Vatican City : दुनिया का सब से छोटा देश है वेटिकन, जिस का क्षेत्रफल है केवल 44 हेक्टेयर (108.7 एकड़). यह इटली की राजधानी रोम के अंदर बसा है. वेटिकन पृथ्वी का सब से छोटा मगर स्वतंत्र राज्य है. यह इतना छोटा है कि दिल्ली में 3 हजार से ज्यादा वेटिकन समा सकते हैं, मगर यह नन्हा सा देश दुनिया की 130 करोड़ कैथोलिक आबादी की आस्था का केंद्र है. दुनियाभर के कैथोलिक चर्च यहां के राजा पोप के द्वारा नियंत्रित होते हैं.

वेटिकन साम्राज्य और यहां के राजा पोप का क्या दर्जा और क्या ताकत है, यह पिछले दिनों सोशल मीडिया पर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एआई से बनाई अपनी एक तसवीर को पोस्ट करने से समझ में आता है, जिस में उन्होंने पोप की तरह की वेशभूषा धारण कर रखी है. यानी उन की महत्त्वाकांक्षा उस दर्जे की ताकत हासिल करने की है जो ताकत पोप के पास है.

पोप दुनियाभर के कैथोलिक ईसाई समुदाय के धार्मिक नेता हैं. उन के वक्तव्य ईसाइयों के लिए पत्थर की लकीर होते हैं. गौरतलब है कि दुनिया में ईसाइयों की संख्या करीब 240 करोड़ है. इन में से करीब 130 करोड़ लोग कैथोलिक हैं और पोप के आदेशों के आगे नतमस्तक हैं.

पोप को सैंट पीटर का उत्तराधिकारी माना जाता है. सैंट पीटर को ईसा मसीह ने अपने अनुयायियों का नेतृत्व करने के लिए चुना था और ईसा मसीह के सूली चढ़ने के बाद सैंट पीटर ने उन की शिक्षाओं को पोप बन कर फैलाया. यानी कैथोलिक ईसाई समुदाय के लिए ईसा मसीह के बाद दूसरा स्थान पोप का है.

कहा जाता है कि रोम के सम्राट नीरो के शासनकाल में पोप सैंट पीटर की हत्या कर दी गई. उन की समाधि पर ही बाद में सैंट पीटर्स बेसिलिका (वेटिकन सिटी का चर्च) बना. यानी पोप का अस्तित्व जीसस क्राइस्ट (ईसा मसीह) के बाद से ही माना जाता है.

हाल ही में 21 अप्रैल, 2025 को वेटिकन के पोप फ्रांसिस की मृत्यु हो गई. वे 88 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे. हृदय गति रुकने के कारण उन की मृत्यु हुई. पोप फ्रांसिस के बाद 69 वर्षीय लियो XIV को 267वां पोप चुना गया है.

पोप लियो XIV का असली नाम रौबर्ट फ्रांसिस प्रीवोस्ट है. वे शिकागो के रहने वाले हैं. उन्होंने करीब 12 साल कैथोलिक चर्च का नेतृत्व किया है. हालांकि वे विवादों में भी रहे. रूढि़वादी मानसिकता के कैथोलिक समाज से आने वाले पोप लियो एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के प्रति अपने संकुचित दृष्टिकोण को ले कर जांच के घेरे में हैं. डेली मेल द्वारा प्रसारित एक वीडियो में आरोप लगाया गया कि नए पोप ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान जानबू?ा कर प्राइड फ्लैग को नजरअंदाज किया.

पोप की शक्तियां

पोप फ्रांसिस भी कई मामलों में निष्पक्ष नहीं रहे, खासकर अनेक पादरियों द्वारा किए जा रहे अनैतिक कृत्यों की शिकायतें मिलने के बावजूद पोप फ्रांसिस उन पादरियों के खिलाफ ऐक्शन लेने से हिचकते रहे और उन्होंने अन्याय का साथ दिया. कई लोगों का आरोप है कि पोप फ्रांसिस ने बाल यौनशोषण के मामलों को ठीक से नहीं संभाला और ऐसे पादरियों की रक्षा की जो दुर्व्यवहार के लिए दोषी थे.

कुछ लोगों का आरोप है कि पोप फ्रांसिस ने अर्जेंटीना की सैन्य तानाशाही के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन में सहयोग किया. कहते हैं कि उस दौरान करीब 30,000 लोग मारे गए या गायब हो गए. फ्रांसिस उन हिंसक वर्षों के दौरान अर्जेंटीना के जेसुइट आदेश के प्रमुख थे.

