साल 2014 में जो गरीबी और बदहाली भ्रष्टाचार खत्म कर और विदेशों में जमा काला धन वापस लाकर हरेक के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने का सपना दिखाकर खत्म करने की बात की जा रही थी उसका तरीका अब बदल दिया गया है.

पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर गरीबी दूर करने की वकालत करते केंद्रीय पर्यटन मंत्री केजे अलफ़ान्स ने बड़ी मासूमियत से कहा कि जो लोग कार और बाइक चलाते हैं वे भूखे नहीं मर रहे हैं और पेट्रोल डीजल खरीदने की हैसियत रखते हैं, वे बढ़े दामों का भुगतान कर सकते है और उन्हें यह करना ही पड़ेगा.

आम लोगों का क्या है, वे वही करेंगे जो अलफ़ान्स जैसे मंत्री लगभग धमका कर कह रहे हैं, वे सहारा और माल्या जैसे खास तो हैं नहीं जो सरकार यानि जनता के अरबों रुपये डकार जाएं, वे अंबानी या रामदेव जैसे कारोबारी भी नहीं हैं जो आकाश, वायु, जल, अग्नि और धरती तक खरीदने की हैसियत रखते हैं. इसलिए उन्हें 80 रुपये लीटर का पेट्रोल खरीदकर अपने देशप्रेम और भक्ति को दिखाना ही होगा, नहीं तो उनके पास उन देशों में जाकर बसने का विकल्प सरकार ने अभी छीना नहीं है, जहां पेट्रोल डीजल सस्ते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के गुब्बारे की हवा तो कभी की निकल चुकी है, अब तो उस गुब्बारे को पंखों की हवा देकर जमीन पर गिरने से रोका जा रहा है. सोशल मीडिया पर मोदी के भक्त दुम दबाकर भागने लगे हैं और खुद भी ऐसी मजाकिया, लेकिन गंभीर पोस्टों को इधर से उधर कर रहे हैं कि मोदी राज में पेट्रोल डीजल भले ही महंगा हो गया हो पर उसकी क्वालिटी अच्छी है और इंजन भी खराब नहीं होता.

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