शादियों का सीजन आते ही पंडेपुरोहित धार्मिक संस्कार के नाम पर शुभअशुभ मुहूर्त का जाल बुन कर लोगों को ठगने का कारोबार शुरू कर देते हैं. भारतीय जनमानस के दिलोदिमाग में पैठ बना चुके अंधविश्वास की बदौलत ये पंडे किस तरह धर्म और स्वार्थ के धंधे से अपनी जेबें भरते हैं, बता रहे हैं भारत भूषण श्रीवास्तव.
साल 2014 में कुल 90 दिन शादी की शहनाइयां बजेंगी. इन में सब से ज्यादा विवाह 17 जून को होंगे. साल 2013 में 126 दिन में शादियों के मुहूर्त थे. यह खबर पिछले दिसंबर से एक नियमित अंतराल से प्रकाशितप्रसारित की जा रही है और हर महीने पड़ने वाले तीजत्योहारों पर इस का अलगअलग तरह से दोहराव होता रहेगा. बड़े पैमाने पर धुआंधार तरीके से इस खबर के प्रचारप्रसार का सीधा संबंध पंडों की दुकान से है जिन की आमदनी का एक बड़ा जरिया शादी कराना भी है.
पत्रपत्रिकाओं और न्यूज चैनल्स ने इस अनुपयोगी मसौदे को खबर बना कर बड़े दिलचस्प तरीकों से पेश किया. आम लोगों ने भी उतनी ही दिलचस्पी से इसे देखा, पढ़ा पर किसी ने यह सोचनेसमझने की न कोशिश की और न ही जरूरत समझी कि आखिरकार इस की उपयोगिता क्या थी.
जिन के यहां विवाह योग्य उम्मीदवार हैं उन्होंने तो बाकायदा ऐसी सभी खबरों की कतरन संभाल कर रखीं ताकि बातचीत के पहले दौर का काम संपन्न कर लिया जाए जिसे मुहूर्त कहते हैं. इंटरनैट इस्तेमाल करने वालों ने कतरन नहीं रखी क्योंकि यह जानकारी कई वैबसाइट्स पर मौजूद है.
दरअसल, इस प्रचार के पीछे पंडों का बड़ा हाथ और स्वार्थ है जिन का कारोबार चलता ही मुहूर्त से है. सदियों से ये लोग शुभ मुहूर्त में काम करवाने का धंधा कर रहे हैं और आम लोगों से मुहूर्त बताने के अलावा धार्मिक और गैर धार्मिक संस्कार संपन्न कराने की फीस वसूल रहे हैं.
मुहूर्त के कारोबार की बुनियाद अनिष्ट का डर और उस से बचना है. कोई नहीं चाहता कि भविष्य में उस के काम में किसी तरह के अड़ंगे पेश आएं. संभावित विघ्नों से बचने के लिए लोगों को पंडों के बताए समय में काम करने में कोई हर्ज नजर नहीं आता. लोगों का ऐसा मानना होता है कि मुहूर्त पर 2-4 हजार रुपए खर्च कर, काल्पनिक ही सही, परेशानियों से बचा जा सकता है तो सौदा घाटे का नहीं.
यह दीगर बात है कि परेशानियां ज्यों की त्यों हैं और शुभ मुहूर्त में काम करने के बाद भी होती हैं. लेकिन यह अंधविश्वास भारतीय जनमानस के दिलोदिमाग में पंडों ने कैंसर की तरह ठूंस रखा है ताकि उन की कमाई पर आंच न आए.
विवाह मुहूर्त का कारोबार
ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो छाती ठोंक कर दावे से कहते हैं कि हम अंधविश्वासी नहीं हैं पर बात शादी की हो या दूसरे शुभ कार्यों की, तो वे भी मुहूर्त के मुहताज दिखते हैं और तुरंत किसी पंडे के पास भागते हैं. मुहूर्त पूछने की दक्षिणा देते हैं, उस के पैर भी छूते हैं और कुछ ऐडवांस दे कर पंडे की बुकिंग भी करा आते हैं. इन पढ़ेलिखे लोगों के अंधविश्वास से दूर रहने के दावे पर तरस ही खाया जा सकता है. जबकि उस प्रचारप्रसार पर चिंता जताई जा सकती है जो लगातार चलता रहता है, और जिस के झांसे में लोग आते रहते हैं.
यह मुहूर्त आता कहां से है, इस की जानकारी आम लोगों को नहीं रहती, सिर्फ पंडों को रहती है, जो संगठित हैं. देश के प्रमुख धार्मिक मठों से एक फतवा सा जारी होता है कि साल 2014 में केवल इन 90 दिनों में शादियां होंगी क्योंकि ये शुभ हैं और देखते ही देखते सट्टे के नंबरों की तरह मुहूर्त देशभर में फैल जाता है.
