दिल्ली के आर्कबिशप अनिल काउटे को भी लोकतंत्र खतरे में दिखा तो उन्होंने एक चिट्ठी लिख डाली कि लोकतंत्र खतरे में है और 2019 में ईसाइयों को नई सरकार बनाने के लिए वोट करना चाहिए.

पिछले 4 सालों से ‘लोकतंत्र खतरे में है’ का जुमला खूब उछल रहा है. अब इस में ईसाई धर्मगुरु भी कूद पड़े हैं. इस पर आरएसएस की ओर से अपेक्षित जवाब यह आया कि धर्मांतरण और फंडिंग पर रोक लगने से पादरी घबराए हुए हैं. धर्मतंत्र और लोकतंत्र में कोई फर्क रह गया है, ऐसा लगता नहीं, लेकिन देश के अधिकतर दलित और आदिवासी क्यों मंदिरों से ज्यादा चर्चों को तवज्जुह देते हैं, यह आरएसएस कभी सोच ले तो उस की ‘लोकतंत्र खतरे में है’ वाली समस्या मिनटों में हल हो जाएगी.

रही बात अनिल काउटे की, तो हल्ला मचने पर उन्होंने बड़ी मासूमियत से सफाई दे डाली कि उन की चिट्ठी के गलत मतलब निकाले गए हैं और हर बार सरकार नई ही होती है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...