ये फैसला मेहनतकश लोगों और उन गरीबों के पेट पर लात मारने जैसी बात है जो जाति से ब्राह्मण नहीं है. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के ठीक 2 दिन पहले राज्य के पंडे पुजारियों को उनके पूजा पाठ का फल दे दिया है. फल भी ऐसा कि हर किसी को अपने पुजारी न होने पर पछतावा हो और अगले जनम में ब्राह्मण कुल में पैदा होकर पुजारी बनने के लिए ज्यादा से ज्यादा दान दक्षिणा मंदिरों में चढ़ाएं. अब राज्य के पुजारियों को पेट भरने की नहीं बल्कि भाजपा को वोट दिलवाकर फिर से सत्ता में लाने की चिंता है, जिससे आगे भी उन्हें मुफ्त की मलाई मिलती रहे और वे बेफिक्र होकर काम धंधा और मेहनत किए बगैर मुफ्त के माल पुए उड़ाते रहें.

एक झटके में राज्य सरकार ने कैसे पुजारियों को मालामाल कर दिया है उसे इस फैसले से आसानी से समझा जा सकता है जिसके तहत –

  • ऐसे मंदिर जिनके पास खेती किसानी की जमीन नहीं है उनके पुजारियों को सरकार हर महीने 3 हजार रु देगा.
  • जिन मंदिरों के पास पांच एकड़ तक की जमीन है उनके पुजारियों को 2100 रु महीने के देगी.
  • जिन मंदिरों के पास 5 से 10 एकड़ तक की जमीन है उन्हें उनके पुजारियों को 1500 रु हर महीने दिये जाएंगे.
  • और जिन मंदिरों के पास 10 एकड़ से ज्यादा का रकबा है उनके पुजारियों को 500 रु महीना सरकारी खजाने से दिया जाएगा.

सरकारी मेहरबानियों का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हो जाता बल्कि सरकार पुजारियों को देश भर के तीर्थ स्थल भी मुफ्त में घुमाएगी और जिन पुजारियों के पास अपने मकान नहीं हैं उन्हें गांवों में मुख्यमंत्री आवास योजना के और शहरों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान भी बनाकर देगी. साल में दो बार सरकारी खर्चे पर पुजारियों की सेहत की जांच होगी. इस फैसले में सरकार ने यह व्यवस्था भी कर दी है कि पुजारी मंदिरों की 10 एकड़ तक की जमीन की पैदावार यानि आमदनी खुद रखेंगे और जमीन 10 एकड़ से ज्यादा हो तो उसे जब चाहें नीलाम कर सकते हैं. अब ग्राम सभाएं न तो पुजारियों की नियुक्ति कर सकती हैं और न ही उन्हें हटा सकती हैं.

तिहरी होगी आमदनी – जाहिर है अब राज्य का हर पुजारी लाखों करोड़ों में खेलेगा वजह उसे तिहरी आमदनी होगी. भक्त जो दान दक्षिणा चढ़ावा बगेरह देते हैं वह तो उसका होता ही है लेकिन अब एक तरह से पुजारियों को मंदिरों की जमीनों का भी मालिकाना हक दे दिया है और इशारा यह भी किया है कि इस बार भी भाजपा सत्ता में आई तो अगली बार उन्हें कृषि ऋण पुस्तिकाएं भी दी जाएंगी. पुजारियों को दूसरी बड़ी आमदनी इन्हीं जमीनो से होगी और तीसरा जरिया इस फैसले से उजागर हो ही गया है कि उन्हें नगदी पैसा भी सरकार देगी.

एक छोटे से छोटे मंदिर में भी रोजाना 500 रु से कम का चढ़ावा नहीं आता सीजन यानि धार्मिक तीज त्योहारों के दिनों में तो इसकी तादाद 50 गुना तक बढ़ जाती है अब अगर औसतन हजार रु रोज की भी दान दक्षिणा आई तो पुजारी जी को कम से कम 60 हजार रु महीने की आमदनी होगी जो मेहनत मजदूरी करने बाले दूसरे लोगों के लिए सपना होती है और मुफ्त की ज़मीनों की पैदावार भी 20 हजार रु एकड़ से कम नहीं होती. इतनी पगार राज्य के 80 फीसदी मुलाजिमों को भी नहीं मिलती.

अलावा इसके पुजारियों को भक्त गण समय समय पर गौ दान वस्त्र दान भूमि दान स्वर्ण दान जैसे दर्जनों दान करने की अपनी लत से बाज नहीं आते यानि पुजारियों की बल्ले बल्ले हो गई है.

यह मेहरबानी क्यों – चुनावी लिहाज से देखें तो भाजपा और शिवराज सिंह कोई जोखिम जीत के बाबत नहीं उठाना चाहते. राज्य के कोई घोषित 55 हजार और अघोषित एक लाख मठ मंदिर भाजपा के प्रचार के अड्डे शुरू से ही रहे हैं. अब कोई 5 लाख वोटों का इंतजाम तो भाजपा ने कर ही लिया है लेकिन उम्मीद ही नहीं बल्कि गारंटी भी है कि एक फैसले से मालामाल हो गए ये पुजारी जमकर भाजपा का प्रचार पूजा पाठ से भी पहले करेंगे. एक तो सरकारी एहसान का बदला वे चुकाएंगे दूसरे भाजपा उन्हें कभी निराश नहीं करती वह हर कभी हर कहीं धार्मिक जलसे करती रहती है जिससे दान दक्षिणा इन्हीं पंडे पुजारियों के खीसे में जाता है.

