राजनीतिक रसूख के चलते गंभीर अपराध के मामले कितने लंबे खींचे जा सकते हैं, 34 साल बाद कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को मिली सजा के फैसले से बड़ी और क्या मिसाल हो सकती है. इतने लंबे चले मामले के बाद अब जा कर सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है.

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़के दंगों में सज्जन कुमार मुख्य आरोपी थे. उन पर सिखों के खिलाफ दंगों को उकसाने और दंगाइयों को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप था.

दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत ने अप्रैल 2013 में सज्जन कुमार को बरी कर दिया था. फिर मामला हाई कोर्ट में लाया गया. सीबीआई ने सज्जन कुमार और 4 अन्य लोगों पर 5 लोगों की हत्या करने का आरोप लगाया गया था. यह हत्याएं दिल्ली के राजनगर इलाके में हुई थीं.

सज्जन कुमार का नाम सिख दंगों में पहले दिन से ही आ रहा था लेकिन राजनीतिक रसूख और सत्ता के सहयोग के चलते पहले तो उन्हें आरोपी ही नहीं बनने दिया गया. बाद में इस मामले की जांच के लिए बने नानावती आयोग की सिफारिश के बाद उसके के खिलाफ मामला दर्ज हुआ.

दिल्ली हाईकोर्ट ने सज्जन के अलावा 3 अन्य दोषियों, कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और कांग्रेस के बलवान खोखर को उम्र कैद की सजा को बरकरार रखा है. बाकी दो दोषियों, पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा 3 साज से बढा कर 10 साल कर दी. 1984 के सिख विरोधी दंगों में करीब 3000 लोगों को जानें गई थीं.

असल में सजा में देरी की प्रमुख वजह मुख्य आरोपियों का राजनीतिक रुतबा और सत्ता का भरपूर सहयोग है. मामले को लटकाया जाता रहा. गवाहों को डराया धमकाया जाता रहा. अदालत को प्रभावित करने के प्रयास किए गए. जांच में अड़चनें पैदा की जाती रहीं.

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