समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां का ‘खाकी रंग की अंडरवियर’ वाला बयान चर्चा में है. जया प्रदा को लेकर की गई यह टिप्पणी निदनीय है. असल में नेता ऐसे बयानों से चुनाव के असल मुद्दों को गायब कर देना चाहते है. मीडिया और जनता असल मुद्दों को भूल कर ऐसे बयानों पर ही चर्चा करने लगती है. यह नेताओं की चतुर चाल है जिससे चुनाव में असल मुद्दों को दरकिनार रखा जा सके. सोशल मीडिया के चलन से ऐसे मुद्दे ज्यादा तेजी से उठ जाते है पर असल मुद्दे दमतोड़ देते है. यही वजह है कि मुद्दों पर बात तो बहुत होती है पर वोट ऐसे मुद्दों पर पड़ जाते हैं जो मुद्दे होते ही नहीं है.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर मलिहाबाद में चुनावी चर्चा गरम है. चैराहे पर चाय की दुकानों पर अपनी अपनी तरह से चुनाव का विश्लेषण चल रहा होता है. जब चुनावी मुद्दों की बात होती है तो आम के फलों में लगने वाले कीट और कीटनाशक दवाओं से लेकर फलमंडी, बागवानों की खराब हालत, खाद, बिजली, पुलिस, तहसील जैसे स्थानीय मुद्दों से लेकर बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी जैसे राष्ट्रीय मुद्दें बहस में उठते है. जैसे ही बात वोट देने की आती है वापस सारा गणित जाति और धर्म पर आकर रूक जाता है. जब चुनावी मुद्दों की बात होती है जनता बेहद संवेदनशील मुद्दों को भी सामने रख देती है. सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि देश की जनता में अब चुनावी मुद्दों को लेकर जागरूकता आई है. इसके बाद भी असल वोटिंग जाति और धर्म के मुद्दे पर ही होती है.

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