चुनाव से हटकर देखें तो भी भाजपा और साधू संतों और महंतो का याराना हमेशा से ही  शोले फिल्म के जय और वीरू जैसा रहा है . शिवराज सरकार के ताजे फैसले ने तो इस दोस्ती का रंग और गाढ़ा करते मेसेज दे दिया है कि धर्मतंत्र लोकतन्त्र पर भारी पड़ता है और विपक्षी दल भी वोट खोने के डर से इसका विरोध नहीं कर पाते उल्टे बयान यह देते हैं कि सत्ता में आए तो वे भाजपा से ज्यादा ही धर्म के इन दुकानदारों को देंगे. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी यही इशारा किया तो साफ हो गया कि उनमें इस गलत और ज्यादती करते फैसले का विरोध करने का माद्दा ही नहीं है और इसीलिए कांग्रेस भाजपा से मुंह की खाती रही है .

अलोतांत्रिक फैसले पर खामोशी क्यों – कांग्रेस ही नहीं बल्कि कोई दूसरा दल या संगठन भी  इस फैसले पर एतराज जताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा वजह सब के सब सिरे से धर्म के गुलाम हैं . किसी ने यह सवाल नहीं किया कि पुजारियों को सरकारी नौकरों की तरह तनख्वाह क्यों वे सरकार के लिए करते क्या हैं जो वह करदाताओं का पैसा उन लोगों पर लुटा रही है जिनकी गुजर बसर का इंतजाम तो भगवान और धर्म के ठेकेदारों ने पहले से ही कर रखा है क्योंकि वे पंडे पुजारी हैं.

एक आम आदमी धर्म के खौफ के चलते मंदिरों में मेहनत की कमाई दक्षिणा की शक्ल में दे और सरकार भी उसी के टेक्स का पैसा पुजारियों को दे यह कहां लिखा है. सरकारी पैसे का इस्तेमाल जाति और धर्म से परे सभी के भले के लिए हो बात समझ आती है कि सरकार कुछ कर रही है लेकिन सरकार के लिए कुछ न करने बालों को मुफ्त की मलाई देने की तुक समझ से परे है .

पूजा पाठ या भगवान की मूर्तियों की देखभाल कोई सरकारी काम नहीं नहीं है बल्कि एक ऐसा आदिम धंधा या कारोबार है जिसमें धर्म का डर दिखाकर तरह तरह से आम लोगों को लूटा जाता है इसमे सरकार भी शामिल हो गई है तो बात चिंता की है और इस पर एतराज भक्तों को भी जताना चाहिए कि जब हम पुजारी को दान दक्षिणा देते ही हैं तो हमारे ही पैसे को और क्यों सरकारी तौर पर लुटाया जा रहा है.

क्या सरकार इन पुजारियों से उनकी तिहरी आमदनी का हिसाब लेगी जाहिर है नहीं उनकी तो सारी आमदनी टैक्स फ्री है. जो जमीने मंदिरों की हैं वे पूरे लोगों की क्यों नहीं, इन्हें सहकारिता के सिद्धांतों के तहत सार्वजनिक भले के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल किया जा सकता. दरअसल ये और ऐसे कई सवाल ही बेहूदे हैं जो धर्म के धंधेबाजों को हिलाकर रख देते हैं और वे हाय हाय करते सड़कों पर आकर विरोध करने लगते  हैं.

फिर आरक्षण का विरोध क्यों –  जातिगत आरक्षण और एक्ट्रोसिटी एक्ट को लेकर पूरे देश के सवर्ण और दलित आमने सामने हैं.  सवर्ण दलितों की काबिलियत पर निशाना साधते हैं तो जागरूक दलित भी पूछने लगा है कि लाखों करोड़ों मंदिरों में सदियों से मंदिरों में बैठकर ब्राह्मण भी जाति की बिना पर जो मुफ्त की मलाई खा रहे हैं वह भी आरक्षण नहीं तो क्या है और उस पर भी हमें मंदिरों में दाखिल नहीं होने दिया जाता और धर्म के नाम पर कैसे कैसे जुल्मो सितम ढाये जाते हैं यह हकीकत किसी से छिपी नहीं है.

जागरूक दलितों का यही तबका अब मंदिरों और पंडे पुजारियों के बहिष्कार की बात करने लगा है.

शिवराज सिंह ने इन और ऐसे कई विस्फोटक हालातों को नजरंदाज करते पुजारियों की झोली भर दी है तो याद रामायण और महाभारत काल की भी आती है जिनमें राजा इसी तरह पंडे पुजारियों पर खजाना लुटा दिया करते थे क्योंकि वे आम लोगों को धर्म कर्म में उलझाए रखते थे जिससे वे राजा की गलत नीतियों , मनमानी , अत्याचार और अय्याशियों का विरोध न करें. सत्ता के ये दलाल  दैवीय प्रकोपों का डर दिखाते जनता को पूजा पाठ यज्ञ हवन बगैरह में उलझाए रखते थे. यही अब हो रहा है तो लोकतन्त्र के माने क्या.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...