शादियों के मद्देनजर देखें तो यह एक तरह की साजिश ही है जिस का मकसद यह है कि पंडों की कमाई ज्यादा से ज्यादा हो. 2013 के मुकाबले 2014 में 46 दिन शादियों के घट गए हैं. इस से होगा यह कि शादियों का खर्च कई गुना बढ़ जाएगा. एक दिन में शादियां ज्यादा होंगी तो टैंट, कैटरर्स, कपड़े, कार्ड, मैरिज हौल, बैंडबाजे, घोड़ीघोड़ा समेत शादी से जुड़े तमाम खर्चे बढ़ जाएंगे और अफरातफरी मचेगी सो अलग.
भाव पंडों के भी बढ़ेंगे जो एक दिन में 4-5 शादियां कराते हैं और प्रति शादी 1,100 से ले कर 11 हजार रुपए तक फीस (यजमान की हैसियत और भावताव के मुताबिक) वसूलते हैं. यह कारोबार भी डिमांड ऐंड सप्लाई के सिद्धांत पर चलता है. अगर एक दिन में एक शहर में 1 हजार शादियां हैं तो लोग पंडों के मुहताज स्वाभाविक तौर पर हो जाएंगे. हर भारतीय जानता है कि दक्षिणा ज्यादा दी जाए तो पंडा उन के माफिक मुहूर्त निकाल देता है, इसी से मुहूर्त की औचित्यता व बकवास दोनों साबित हो जाते हैं.
शादी के मुहूर्त को ले कर पंडों ने तरहतरह के दुष्प्रचार फैला रखे हैं कि गलत यानी अशुभ ग्रहनक्षत्रों में परिणय हुआ तो उस का टूटना या बिगड़ना तय है, पति व पत्नी के बीच अनबन चलती रहेगी, बच्चे नहीं होंगे और क्लेश होता रहेगा.
कोई पंडा गारंटी नहीं देता कि शुभ मुहूर्त में शादी कराए जाने पर वरवधू का दांपत्य अच्छा गुजरेगा. तलाक के लाखों मुकदमे अदालतों में चल रहे हैं, वे सभी अशुभ मुहूर्त के नहीं हैं बल्कि 90 फीसदी शुभ मुहूर्त के ही निकलेंगे जो पंडों की कराई शादी के होंगे. इस बात पर चूंकि अभी तक कोई उपभोक्ता फोरम नहीं गया है, इसलिए पंडे बेफिक्र रहते हैं.
इस बेफिक्री की दूसरी बड़ी वजहें भी हैं. मसलन, पंडा कह सकता है कि वरवधू के भाव शुभ नहीं थे, उन्होंने समय पर अक्षत नहीं डाले थे, जनेऊ विधिवत नहीं बांधा था, मन में हमारा बतलाया मंत्र नहीं दोहराया था या फिर कन्यादान लेने वाले ने व्रत तोड़ दिया होगा, वगैरहवगैरह.
ये बातें बताती हैं कि समाज को पिछड़ा रखने में सब से बड़ा योगदान पंडों का है जो अपने धंधे की खातिर किसी भी हद तक जा सकते हैं और जाते भी हैं. लोगों के पारिवारिक और सामाजिक जीवन को दुष्कर बना कर पैसे ऐंठना ही जिन्होंने व्यापार बना रखा हो तो उन से तो भगवान, यदि है, भी नहीं जीत सकता.
यही पंडे रामसीता के वनवास पर ग्रहनक्षत्रों की गणना कर बताते हैं कि तत्कालीन यानी त्रेता युग के पंडों ने कहां चूक की थी. कहीं चूक हुई थी, यह तो वे मानते हैं पर उस की जिम्मेदारी नहीं लेते उलटे, देवीदेवताओं  तक की शादियों का हवाला दे कर लोगों को डराते रहते हैं कि देखो, अशुभ मुहूर्त में शादी करने से तो देवता लोग भी रोए और झींके थे.
यानी चित भी मेरी और पट भी मेरी और सिक्का मेरे बाप का की तर्ज पर काम होता है. इसीलिए लोगों को उन्होंने मुहूर्त का गुलाम बना कर रख दिया है. गर्भ में आने से ले कर श्मशान तक आदमी मुहूर्त के नाम पर पंडों को दक्षिणा देता रहता है. नाम रखने का मुहूर्त, पहली बार अन्न खाने का मुहूर्त, स्कूल जाने का मुहूर्त, जनेऊ पहनने का मुहूर्त, गृहप्रवेश का मुहूर्त आदि. आलम यह है कि सिर्फ शौच जाने की मुहूर्तबाध्यता नहीं है क्योंकि प्राकृतिक दबाव के चलते लोग उस का पालन नहीं कर पाएंगे. मुहूर्त का यह अवैज्ञानिक कारोबार बताता यह है कि पंडे भारतीय समाज को सभ्य और तार्किक कभी नहीं होने देंगे.

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