पहले योग फिर कारोबार करने वाले रामदेव ‘बाबा’ के मुखौटे में विशुद्ध व्यापारी है. खरबों रुपए के ढेर पर बैठे इस योगगुरु को यह कामयाबी योग के दम पर नहीं बल्कि कारोबार के जरिए मिली है. कई तरह की हेरफेर के चलते कानूनी मुश्किलों से घिरे रामदेव भविष्य में कानूनी शिकंजे से बचने के लिए किस तरह सियासी दलों में सेंध लगा रहे हैं, पढि़ए भारत भूषण श्रीवास्तव के लेख में.

नवंबर महीने के तीसरे हफ्ते में उत्तराखंड सरकार द्वारा हरिद्वार में योगगुरु रामदेव और उन के संस्थानों के खिलाफ 23 मामले और दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते में 11 मामले दर्ज किए गए. तब तिलमिलाए रामदेव की प्रतिक्रिया हमेशा की तरह यही थी कि यह सब सोनिया गांधी के इशारे पर हो रहा है. इस तरह की प्रतिक्रिया की आम और खास सभी लोगों को अपेक्षा थी जिस का सार यह है कि अगर नरेंद्र मोदी या दूसरा कोई भाजपाई नेता प्रधानमंत्री होता तो एक हिंदू योगगुरु के संस्थानों पर छापा मारने की जुर्रत कोई राज्य या केंद्र सरकार न करती. महज इसलिए रामदेव चाहते हैं और हाड़तोड़ मेहनत भी कर रहे हैं कि कैसे भी हो, केंद्र और सभी राज्यों में भाजपा की सरकारें हों.

इन छापों का सच क्या था, इस से पहले संक्षिप्त में यह समझ लेना जरूरी है कि बारबार सोनियाराहुल गांधी को कोस कर रामदेव साबित क्या करना चाहते हैं और उन का असल मकसद क्या है? दरअसल, रामदेव दूसरे कई बाबाओं की तरह बड़े कारोबारी हैं. कारोबारी होना हर्ज या एतराज की बात नहीं पर कर चोरी करना, जमीनों के सौदों में हेरफेर करना और राजस्व न चुकाना, ये जरूर एतराज की बातें हैं, जिन पर से आम लोगों का ध्यान बंटाते रामदेव, सोनियाराहुल पर दोष मढ़ते रहते हैं. मंशा यह जताना रहती है कि चूंकि वे हिंदू हैं, योगगुरु हैं इसलिए विदेशी मूल की सोनिया गांधी को यह रास नहीं आता. नतीजतन, परेशान करने के मकसद से उन के यहां छापे पड़वाए जाते हैं.

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