म निभाती हूं.’ भगवान उस से प्रसन्न हुए. एक दिन भगवान प्रकट हो कर वेश्या से कहने लगे, ‘मैं तुम्हारे इस धर्म से प्रसन्न हो कर तुम्हें पार्वती की सहचरी बनाता हूं.’’’ इस पंडाल में करीब 300 लोग बैठे थे, इन में स्त्रियां भी थीं. इस कथा से बाबा अपने भक्तों में क्या संदेश देना चाहते हैं, यही न कि स्त्रियों को भगवान से ध्यान नहीं हटाना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो बाबाओं की दुकानें कैसे चलेंगी? एक तरह से वे पुरुषों को लाइसैंस दे रहे थे कि वेश्याओं के पास जाने में कोई हर्ज नहीं क्योंकि वेश्या तो सती हो सकती है. यानी पुरुष अपनी पत्नी के साथ जो अन्याय एक वेश्या के पास जा कर करता है उस पर धर्म की मुहर लग रही थी.
कुंभ में क्रोध, लोभ, स्वार्थ, सांसारिक भोग, लालसा पगपग पर देखी जा सकती है. साधुओं में परस्पर बैर रहता है और वे एकदूसरे की निंदा में लिप्त रहते हैं. साधुसंन्यासियों के आश्रमों वाली जगह का नाम भले ही तपोवन रखा गया पर यहां न तप था न वन. धन ही धन और ऐश्वर्य था. तपोवन का वातावरण तो देसी घी के पकवानों, कृत्रिम सुगंधों से महक रहा था. ऐसा नहीं लगता कि कुंभ में आश्रमों, अखाड़ों में धर्म के मायामोह के त्यागी लोग विराजमान थे. वहां राजामहाराजाओं का सा वैभव, हाथी, घोड़ों, चमचमाती गाडि़यों की सवारी, शाही ठाटबाट, चांदीसोने के सिंहासन और छत्र, अगलबगल में चंवर डुलाते सेवक, चेलेचेलियों की फौज, आशीर्वाद के आकांक्षी सेवा में हरदम तत्पर सेठसेठानियों की भीड़ दिख रही थी. हर आश्रम में माइक लगे हैं. कथा, सत्संग कम है शोरशराबा ज्यादा है. और फिल्मी धुनों पर भजनों के रिकौर्ड बजाए जा रहे थे. जहां धर्र्म का डंका बज रहा हो वहां भला राजनीतिबाज कहां पीछे रहने वाले थे. भक्तों के एकमात्र हितैषी दर्शाने वाले राजनीतिक पार्टियों के होर्डिंग्स शहर और मेलास्थल पर जगहजगह लगे हैं. शिवसेना, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस और भाजपा के नेताओं में होड़ दिखाई देती है कि कौन कुंभ यात्रियों को ज्यादा आकर्षित कर रहा है.
मेले में ताकत की दवाएं भी बिक रही थीं. सड़क के किनारे माला, तावीज, मंत्र, जंत्र, शंख, मोती, मणि, काले घोड़े की नाल, धार्मिक पुस्तकें, सीडी और देसी जड़ीबूटियों की सैकड़ों दुकानें सजी थीं. काले घोड़े की नाल की अंगूठी बेचने वाला ग्राहकों से कह रहा था, ‘‘बड़ी चमत्कारी अंगूठी है. यह आप की हर समस्या का समाधान कर देगी, बड़ेबड़े काम करवा देगी, कारोबार नहीं चलता है, घर में क्लेश रहता है, बच्चा सोने पर डर जाता है, यानी यह आप का हर समस्या का हल करती है.’’ झूठ पर सफेद झूठ कुंभ में बोला जा रहा है, इसलिए हर भक्त सिर नवा कर सच मान रहा है. शिलाजीत बेचने वाले एक नेपाली के पास पूरे माथे पर तिलक लगाए एक बाबा शिलाजीत खरीद रहा था. वह नेपाली उस बाबा को शिलाजीत के गुण बता रहा था, ‘‘शिलाजीत धातु रोकता है, शरीर का दर्द, जोड़ों का दर्द काटता है, शरीर में गरमी पैदा करता है, बूढ़े को जवान बना देता है.’’ भला बाबाओं को शिलाजीत की क्या जरूरत? जप, तप, योग से क्या जवान नहीं रह सकते? धर्म तो कामसुख को त्याज्य मानता है. कारसेवक भगवाई कहते तो यही फिरते हैं और वे युवा जोड़ों को मारते रहते हैं.
