New Education Policy : रिया बिहार के एक छोटे शहर से आती है. पिता किसान हैं, मां गृहिणी. 12वीं के बाद वह एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी में दाखिल हुई, जहां नई शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत एक साल का कंप्यूटर एप्लिकेशन कोर्स पूरा होते ही उसे ‘सर्टिफिकेट औफ कम्प्लीशन’ मिल गया. रिया को लगा अब नौकरी मिलना आसान होगी.
रिया सोचती है, अब मैं अपने घर का खर्च उठा सकूंगी. कालेज की वैबसाइट ने लिखा था ‘जौब रेडी स्किल्स’.
रिया को एक ईकौमर्स कंपनी में डेटा एंट्री औपरेटर की नौकरी मिली, 10,000 रुपए महीना, 10 घंटे की शिफ्ट, कोई मैडिकल सुविधा नहीं.
रिया सोचती है, कोडिंग सीखी थी, उम्मीद थी कि कुछ क्रिएटिव करूंगी. लेकिन यहां मैं बस और्डर नंबर कौपीपेस्ट कर रही हूं.
दूसरी ओर, सुहैल एक सरकारी इंजीनियरिंग कालेज का छात्र है. नई शिक्षा नीति के तहत उस ने एआई और डेटा साइंस को चुन लिया क्योंकि यही आज का फ्यूचर है. कालेज में न लैब है, न प्रशिक्षित फैकल्टी. सिर्फ स्लाइड्स और पुराने नोट्स.
सुहैल ने एक दिन अपने प्रोफैसर से पूछा, ‘‘सर, हम प्रोजैक्ट कब बनाएंगे?’’
प्रोफैसर थोड़ा हंसते हुए बोले, ‘‘बेटा, प्रोजैक्ट यूट्यूब से ढूंढ़ लो, कालेज में उतना फंड नहीं है.’’
सुहैल ने खुद यूट्यूब और कोर्सएरा से सीखना शुरू किया. गूगल कोर्स किए. जिटहब पर कोड अपलोड किया. इंटरव्यू दिया. लेकिन कंपनियां कहती हैं, सरकारी कालेज और कोई औफिशियल प्रोजैक्ट नहीं, इसलिए नौकरी नहीं मिलेगी.
डिग्री तो है पर नौकरी कहां
यह सवाल आज लाखों भारतीय युवाओं की आंखों में ?ांकता है. उन्होंने मेहनत की, बोर्ड पास किया, यूनिवर्सिटी गए, डिग्री ली लेकिन जब नौकरी की बारी आई तो हर दरवाजा बंद मिला. भारत में शिक्षा और रोजगार के बीच की खाई इतनी गहरी हो गई है कि अब इस में देश के सपने गिरने लगे हैं.
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