परिवारवाद पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीख चुनावी जुमला साबित हुई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सांसदो से अपने करीबी रिश्तेदारों को चुनावी टिकट दिलाने की पैरवी करने से मना किया था. प्रधानमंत्री ने इस बहाने पार्टी में परिवारवाद को रोकने का दिखावा किया था.

भाजपा जैसे जैसे उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नाम फाइनल करती जा रही है परिवारवाद की नई परिभाषा सामने आती जा रही है.

भाजपा ने केवल अपने ही दल के नेताओं और उनके परिवार वालों को ही टिकट नहीं दिया बल्कि दलबदल करने वाले नेताओं के परिवार वालों को भी टिकट दे दिया है. राजनीतिक शुचिता, ईमानदारी और पार्टी विद डिफरेंस का दावा करने वाली भाजपा चुनावी हमाम में दूसर दलों से भी बदत्तर साबित हुई है. पार्टी जिस तरह से अपने वसूलों और सिद्धान्तों की दुहाई देती रही है वह इस चुनाव में तारतार नजर आ रहे हैं.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मलिहाबाद सीट से भाजपा से मोहनलालगंज लोकसभा सीट के सांसद कौशल किशोर की पत्नी जय देवी को टिकट दिया है. कौशल किशोर कम्यूनिस्ट विचारधारा के नेता हैं. वह उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे थे. लोकसभा चुनाव में कौशल किशोर भाजपा में शामिल हुये. अब वह मोहनलालगंज लोकसभा से सांसद हैं उनकी पत्नी जय देवी को भाजपा ने मलिहाबाद विधानसभा से टिकट दे कर विधानसभा चुनाव में उतार दिया है. कौशल किशोर तो लोकसभा चुनाव में भाजपा में शामिल हुये थे. विधानसभा चुनाव में बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुये स्वामी प्रसाद मौर्य को भाजपा ने पडरौना से उनके पुत्र उत्कर्ष मौर्य का ऊंचाहार सीट से टिकट दिया है.

उत्तराखंड में भी भाजपा ने यही किया है. कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये यशपाल आर्य के बेटे संजीव को नैनीताल से और विजय बहुगुणा के बेटे सौरभ को सितारगंज से टिकट दिया गया है.

यह तो केवल नजीर भर है. इसके अलावा भाजपा के कई बड़े नेताओं के पुत्रों को भी टिकट दिया गया. इन बड़े नेताओं में राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह, कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह, प्रेमलता कटियार की बेटी नीलिमा कटियार, हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह, ब्रहमदत्त द्विवेदी के बेटे मेजर सुनील दत्त द्विवेदी, लालजी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन और भुवनचन्द्र खंडूरी की बेटी रितु यमकेश्वर के नाम प्रमुख हैं.

भाजपा परिवारवाद के नाम पर दूसरे दलों की हमेशा से ही आलोचना करती रही है. इसके बाद भी जिस तरह से परिवार के लोगों को टिकट दिया गया है उससे उसका चेहरा उजागर हो गया है. राजनीतिक समीक्षक योगेश श्रीवास्तव कहते हैं, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा मोदी के चेहरे को आगे कर वोट लेना चाहती थी. इस कारण ही उसने मुख्यमंत्री का अपना कोई चेहरा सामने नहीं किया. चुनाव के करीब आने और सपा-कांग्रेस के गठजोड़ के बाद भाजपा को अपने बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद नहीं दिख रही. ऐसे में वह हर तरह के समझौते कर रही है.

लेखक और समीक्षक नागेन्द्र बहादुर सिंह चैहान कहते हैं, भाजपा ने पहली बार अपने कैडर के नेताओं की उपेक्षा की है. पार्टी में पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के स्तर पर फैसले हो रहे हैं. प्रदेश स्तर पर किसी बड़े नेता की राय का कोई महत्व नहीं रह गया है. परिवारवाद के अलावा सबसे अधिक दलबदलू नेताओं को टिकट दिया गया है. इससे भाजपा को चुनाव में भीतरघात का प्रबल खतरा दिख रहा है’.

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