इस देश में आस्था एक नशा, वहम और बीमारी की तरह धर्मांध लोगों की नसों में उतर चुकी है. इसी आस्था का जानलेवा जहर मध्य प्रदेश के रतनगढ़ में उस समय कई लोगों की जान ले गया, जब दलितों का बड़ा जत्था मोक्ष की आस में भगदड़ में रौंदा गया. अंधविश्वासी दलितों को कैसा मोक्ष मिला, पढि़ए भारत भूषण श्रीवास्तव की रिपोर्ट में.

मध्य रेलवे के 2 बड़े जंक्शनों, ग्वालियर व झांसी के बीच स्थित दतिया रेलवे स्टेशन पर काफी कम रेलें रुकती हैं. मध्य प्रदेश के सब से छोटे और पिछड़े 5 जिलों में एक जिला दतिया भी है. यहां के लोग अपने शहर को बड़े फख्र से मिनी वृंदावन भी कहते हैं, क्योंकि शहर में इफरात से मंदिर हैं. दतिया से संबंध रखती एक और दिलचस्प बात स्थानीय लोगों का फोन पर हैलो की जगह ‘जय माई की’ संबोधन इस्तेमाल करना है.

यह माई यानी देवी शहर के बीचोंबीच बने मंदिर पीताम्बरा शक्ति पीठ में विराजती है जहां कोई न कोई तांत्रिक अनुष्ठान बारहों महीने चलता रहता है. रसूखदार नेता, अभिनेता, उद्योगपति, व्यापारी और खिलाड़ी भी पीताम्बरा के दर्शन के लिए खासतौर से आते हैं और महंगे अनुष्ठान करवाते हैं. कहा जाता है कि इस सिद्ध क्षेत्र में अनुष्ठान करवाने से मनोरथ पूरे होते हैं.

पीताम्बरा पीठ के बारे में यहां के लोग बगैर किसी हिचक के स्वीकारते हैं कि यह वीआईपी लोगों यानी पैसे वालों के लिए है. दरिद्रों और शूद्रों के मनोरथ पूरे करने के लिए दतिया से 55 किलोमीटर दूर जंगल में बना है रतनगढ़ देवी का मंदिर, जहां 13 अक्तूबर को पुल पर मची भगदड़ में लगभग 200 श्रद्धालु मारे गए.

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