सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफों का दौर खत्म होता दिख रहा है. कोर हिन्दुत्व के विषयों को छोड दे तो बाकी मुद्दों पर मोदी की तारीफ कम होती जा रही है. ‘मोदी भक्ती’ का यह युग नोटबंदी के बाद से प्रभावित होने लगा. नोटबंदी के 50 दिन के बाद मोदी का वादा टूटने से जनता में विरोध का स्वर दिखने लगा. नोटबंदी के बाद जीएसटी ने जिस तरह के कारोबार को प्रभावित किया उससे मोदी के समर्थन में आने वाले संदेश कम हो गये. मोदी का प्रचार करने वाला तंत्र अब महंगाई, अस्पताल में बच्चों की मौत, रेल दुर्घटनाओं पर जवाब देने में पिछड़ने लगा. सोशल मीडिया पर केवल हिन्दू मुसलिम ही ऐसा विषय बचा है जिसके जरीये मोदी सरकार की भक्ति होती दिख रही है. यही वजह है कि मोदी की भक्ति करने वाले बारबार इन मुद्दों को ही लेकर आते है.

आज के दौर में सोशल मीडिया की ताकत को सबसे अधिक प्रभावी माना जाता है. इसकी ताकत का अंदाजा इस बात से लग जाता है कि नेताओं ने खुद बड़ी संख्या में सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, इंस्ट्राग्राम, ट्विटर और वाटसएप पर अपने खाते बना लिये. यह बात और है कि खाते केवल दिखावा मात्र है. मोदी की जीत के बाद भाजपा ही दूसरे दलों के नेताओं ने सोशल मीडिया के प्रचार को अपना सबसे बड़ा हथियार बना लिया. इसके बाद भी वह जनता के सवालों का जबाव नहीं देते. वह केवल अपनी प्रचार वाली बात कहते हैं. इस वजह से इसका प्रभाव कम होने लगा.

पेट्रोल की बढ़ती कीमतों पर जब जनता ने भाजपा नेताओं के पुराने वीडियो और धरना प्रदर्शन के फोटो सोशल मीडिया पर वायरल किये, तो भाजपा नेता उसका जवाब देने की हालत में नहीं दिखे. अब हालत यह हो गई है कि मोदी गुणगान में उनके समर्थक हर बात पर वापस हिंदू मुसलिम में पहुंच जाते हैं. जानकार लोग कहते है कि नोटबंदी और जीएसटी को लेकर केन्द्र सरकार ने जिस तरह से काम किया उसका कोई अच्छा प्रभाव देश पर नहीं पड़ रहा. हर तरह का रोजगार प्रभावित हो रहा है. देश में बेरोजगारी और मंहगाई बढ़ रही है. केंद्र सरकार केवल आम परेशानियों से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...