तो ईसा मसीह के बाद सब से ज्यादा पूजे जाने वाले पोप मन, वचन, कर्म से पूरी तरह शुद्ध हों, ऐसा नहीं है. पोप बनने के बाद उन का मिशन ईसाइयों की संख्या बढ़ाते जाने का होता है और धर्मग्रंथों की कहानियों को बांच कर, ईश्वर का भय तारी कर, स्वर्ग और नरक की बातों से डरा कर वे आमजन को अपनी मुट्ठी में रखते हैं. यह बात सिर्फ किसी एक धर्म के धर्माचार्य के विषय में नहीं, बल्कि सभी धर्मों के धर्माचार्यों के विषय में है.

संकुचित दृष्टिकोण धर्माचार्यों का आस्था और विज्ञान 2 अलग वस्तुएं हैं, बल्कि यों कहें कि विपरीत चीजें हैं. धर्माचार्य लोगों को आस्था का गुलाम बना कर रखना चाहता है. वह नहीं चाहता कि जो कहानियां धर्मग्रंथों में लिखी हैं, लोग उस पर कोई प्रश्न उठाएं.

संकीर्ण दायरों में रहने वाले लोग समाज में सकारात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया को धीमा करते हैं. वे विज्ञान की खोजों की राह में रुकावट पैदा करते हैं और तर्क से मुंह चुराते हैं. जबकि विज्ञान आस्था के विपरीत हमेशा नए ज्ञान की तलाश में रहता है. वह हर बात के लिए क्या, क्यों, कब, कैसे का प्रश्न उठा कर चीजों को तर्क की कसौटी पर कसता है और उस के बाद भी संदेह की गुंजाइश छोड़ता है ताकि उस की खोज वहीं पर न रुक जाए.

धर्माचार्यों का संकुचित दृष्टिकोण मानवता के लिए ठीक नहीं है. मगर धर्म का झंडा उठाने वाले किसी भी धर्माचार्य (हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई) से तर्कशील बातों की आशा करना फुजूल है. वजह यह है कि उन की सोचनेसमझने की सीमा उन के धार्मिक ग्रंथ की जिल्दों के भीतर तक ही है.

उस से बाहर निकल कर कुछ ढूंढ़ना, कुछ नया ग्रहण करना उन की फितरत में नहीं होता. पोप का प्रमुख कार्य दुनिया के नेताओं से मिल कर धार्मिक संवाद करना और ईसाई धर्म के प्रचारप्रसार की नीतियां तय करना है. वे कार्डिनल (पोप के सलाहकारों का समूह), बिशप और चर्च के अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करते हैं.

दुनियाभर में कैथोलिक समुदाय के लोगों से मिलते हैं और ईसाई धर्म को ज्यादा से ज्यादा फैलाने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करते हैं. वर्तमान समय में भले ही पोप धार्मिक, सामाजिक और शांति के मुद्दों पर अपने विचार रखते हैं, लेकिन कई दौर ऐसे रहे हैं जिस में पोप राजनीतिक मामलों में भी बहुत शक्तिशाली रहे.

राजाओं को बनाने और बिगाड़ने में पोप की मुख्य भूमिका रही. ईसाई धर्म में करीब 15वीं सदी तक पोप की भूमिका न सिर्फ धार्मिक मामलों को ले कर थी, बल्कि उन के पास राजनीतिक शक्तियां भी थीं, खासकर यूरोप की राजनीति में अलगअलग पोप ने अहम भूमिका निभाई.

दायरों में बांधने के तंत्र

यह बिलकुल वैसे ही है जैसे प्राचीन समय में भारत के अनेक राज्यों में सिंहासन पर तो क्षत्रिय राजा बैठा होता था मगर परदे के पीछे से उस के राज्य का पूरा संचालन, सारी राजनीति, कूटनीति, धार्मिक दंडधारक ब्राह्मण के हाथ में होती थी. यानी दुनिया के तमाम देशों, चाहे वह हिंदू बहुल देश हो, मुसलिम बहुल या हो ईसाई बहुल, का संचालन हमेशा धर्म ने अपने हाथों में रखा.

