Students Movement :  आजादी से पहले और बाद में भारत में जितने भी सोशल मूवमेंट हुए, उन में स्टूडैंट्स की भूमिका बहुत अहम रही है फिर चाहे वह नव निर्माण मूवमेंट हो, बिहार स्टूडैंट मूवमेंट हो, असम मूवमेंट हो या फिर रोहित वेमुला की मौत पर विरोध प्रदर्शन. लेकिन अब ये स्टूडैंट मूवमेंट गायब होने लगे हैं, क्यों?

एक समय था जब स्टूडैंट मूवमेंट अच्छीखासी संख्या में हुआ करते थे. इमरजेंसी के विरोध में बाद जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्टूडैंट्स ने इमरजेंसी के खिलाफ मूवमेंट किया. इस मूवमेंट ने इतना बड़ा रूप ले लिया था कि इंदिरा गांधी तक को स्टूडैंट्स के प्रेसिडेंट तक से मिलना पड़ गया था. क्यूंकि उस समय स्टूडैंट प्रेजिडेंट की एक वैल्यू होती थी.

दरअसल, स्टूडैंट सिर्फ एक स्टूडैंट नहीं है वो एक नागरिक भी है. अगर उसे अपनी यूनिवर्सिटी में या शिक्षा के क्षेत्र में या फिर देश में कुछ भी गड़बड़ होते दिख रहा है. या उसे लगता है कि ये गलत हो रहा है इसे बदला जाना चाहिए, तो इस पर स्टूडैंट्स को सवाल उठाने का पूरा अधिकार होता है. स्टूडैंट अगर किसी यूनिवर्सिटी कैंपस में पढ़ाई कर रहा है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो वहां सिर्फ पढ़ाई ही करेगा. अगर उन्हें लग रहा है कि इस यूनिवर्सिटी में किसी स्टूडैंट के साथ कुछ गलत हो रहा है या वहां कुछ ऐसा हो रहा है जो स्टूडैंट्स के फेवर में नहीं है, तो उन्हें आवाज उठाने का पूरा हक़ है. अपने इसी हक़ का इस्तेमाल करते हुए पहले खूब स्टूडैंट मूवमेंट हुआ करते थे.

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