कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर अपने विचार देते हुए कहा है कि आम आदमी पार्टी ‘एक देश एक चुनाव’ का पुरजोर विरोध करती है. ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ संसदीय लोकतंत्र के विचार, संविधान की मूल संरचना और देश की संघीय राजनीति को नुकसान पहुंचाएगा.
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ त्रिशंकु विधायिका से निबटने में असमर्थ है. सक्रिय रूप से दलबदल विरोधी और विधायकों और सांसदों की खुली खरीदफरोख्त की बुराई को प्रोत्साहित करेगा. एक साथ चुनाव कराने से जो लागत बचाने की कोशिश की जा रही है वह भारत सरकार के वार्षिक बजट का मात्र 0.1 फीसदी है. इस के पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ को ले कर बनी उच्च स्तरीय समिति को पत्र में लिखा कि ‘संसदीय शासन व्यवस्था अपनाने वाले देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार के लिए कोई जगह नहीं है और उन की पार्टी इस का पुरजोर विरोध करती है.
‘एक साथ चुनाव कराने का विचार संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है. अगर एक साथ चुनाव की व्यवस्था लागू करनी है तो संविधान की मूल संरचना में पर्याप्त बदलाव की जरूरत होगी. जिस देश में संसदीय शासन प्रणाली अपनाई गई हो, वहां एक साथ चुनाव के विचार के लिए कोई जगह नहीं है. एक साथ चुनाव कराने के सरकार के ऐसे प्रारूप संविधान में निहित संघवाद की गारंटी के खिलाफ हैं.’
भाजपा समर्थन में क्यों
केंद्र की मोदी सरकार ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ अपनाने के पहले एक समिति का गठन किया है. इस के मुखिया पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है. देश के कुल 46 राजनीतिक दलों को भी अपने सुझाव देने के लिए कहा गया था. इन में से 17 राजनीतिक दलों ने अपने सुझाव समिति को सौंप दिए हैं. देश में बीते लंबे समय से एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए बहस जारी है. केंद्र की मोदी सरकार भी देश में विधानसभा और लोकसभा चुनावों को एक साथ करवाने के लिए समर्थन जता चुकी है. विभिन्न विपक्षी दलों ने इस कदम का विरोध भी किया है.
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