योगी से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ अभी भी अपने ‘प्रवचन मोड’ से बाहर नहीं आ पा रहे हैं. योगी आदित्यनाथ को लगता है कि धर्म के प्रचार से ही प्रदेश और देश के सारे दुख द्ररिद्र दूर हो जायेंगे. बिजली को गांव गांव तक पहुंचाने की बात हो या गांव में पंचायती राज को मजबूत करने की, मुख्यमंत्री योगी हर जगह पर अपने ‘प्रवचन मोड’ में ही बात की शुरुआत करते हैं. ‘प्रवचन मोड’ से खुद योगी की गंभीर बात पीछे चली जाती है, सुनने वाले लोगों प्रवचन ही याद रहता है. राष्ट्रीय पंचायत दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री योगी ने अपने भाषण में तमाम तरह की बातें की. लोगों को यह याद रहा कि मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘द्वापर युग से हो रहा है कैशलेस ट्रांजेक्शन’.

गांव में कैशलेस इकानोमी को बढ़ावा देने की बात करते हुये मुख्यमंत्री योगी ने कहा      ‘सुदामा द्वारिका में कृष्ण से अपनी बात खुलकर नहीं कह सके. कृष्ण भी मौन रहे. सुदामा उदास होकर लौट आये. तो देखा कि उनकी झोपड़ी की जगह महल है. भारत में तो कैशलेस ट्राजेक्शन की पंरपरा 5 हजार साल पुरानी है. आज के दौर का बड़े से बड़ा अर्थशास्त्री इस कैशलेस ट्रांजेक्शन की बात समझ नहीं पा रहा है. योगी के अफसर जरूर उसी तरह से हां में हां मिला रहे हैं जैसे पहले वाले मिलाया करते थे.

अगर कैशलेस ट्रांजेक्शन इतना पुराना है तो धर्म के नाम पर पैसे का चढ़ावा क्यों? मंदिरों में दबा सोना चांदी क्यों? मंदिरों पर कब्जे को लेकर इतने संघर्ष क्यों? इंसान के पैदा होने से लेकर मरने तक के कर्मकांड कभी कैशलेस पूरे होते हैं क्या? यह सवाल बताते हैं कि कैशलेस का धर्म में क्या स्थान रहा है. इस देश में हर बड़े आदमी के लिये कैशलेस की व्यवस्था रहती है. उसकी साख पर सारे काम होते हैं. मुख्यमंत्री के नाम पर सारे काम बिना पैसे के हो सकते हैं. पर आम अदमी को बिना पैसे के एक कप चाय भी नसीब नहीं हो सकती. हाडतोड़ मेहनत करने के बाद मजदूर को 4 पैसे मिलते हैं तो उसके चेहरे पर खुशी चमकती है.

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