हिन्दी पट्टी के जिन तीन अहम राज्यों में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली, उनमें कल तक नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलना किसी ईश निंदा से कम नहीं माना जाता था. इन्हीं राज्यों से साल 2013 से मोदी लहर शुरू हुई थी जो 2014 में एक आंधी में तब्दील हो गई थी. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो सालों बाद कांग्रेसी सरकारें हैं और लोग खुलकर बोलने लगे हैं. लोकतंत्र के असल माने भी यही हैं कि जनता अपनी बात बिना किसी डर के कहे, लेकिन हो यह रहा था कि किसी की हिम्मत नरेंद्र मोदी के बेतुके फैसलों पर भी अपनी राय या प्रतिक्रिया देने तक की नहीं पड़ रही थी.

नोट बंदी के फैसले पर जिसने करोड़ों लोगों को परेशान कर दिया और लाखों को बेरोजगार कर दिया कोई कुछ नहीं बोला था. मोदी भक्तों ने इसे दूरगामी नतीजे देने वाला प्रचारित किया था, यह वह वक्त था जब लोग मन ही मन सुलग रहे थे. इस आक्रोश को आंदोलन में तब्दील होने से रोकने खुद नरेंद्र मोदी मंच से रो दिये थे. इस पर भावुक जनता ने उन्हें माफ कर दिया था और तमाम बातों विवादों और बहसों के बीच आई गई हो गई थी.

भगवा खेमे ने इस घटना से कोई सबक सीखने के बजाय यह मान लिया था कि ब्रांड मोदी का मैजिक बरकरार है और नरेंद्र मोदी एक विकल्पहीन नेता हैं. कई भाजपाइयों ने तो उन्हें अवतार और भगवान तक कहना शुरू कर दिया था. अब तक मोदी भक्तों की खासी फौज भी तैयार हो गई थी, जो यह बताती रहती थी कि सही मानों में भारतीय या हिन्दू प्रधानमंत्री तो पहली बार मिला है जो देश की तकदीर और तस्वीर बदलकर रख देगा, जरुरत उसे सहयोग देने और उसकी हां में हां मिलाते रहने की है.

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