संसद की सुरक्षा में सेंध मामले में मोदी सरकार पर आक्रामक विपक्ष के दो तिहाई सदस्यों को सदन से बाहर कर लोकसभा में भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने वाले तीन विधेयक लोकसभा की पटल पर फिर से रख कर बिना किसी चर्चा के पास करवा लिए गए. इस से पहले इन बिलों को संशोधनों के साथ 11 अगस्त को लोकसभा में पेश किया गया था जहां से उन्हें स्थायी समिति को भेजा गया था.

गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि विधेयकों की स्थायी समिति द्वारा जांच की गई थी और आधिकारिक संशोधनों के साथ आने के बजाय, नए विधेयकों को लाने का निर्णय किया गया. गृहमंत्री के मुताबिक भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023 का उद्देश्य आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम को प्रतिस्थापित करना है. चूंकि अब प्रौद्योगिकी और सूचना का युग है इसलिए विधेयक में कई प्रावधान डिजिटल रिकौर्ड, लैपटौप के उपयोग को बढ़ावा देने को सुनिश्चित करते हैं. नए प्रावधानों के तहत परीक्षण डिजिटल रूप से हो सकता है.

जम कर विरोध

सदन में विपक्ष की अनुपस्थिति में बिना किसी चर्चा के विधेयकों को पास करा लेने के सरकार के कदम की घोर निंदा और विरोध शुरू हो गया है. सदन के बाहर निलंबित सांसदों ने तख्तियां ले कर सरकार के विरुद्ध जैम कर नारेबाजी की. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि 'दमनकारी' विधेयकों को चर्चा के बिना पारित कराने के लिए ही सदन से विपक्ष का सफाया किया गया है.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, "वे (बीजेपी) जानबूझ कर सबको निलंबित कर रहे हैं. उन की मंशा है कि वे (बीजेपी) आपराधिक प्रक्रिया को लेकर जो तीन कानून ला रहे हैं उस पर कोई विरोध न हो. सब को बाहर निकाल कर वे तानाशाही करने की कोशिश कर रहे हैं. लोकतंत्र में ऐसा नहीं हो सकता, आज नहीं तो कल उन पर यह भारी पड़ेगा."

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