धर्म ने इंसान के चारों तरफ दायरे बनाए और कहा कि इन दायरों से बाहर मत निकलना. यदि निकले तो नरक में जाओगे. धर्म ने इंसान के कुछ नया सोचने और गतिशील रहने पर पाबंदी लगाई और अपनी घिसीपिटी मान्यताओं पर वह सदियों से इंसान को भेड़ों के ?ांड की तरह हांक रहा है. इन धार्मिक नेताओं के उकसाने पर ही दुनिया में बड़ेबड़े युद्ध हुए हैं. ईसाई समुदाय में भी पहला धर्मयुद्ध पोप के आह्वान पर ही लड़ा गया था.

यरूशलम ईसाइयों, मुसलमानों और यहूदियों का पवित्र स्थान माना जाता है. इसे मुसलमानों के नियंत्रण से हटाने के लिए साल 1096 में पोप अर्बन द्वितीय ने ईसाइयों से हथियार उठाने के लिए कहा था. तब इटली, जरमनी और फ्रांस के तमाम सैनिकों ने धर्मयुद्ध (क्रूसेड) लड़ा था.

पहले उन्होंने आतंकियों पर कब्जा किया और 1099 में यरूशलम पर अपना नियंत्रण स्थापित किया. इस से ईसाइयों और मुसलमानों के बीच धार्मिक विद्वेष बढ़ गया और इस के बाद कुल मिला कर 8 धर्मयुद्ध हुए.

पोप की शक्तियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 11वीं सदी में जरमनी के सम्राट हेनरी चतुर्थ ने जब अपनी इच्छा से कुछ नियुक्तियां करनी चाहीं तो पोप ग्रेगरी सप्तम उन से रुष्ट हो गए. बाद में जब सम्राट ने क्षमायाचना की तो उस को पोप ने बर्फ पर नंगे पांव खड़ा रहने के लिए मजबूर किया.

दरअसल 11वीं सदी में पोप ग्रेगरी सप्तम और जरमनी के सम्राट हेनरी चतुर्थ के बीच नियुक्ति को ले कर विवाद हुआ था. कहा जाता है कि हेनरी चतुर्थ चर्च के पदों पर अपने अनुसार नियुक्तियां करना चाहते थे, मगर पोप इस के खिलाफ थे. वे इसे चर्च के अधिकार में दखल मान रहे थे.

पोप ने बिशप की नियुक्ति और राजा को हटाने से संबंधित अधिकार चर्च के पास होने का आदेश दिया था, जिसे हेनरी चतुर्थ ने मानने से इनकार कर दिया. ऐसे में पोप ग्रेगरी सप्तम ने हेनरी चतुर्थ का बहिष्कार कर दिया. इस के बाद राजा की सत्ता कमजोर होने लगी. हेनरी चतुर्थ ने कैनोसा में पोप के किले पर बर्फ में 3 दिन तक नंगे पांव खड़े रह कर माफी मांगी तब जा कर पोप ने उन्हें माफी दी.

हालांकि इस के बाद हेनरी ने नया पोप नियुक्त कर दिया. इस से संघर्ष और बढ़ गया. बाद में वर्म्स में 1122 में पोप कालिक्स्टस द्वितीय और हेनरी पंचम के बीच वर्म्स की संधि हुई और इस में राज्य और चर्च की सीमाएं तय की गईं.

वहीं पोप जूलियस द्वितीय को तो योद्धा पोप के रूप में पहचान मिली हुई थी. उन्होंने 1503 से 1513 के बीच कई सैन्य अभियानों में अगुआई की. उस अवधि में उन्होंने मध्य इटली के कई इलाकों को दोबारा से चर्च के अंतर्गत लाने में सफलता पाई. उन्होंने फ्रांसीसी राजा लुई सोलहवां की वजह से चर्च के लिए पैदा हो रहे खतरों से निबटने के लिए रोमन साम्राज्य, स्पेन, वेनिस और इंगलैंड को मिला कर होली लीग गठबंधन बनाया ताकि इटली से फ्रांसीसी प्रभाव खत्म हो सके.

उन्होंने तत्कालीन स्वतंत्र राज्य बोलोग्ना (वर्तमान में इटली में) को जूलियस द्वितीय के नियंत्रण से छुड़ाया था. तब उन्होंने सैन्य भूमिका निभाई थी, इसलिए उन्हें वारियर पोप भी कहा जाता है. पोप की शक्तियां धार्मिक और नैतिक क्षेत्र में सब से अधिक प्रभावशाली हैं, जो वैश्विक कैथोलिक समुदाय और उस से परे समाज को प्रभावित करती हैं. प्रशासनिक रूप से वे वेटिकन और चर्च के सब से बड़े नेता होते हैं. राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से उन की शक्ति अप्रत्यक्ष लेकिन गहरी है, जो तथाकथित नैतिक नेतृत्व और वैश्विक कूटनीति से आती है.

