विधान परिषद और राज्य सभा को विधानसभा और लोकसभा का पिछला दरवाजा कहा जाता है. जो नेता चुनाव जीत कर सदन में पहुंचने की हालत में नहीं होते हैं, राजनीतिक पार्टियां उनके लिए इस पिछले दरवाजे का प्रयोग करती हैं. भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित दो उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और डाक्टर दिनेश शर्मा और दो मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, मोहसिन रजा विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में शपथ ग्रहण के 6 माह के अंदर इनको विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य होना जरूरी होता है. भाजपा के यह महारथी जनता के वोट से चुन कर विधानसभा सदस्य न बन कर विधायकों के वोट से चुन कर विधानपरिषद के सदस्य बनेंगे.

मजेदार बात यह है कि भाजपा ने विधान परिषद की इन सीटों को सपा बसपा के नेताओं से तोड़फोड़ कर खाली कराई है. समाजवादी पार्टी के 4 सदस्यों यशंवत सिंह, बुक्कल नवाब, सरोजनी अग्रवाल और अशोक वाजपेई सहित जयवीर सिंह ने अपनी सीट से इस्तीफा दिया. अब इन सीटों के जरीये ही भाजपा अपने 5 महारथियों को विधानसभा के पिछले दरवाजे से सदन में भेजेगी. विपक्ष कहीं से रास्ते में रोडा न बने, इसके लिये सभी सीटों पर अलग अलग चुनाव की व्यवस्था की गई है. तकनीकी रूप से भले ही भाजपा अपनी जीत तय करने में सफल हुई है पर सिद्वांतों के आधार पर उसको समझौते करने पड़े हैं. विरोधी पार्टी के सदस्यों ने अपनी सीटों से त्यागपत्र देकर भाजपा की सदस्यता भी ली है. इससे साफ है कि इस्तीफा योजना के अनुसार दिया गया था.

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