जितना जटिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वभाव है उतनी ही सरल उनकी पत्नी जसोदाबेन हैं. एकदम परंपरावादी समझौतावादी और सहज महिला जो बिना किसी लागलपेट के अपनी बात कहती हैं. उनके पास हर एक मुद्दे पर एक स्पष्ट निष्कर्ष है जिससे असहमत होने जिस अध्ययन और ज्ञान या तर्कों की जरूरत होनी चाहिए वे आमतौर पर उनसे मिलने वालों के पास नहीं होते. लोग एक जिज्ञासा लिए उनसे मिलते हैं और एक आस्था लेकर उनसे विदा होते हैं. चेहरे से भले ही सहज हों पर जसोदाबेन ढृढ व्यक्तित्व वाली महिला हैं जिनके सामने आप यह पूछना निरर्थक महसूसने लगते हैं कि मोदी जी ने आपको क्यों छोड़ा था और अब आप उनसे अपने अधिकार क्यों नहीं मांगती, हालांकि बहुत पहले वे स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे बुलाएंगे तो मैं पीएम हाउस रहने चली जाऊंगी पर वे यह कभी नहीं कहतीं कि मैं अपने मन से बिना बुलाये भी जा सकती हूं.

जाहिर है जसोदाबेन का स्वाभिमान उनके पति के निर्णय अहंकार या जिद जो भी कह लें पर भारी पड़ता है. जसोदाबेन पिछले सात दिन मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड अंचलों के दौरों पर रहीं और हर जगह उन्होंने नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों को सराहा कि उनके नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है, दुनिया भर में भारत का मान बढ़ने का श्रेय भी वे पति को देती हैं. बहुत ही सहज ढंग से अपना पतिव्रत जसोदाबेन यह कहते भी व्यक्त करती हैं कि मोदी जी की  स्वीकार्यता बढ़ रही है.

उज्जैन से लेकर नीमच और मंदसौर तक की उनकी यात्रा हालांकि आकस्मिक थी पर बेवजह नहीं थी. जसोदाबेन बेटी बचाने और पढ़ाने की बात जगह जगह रख रही हैं. उनकी बातों से कोई भेदभाव या पूर्वाग्रह भी नहीं झलकता. जसोदाबेन इन्दिरा गांधी और मायावती की भी तारीफ करती हैं कि उन्होंने महिलाओं के विकास के लिए अच्छे काम किए. महिलाओं की दुर्दशा का एक बड़ा जिम्मेदार वे कुरीतियों को मानती हैं और महिलाओं से घर से बाहर निकलने की अपील भी करती हैं कि बाहर आकर देखो वक्त बदल चुका है और देश तुम्हारा इंतजार कर रहा है.

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