चूंकि ईसाई समुदाय पोप को ईसा मसीह का उत्तराधिकारी मानता है, इसलिए पोप की सुरक्षा में वह कोई चूक नहीं छोड़ता है. पोप हमेशा बख्तरबंद वाहन में ही सफर करते हैं जिसे पोप मोबाइल कहा जाता है.

पोप अपने पैरों में हमेशा लाल रंग के जूते पहनते हैं, जोकि ईसा मसीह के लहू में लिथड़े पैरों का प्रतीक हैं, जब उन को सूली पर लटका कर उन के पैरों और हाथों में कीलें ठोंकी गई थीं और उन के पैर खून से लथपथ हो गए थे. ऐसी भावनात्मक चीजों से वे जनसमुदाय की आस्था को मजबूत करते हैं.

आगे का अंश बौक्स क बाद 

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अथाह है पोप की संपत्ति

पोप असल में एक बहुत बड़े साम्राज्य का सम्राट होता है. उस के पास अथाह संपत्ति दुनिया के लगभग सभी देशों में है. रोमन कैथोलिकों के चर्च, स्कूल, अस्पताल, रिसर्च संस्थाएं, यूनिवर्सिटियां हर देश में हैं और चर्च के पास दुनिया की सब से ज्यादा जमीन है. रोमन कैथोलिकों का मुख्य केंद्र वेटिकन शहर छोटा है पर दुनियाभर में फैले चर्चों, पैरिथों की संपत्ति पर अंतिम नियंत्रण पोप का ही होता है क्योंकि वह किसी भी कार्डिनल व बिशप से ले कर प्रीस्ट तक को बदल सकता है.

वेटिकन की अपनी 5,000 संपत्तियां विश्वभर में हैं. ये उन से अलग हैं जो चर्चों के पास हैं जिन का अंतिम निर्णय वेटिकन में रहने वाले पोप के हाथ में होता है. 136 करोड़ अनुयायियों वाले रोमन कैथोलिकों ने दान देदे कर रोमन कैथोलिक चर्च को दुनिया का सब से अमीर और प्रभावशाली सैंटर बना दिया है. 69 वर्षीय पोप लियो XIV कम से कम 2 दशकों तक इन संपत्तियों के मालिक रहेंगे क्योंकि पोप की एक बार नियुक्ति हो जाए तो वह मृत्यु तक बिना दोबारा चुनाव हुए इस पद पर बने रहते हैं.

एक समाचारपत्र ने 2018 में आस्ट्रेलिया के रोमन कैथोलिक चर्च की संपत्ति का अंदाजा लगाया था और उस के अनुसार कम से कम 25 अरब अमेरिकन डौलर के बराबर की संपत्ति अकेले आस्ट्रेलिया में है. जरमनी में संपत्ति का अंदाजा (2017 का) 33 अरब अमेरिकी डौलर है.

कैथोलिक चर्च के पास 2,77,000 वर्ग मील भूमि दुनियाभर में है. यह बहुत कमजोर सा अंदाजा है. दुनियाभर के सभी चर्च आम कर से मुक्त हैं. यह दुनिया की सब से अमीर संस्था है लेकिन फिर भी हर चर्च में एक नहीं, कईकई जगह दानपेटियां रखी होती हैं और चाहे भक्त हों, अनुयायी हों या सिर्फ सैलानी, किसी भी धर्म के, देखादेखी कुछ डौलर-यूरो इन चर्चों के दानपेटियों में डाल आते हैं, ठीक वैसे ही जैसे भारत के राममंदिर या तिरुपति मंदिर में होता है.
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पोप का चुनाव कैसे

खैर, बात करते हैं नए पोप को चुनने की विधि की. पोप के चुनाव को बड़े गोपनीय ढंग से अंजाम दिया जाता है. कैथोलिक रीतिरिवाज के अनुसार पपेल कौन्क्लेव में नए पोप का चुनाव होता है. नए पोप को दुनियाभर से आए कार्डिनल्स चुनते हैं.