कुंभ में कितने महंत, महामंडलेश्वर हैं, यह पूछने पर चित्रकूट से आए बाबा शिवराजदास कहते हैं कि कुंभ में कितने महंत, महामंडलेश्वर हैं, किसी को नहीं मालूम. आजकल हर कोई महंत, महामंडलेश्वर बन बैठता है. कितने ही शंकराचार्य हैं. असलीनकली का पता नहीं है. यहां बाबाओं को पता नहीं है कितने अखाड़े हैं. कोई 13 बताता है, कोई ज्यादा. अखाड़ों में टकराव की आशंका भी बनी रही. प्रशासन को टकराव टालने के लिए मशक्कत करनी पड़ी. फिर भी जूना अखाड़ा, अग्नि और आवाहन के बीच स्नान को ले कर मारामारी मची रही. यह प्रतिनिधि पंचवटी में पहुंचा है. यहां सीता गुफा मंदिर है. इसे देखने के लिए लंबी लाइन लगी है. कुछ लोग बीच में घुस रहे हैं, इसे ले कर लड़ाई हो रही है. मंदिर परिसर में ‘जेबकतरों से सावधान’ रहने का निर्देश चौंकाने वाला है. भला भगवान भक्त की जेब की रक्षा भी नहीं कर सकता. सीता गुफा के सामने सीताहरण के स्थान पर मंदिर है. एक पंडा बता रहा है कि मारीच इसी जगह पर सोने का हिरण बन कर राम के सामने आया था और बाद में रावण ने यहां से सीता हरण किया. लक्ष्मण रेखा मंदिर भी यहीं पर है. इन मंदिरों में दानपात्र रखे हुए हैं. 2003 के नासिक कुंभ में यह प्रतिनिधि गया था तब सीता गुफा जैसी जगह पर मंदिर नहीं था, यह स्थल खंडहर था, न भीड़ थी पर इन सालों में यहां मंदिर बना कर भक्तों की जेबों से दानदक्षिणा निकलवानी शुरू कर दी गई है. अलगअलग नामों से संस्थान बना कर दुकानदारी जमा ली गई है. विभिन्न दंतकथाओं के नाम पर दुकानें चल रही हैं.
कुंभ की महिमा
सारा तमाशा यों ही नहीं है. धर्म की किताबों में लोगों को कुंभ स्नान के तरहतरह के लालच दिए गए हैं.
स्कंद पुराण केअनुसार,
गोदाया यक्तलं प्रोक्तं संगमे द्विगुण भवेत,
चतुर्गुणंतु सिंहस्थ ह्यतिच रेतुषद गुण.
अर्थात, गोदावरी में स्नान एवं दान करने का जो पुण्य प्राप्त होता है वह संगम स्थल पर दोगुने रूप में प्राप्त होता है. यही पुण्य सिंहस्थ में चौगुने रूप में प्राप्त होता है. यदि सिंहस्थ में बृहस्पति का परिभ्रमण हो तो यह षट् गुण रूप में प्राप्त होता है.
कुंभ स्नान का शास्त्रों में खूब महिमा गान है.
अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च,
लक्षं प्रदक्षिण भूमे: कुंभस्नानेन तत्फलम्.
अर्थात, हजार बार अश्वमेध यज्ञ करने से, 100 बार वाजपेय यज्ञ करने से और लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल एक बार कुंभ स्नान करने से मिलता है.
