गर्मियों के शुरू होते ही पहाड का मौसम खुशनुमा हो जाता है. उत्तराखंड में इससे अलग राजनीति के चलते मौसम गर्म हो गया है. वहां कांग्रेस के हरीश रावत मुख्यमंत्री हैं. अगले साल उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव होने है. भारतीय जनता पार्टी की शह पर कांग्रेस के 9 विधायकों ने हरीश रावत सरकार के खिलाफ बगावत कर दी है. इससे हरीश रावत सरकार अल्पमत में आ गई है. शुरूआत में उत्तराखंड के भाजपा नेताओं को लग रहा था कि वह कांग्रेस के बागी नेता हरक सिंह रावत और संगम बहुगुणा को आगे करके सत्ता पलट कर सकती है. जब भाजपा के इस खेल का कांग्रेस ने मुकाबला करना शुरू किया तो अब लगने लगा है कि भाजपा नेताओं ने जो जल्दबाजी की उससे केन्द्र सरकार की छवि खराब होगी. सत्ता पलट से भाजपा को कुछ हासिल होने वाला नहीं है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत नैतिकता का आधार बनाकर अपना बचाव करने में सफल हो जायेगे.
भाजपा वैसे तो दलबदल के खिलाफ दिखती है पर उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कई बार सत्ता पलट कर सरकार बनाने और बचाने का काम किया है. उत्तर प्रदेश में सरकार चलाने के लिये भाजपा को 4 साल का समय मिल गया था. उसके चलते कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बन सके थे. उत्तराखंड में 1 साल से भी कम समय बचा है. भाजपा का कोई नेता कुर्सी हासिल नहीं कर पायेगा. सबसे बडी बात हरीश रावत जिस तरह के नेता है आसानी से सत्ता पलट नहीं होगा. संविधान के जानकार यह मानते हैं कि अल्पमत की सरकार बनने के बजाय हरीश रावत सरकार भंग करने का फैसला लेकर नये चुनावों की घोषणा कर सकते हैं. राष्ट्रपति शासन लगाकर भाजपा उत्तराखंड में अपना दबाव नहीं बना पायेगी. कांग्रेस अब इस लडाई को दिल्ली और उत्तराखंड दोनो में लडने की व्यूह रचना कर रही है.
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