द्रमुक सांसद दयानिधि मारन ने कहा, “जो भी लोग उत्तर प्रदेश या बिहार में हिंदी सीखते हैं वे तमिलनाडु में आ कर शौचालय साफ करने, रोड साफ करने या फिर कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में मजदूरी करने का काम करते हैं.”

मारन का यह बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है और इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी बवाल काट रही है. वह इस पर पूरे 'इंडिया' गठबंधन को कटघरे में खड़ा करने को उतावली है. बीजेपी का कहना है कि दयानिधि मारन मातृभाषा हिंदी का अपमान कर रहे हैं, उत्तर भारतीयों का अपमान कर रहे हैं, भाषा-जाति के आधार पर देश को बांटने में लगे हैं.

द्रमुक सांसद की टिप्पणी बेहद आपत्तिजनक है. इस में हिंदीभाषी लोगों के लिए अपमानजनक संदर्भ हैं. मारन के बयान के रूप में बीजेपी के हाथ 'इंडिया' गठबंधन को घेरने का हथियार लग गया है, जिसे वह सोशल मीडिया पर भांज रही है.

दयानिधि मारन के बयान पर गंभीरता से सोचें तो उन की बात में गलत कुछ भी नहीं है. उन्होंने एक लाइन में सिर्फ सचाई बयान की है. मगर सच कड़वा होता है. जनता को झूठ की चाशनी चटाने वाली बीजेपी नहीं चाहती कि सच का स्वाद जनता चख ले और उस की आंखें खुल जाएं. इसलिए दयानिधि मारन के बयान को गरीबों का, हिंदीभाषियों का, मजदूर तबके का, उत्तर भारत का अपमान बता कर बीजेपी तिल का ताड़ बनाने में लगी है.

दयानिधि मारन के बयान का निहितार्थ समझने की जरूरत है. मारन ने अपने तीखे बोलों में सही शिक्षा की तरफ इशारा किया है, जो इतने साल के शासन के बाद भी बीजेपी शासित राज्यों में बच्चों को उपलब्ध नहीं है. मारन ऐसी शिक्षा की बात कर रहे हैं जो उच्च पदों के दरवाजे युवाओं के लिए खोले.

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