कुश्ती महासंघ के चुनाव से यह साबित हो गया कि जब ताकतवर महिलाएं अपनी कानूनी लड़ाई नहीं लड़ पाईं तो कमजोर महिलाओं की क्या बिसात है. कुश्ती महासंघ के चुनाव में संजय सिंह के अध्यक्ष चुने जाने के बाद कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन करने वाली महिला पहलवान बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक ने निराशा जाहिर की. कुश्ती महासंघ के चुनावी नतीजे आने के बाद साक्षी मलिक ने विरोध में कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा कर दी.

साक्षी ने कहा कि ‘हम महिला अध्यक्ष चाहते थे लेकिन बृजभूषण शरण सिंह जैसे व्यक्ति के बिजनेस, साझीदार और करीबी सहयोगी को अध्यक्ष चुना गया. चुनाव जीते संजय सिंह के पक्ष में 40 वोट मिले और उन के मुकाबले चुनाव लड़ी अनीता को केवल 7 मत मिले. हम महिला अध्यक्ष चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसलिए मैं कुश्ती से संन्यास ले रही हूं.’

विनेश फोगाट ने भी निराशा जाहिर करते कहा कि ‘मुझे नहीं पता कि मुझे अपना कैरियर जारी रखना है या नहीं. उभरती हुई महिला पहलवान भी शोषण का सामना करेंगी.’

महिलाओं का साथ नहीं देता समाज

महिला पहलवानों की हार कोई नई बात नहीं है. महिलाओं को मजबूती देने के लिए कई कानून बने हैं लेकिन यह कानून महिलाओं को उन के अधिकार नहीं दिला पा रहे हैं. ताकतवर धार्मिक और सामाजिक सोच के सामने महिलाओं के अधिकार और कानून ढेर हो जाते हैं.

पिछले 10 सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 75 फीसदी तक वृद्धि हुई है. सब से प्रमुख बात यह है कि किसी भी तरह के अपराध या महिला पर हो रहे अत्याचार के लिए महिला को ही जिम्मेदार मान लिया जाता है. महिलाओं को समाज में दोयम का माना जाता है. पुरुषों द्वारा किए जाने वाले मारपीट और अत्याचार को सहन करने की सामाजिक स्वीकृति मिलने लगती है. इस वजह से महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ता है.

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