तान्येव य:पुमान, योगेसोमृतस्वायकल्पते,
देवा नमंति तत्रस्थान, यथा रग्डा धनाधिपान.
अर्थात, मनुष्य कुंभ योग में स्नान करता है, वह अमरत्व यानी मुक्ति की प्राप्ति करता है. जिस प्रकार दरिद्र मनुष्य धनवान को नम्रतापूर्वक अभिवादन करता है ठीक उसी प्रकार कुंभ पर्व में स्नान करने वाले मनुष्य को देवगण नमस्कार करते हैं. एक जगह लिखा है :
‘‘कुंभ मेले के तिथि पर्व के समय पर त्र्यंबकेश्वर में किए गए दान, जप, हवन के पुण्य से मनुष्य ब्रह्महत्या जैसे महापाप से मुक्त हो कर मोक्ष प्राप्त करता है.’’
प्राचीन समय से ही सिंहस्थ कुंभ के दौरान स्नान करने के बाद गोदान, भूमि, तिल, सोना, चांदी, घी, वस्त्र, धान दान देने की परंपरा बताई गई है.
वाह, भोलेभाले लोगों को बेवकूफ बनाने के कितने सुंदर प्रपंच रचे गए हैं. कुंभ की कहानी तो चिरपरिचित है. देवताओं और दानवों ने अमृत के लिए मिल कर समुद्र मंथन किया और मंथन से अमृत का घड़ा निकला तो दोनों के बीच लड़ाई हुई. विष्णु ने सुंदर नारी का रूप धर कर छल से देवताओं को अमृत और असुरों को सुरा पिलाने की चाल चली पर असुर समझ गए. इस बीच, अमृत कुंभ इंद्र का पुत्र जयंत ले कर भागा व इस भागमभाग में अमृत इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक इन 4 जगहों पर छलक गया. तब से इन चारों स्थानों पर कुंभ स्नान की परंपरा शुरू हुई. क्या देवता ऐसे थे कि वे एक कलश को संभाल भी न पाए कि उस के अमृत की बूंदें इधरउधर गिरती रहीं? मानव जाति को ऐसे देवता कैसे संभालेंगे?
कथा के अनुसार, यह अमृत देवताओं ने इसलिए छीनना चाहा कि इसे पी कर असुर अमर हो जाएंगे और फिर धरती पर पाप, अत्याचार का साम्राज्य बढ़ जाएगा. सवाल यह है कि देवताओं द्वारा असुरों से अमृत छीनने के बावजूद धरती पर पाप क्यों बढ़ता जा रहा है.? धर्म के बावजूद हर कुंभ में चोरी की वारदातें होती रही हैं. लड़कियों को मंगा लिया जाता है, जेबकतरे सक्रिय रहते हैं, मेला शुरू होते ही रामकुंड पर दो औरतों की सोने की चेन लूट ली गई. एक व्यक्ति ने 70 हजार रुपए लूटने की शिकायत दर्ज कराई थी.एक और चौंकाने वाली चीज–कुंभ के मौके पर नासिक में कंडोम की बिक्री बढ़ गई थी. शहर में प्रति माह डेढ़ से 2 लाख कंडोम की जरूरत होती है पर कुंभ के दौरान महाराष्ट्र स्टेट एड्स कंट्रोल ने यहां 5.40 लाख कंडोम भेजने पड़े थे. नासिक में 2 हजार वेश्याओं के साथसाथ 1 लाख बाहर से आई हुई सैक्सवर्कर थीं. आखिर क्यों? कुंभ मेले में अकसर भगदड़ मचती है और दर्जनों लोग मारे जाते हैं. 2003 के नासिक कुंभ मेले में शाही स्नान के वक्त साधुओं द्वारा पैसा उछाले जाने से मची भगदड़ में 41 लोग मारे गए थे. कुंभ के इतिहास में इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में हजारों लोग मारे जा चुके हैं. अखाड़ों के बीच संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है. 1690 में नासिक में शैव और वैष्णव संप्रदायों के बीच भयंकर संघर्ष हुआ था जिस में 12 हजार साधु मारे गए थे. 1746 में हुए यद्ध के बाद भाऊ साहेब पेशवा ने समझौता करवा कर विवाद निबटाया था. बाद में 1860 में मामला नगर अदालत में गया तो यह निर्णय दिया गया कि वैष्णवधर्मी वैरागी साधुओं को सिंहस्थ पर्व के समय शैव यानी नागा साधुओं के बाद स्नान करेंगे. इस घटना के बाद पेशवा के आदेश पर 2 अलगअलग घाट बनाए गए. वैष्णवों के लिए नासिक तथा शैवों के लिए त्र्यंबकेश्वर में व्यवस्था कराईर् गई. यह धार्मिक उन्माद ही भक्ति है? सदियों से सत्य का नहीं, झूठ का प्रचार हो रहा है. मनुष्य की उन्नति के लिए तो ज्ञान और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है व वह विवेक का उपयोग कर सदा प्रगति के मार्ग पर चल कर ही अपने लक्ष्य में कामयाब होता है.
