वैसे तो 2014 में आमचुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में केवल 2 सीटें ही मिली थीं. इसके बाद भी 2019 के आमचुनाव में केन्द्र में सरकार चला रही भाजपा के लिये कांग्रेस ही दुश्मन नम्बर एक है. राजस्थान, छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव की हार ने भाजपा को अंदर तक हिला कर रख दिया है.

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को देखें तो यहां पर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला होता है. पहले भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन की योजना बनी थी. बिहार की तर्ज पर बन रहे महागठबंधन में सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ कुछ छोटे दलों के शामिल होने की बात चली थी.

सपा-बसपा ने बडे उपेक्षित भाव से कांग्रेस को गठबंधन में महत्व दिया. जिसकी वजह से कांग्रेस ने राजस्थान, छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश में सपा-बसपा से कोई तालमेल नहीं किया. चुनाव के पहले यह लग रहा था कि कांग्रेस को इस गठबंधन न करने का नुकसान होगा. वह भाजपा को हराने में सफल नहीं होगी.

लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जाने वाले इन चुनावों में जनता ने सबसे अधिक भरोसा कांग्रेस पर दिखाया. उसी वजह से कांग्रेस ने भाजपा से तीनों राज्य छीन लिये. बसपा ने छत्तीसगढ में अजीत जोगी के साथ मिलकर पूरे समीकरण को बदलने के लिये पूरा दमखम लगा दिया इसके बाद भी वहां की जनता ने कांग्रेस के अलावा दूसरे दलों पर भरोसा नहीं किया.

तीन राज्यों में जीत ने कांग्रेस को यह भरोसा दिला दिया कि मोदी को हराया भी जा सकता है. इन तीन राज्यों में लोकसभा की 65 सीटें हैं. उसके मुकाबले अकेले उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं.

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