कैथोलिक चर्च के सब से उच्च रैंक वाले पादरी को कार्डिनल्स कहा जाता है. ये कार्डिनल्स दुनियाभर के बिशप को नियंत्रित करते हैं. कार्डिनल्स को निजी तौर पर पोप द्वारा ही चुना जाता है. नए पोप को चुनने में फिर यही कार्डिनल्स मुख्य भूमिका निभाते हैं. नए पोप को चुनने के लिए कौन्क्लेव में कार्डिनल्स की कई बैठकें होती हैं.

पोप के चुनाव के लिए 80 वर्ष से कम उम्र के कार्डिनल्स वोट देने के अधिकारी हैं. यह वोटिंग प्रक्रिया पूरी तरह से गुप्त रखी जाती है. वोटिंग प्रक्रिया के दौरान कार्डिनल्स को बाहरी दुनिया से संपर्क करने की भी अनुमति नहीं होती है. चुनाव हो जाने के बाद पोप लियो सेंट पीटर्स बेसिलिका की सैंट्रल बालकनी में सिस्टिन चैपल की चिमनी से सफेद धुआं छोड़ा जाता है, जो दुनिया को यह संदेश देता है कि वेटिकन में नए पोप का चुनाव संपन्न हो गया है.

रोमन कैथोलिक चर्च ईसाई धर्म का सब से बड़ा संप्रदाय है. इस के अलावा प्रोटेस्टैंट और ईस्टर्न और्थोडौक्स ईसाई समुदाय के 2 अन्य प्रमुख संप्रदाय हैं. रोमन कैथोलिक चर्च ईसा मसीह की शिक्षाओं पर आधारित हैं. बाइबिल के साथसाथ चर्च परंपराओं को भी धर्म और आस्था का आधार मानता है. कैथोलिक चर्च जिन सिद्धांतों पर चलता है उस में पहला है एक ईश्वर, जो 3 स्वरूपों में अस्तित्व रखता है. ये 3 तत्त्व हैं-

पिता (गौड या फादर) – संपूर्ण ब्रह्मांड के सृजनकर्ता.
पुत्र (ईसा मसीह)- ईश्वर के पुत्र या अवतार.
पवित्र आत्मा (होली स्पिरिट) – ईश्वर की दिव्य शक्ति.

आगे का अंश बौक्स के बाद 

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पोप लड़ाई रुकवाते नहीं, करवाते रहे हैं

विश्व ने 2 विश्वयुद्ध 1914 से 1919 और 1940 से 1945 झेले जो ईसाई शासकों और ईसाई जनता के बीच में हुए. पोप रोमन कैथोलिकों के नेता थे पर किसी पोप की चली नहीं या किसी ने चलाई नहीं और युद्ध होने दिए जिन में करोड़ों लोग मारे गए, खरबों डौलरों का नुकसान हुआ. ईसा मसीह में विश्वास व शांति की बात करने वाले रोमन कैथोलिक हों या प्रोटैस्टैंट अनुयायी, सदियों से लड़ते रहे हैं और आज रूस और यूक्रेन रोमन कैथोलिकों जैसे और्थोडौक्स क्रिश्चियनों के बीच युद्ध हो रहा है और दोनों तरफ चर्चों के मुखिया, पहले के पोपों की तरह, अपनेअपने सैनिकों को ईश्वर की तरफ से आशीर्वाद दे रहे हैं. धर्म लड़वाता है, सुलह या शांति नहीं कराता.

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कैथोलिक चर्च ईसा मसीह की माता मैरी को भी विशेष सम्मान देता है. कैथोलिक प्रार्थनाओं में मदर मैरी को खास स्थान दिया गया है. उन के अनुसार, मदर मैरी शरीर सहित स्वर्ग में पहुंची थीं. हिंदू मान्यता के अनुसार, महाभारत की कथा में भी युधिष्ठिर को सशरीर स्वर्ग ले जाने की बात लिखी है. युधिष्ठिर को धर्मराज कहा जाता था.

कहते हैं कि उन के चारों भाई और पत्नी द्र्रौपदी व अन्य सभी को स्वर्ग पहुंचने से पहले रास्ते में ही शरीर त्यागना पड़ा. मगर युधिष्ठिर के साथ उन के वफादार कुत्ते को सशरीर स्वर्ग जाने की अनुमति मिली थी. खैर, ऐसी कथाएं लगभग सभी धर्मों की किताबों में करीबकरीब एकजैसी ही होती हैं. इन अनेक कपोल कथाओं का विज्ञान से कोई लेनादेना नहीं होता. इन कथाओं की वैज्ञानिक तर्क के साथ व्याख्या करना कठिन है.

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