सरकार ने इस तमाशे के आयोजन के लिए खजाना खोल दिया. 2,378 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्र्च किए गए हैं.
प्रचार तंत्र है धर्म के प्रसार में
समूचे नासिक शहर में और गोदावरी तट से ले कर 28 किलोमीटर दूर त्र्यंबकेश्वर तक शंकराचार्य, महंत, महामंडलेश्वर तथा अन्य गुरु, प्रवचक, साधुसंत अपने प्रचार में पीछे नहीं हैं. समूचा क्षेत्र बैनर, पोस्टर, होर्डिंग्स, पंफलैट्स से अटा पड़ा है. इन के अलावा आश्रमों, अखाड़ों में माइकों के माध्यम से भक्तों को अपनी ओर खींचने के प्रयास किए जा रहे हैं. कई साधु तो अपनी वैबसाइटें चला रहे हैं त्र्यंबकेश्वर में सब से बड़े बोर्ड शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती के लगे हैं. ब्रह्मगिरि पर्वत स्थित बस स्टैंड से ले कर गौतम कुंड तक शंकराचार्य के कई होर्डिंग्स लगे हैं. कई साधुओं द्वारा रामकथा का प्रचार किया जा रहा था. अखाड़ों द्वारा स्थापित शिविरों में प्रवचन, रामलीला, रासलीला, छोटेबड़े यज्ञ, अखंड पाठ, दक्षिणा, भंडारा, शोभायात्रा, रामकथा,, धार्मिक प्रदर्शनियां, योग शिविर, कीर्तन जैसी सभी जानकारी भक्तों तक बैनर, पोस्टर, माइक, होर्डिंग्स द्वारा दी गई थीं. महिला गुरु, साध्वियां भी पीछे नहीं थीं. साध्वी त्रिकाल भवंता ने महंत ज्ञानदास पर छेड़छाड़ का आरोप लगा कर हंगामा खड़ा कर दिया था. यह साध्वी कुंभ मेले में अलग महिला अखाड़ा और अलग स्नान की जगह देने की मांग कर रही थी. त्रिकाल भवंता ने महिला साध्वियों का अलग परी अखाड़ा बना रखा है. बाल साध्वी राधा देवी की दिव्य कथाएं सुनाने के प्रचार वाले पोस्टर कई जगह चस्पां थे. मां कनकेश्वरी देवी के रामकथा वाले बड़ेबड़े होर्डिंग्स लगे थे. दुनियाभर से आस्था के नाम पर 58 दिन तक जुटे लाखों लोगों की जेबों से पैसा निकलवाने के लिए प्रचार तंत्र की जरूरत तो है ही इस के लिए पहले साधुओं, गुरुओं को प्रचार सामग्री पर इन्वैस्ट करना पड़ता है. ये सब देख कर लग रहा है कि देश में अन्य उद्योगों से फायदा हो न हो, पर अंधविश्वास की इंडस्ट्री खूब फल रही है.