आम चुनावों के मद्देनजर बिहार की सियासी बिसात पर नएनए मोहरे अभी से नए समीकरण बिठाते दिख रहे हैं. जेल से बाहर आए लालू प्रसाद जहां कांगे्रस और रामविलास पासवान से गलबहियां करते नजर आते हैं वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी के अंदर पनपते अंतर्विरोध से नहीं निबट पा रहे हैं. गुटबंदी के इस खेल में आम चुनाव में नीतीश का सियासी रथ कहीं अलगथलग तो नहीं पड़ जाएगा, ऐसी आशंका जता  रहे हैं बीरेंद्र बरियार ज्योति.

बिहार में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी साथ मिल कर चुनाव लड़ते हैं तो नीतीश और भाजपा दोनों को काफी नुकसान होने की गुंजाइश है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में राजद को 19 फीसदी, कांग्रेस को 1.0 फीसदी और लोजपा को 1.6 फीसदी वोट मिले थे. राजद के 4 और कांग्रेस के 2 उम्मीदवारों को जीत मिली थी. खास बात यह है कि सूबे की कुल 40 लोकसभा सीटों में राजद को भले ही 4 सीटों पर जीत हासिल हुई पर 19 सीटों पर उस के उम्मीदवार नंबर 2 पर रहे थे. लोजपा के 7 और कांग्रेस के 2 उम्मीदवारों ने नंबर 2 पर रह कर भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) को कांटे की टक्कर दी थी.

राजद, लोजपा और कांग्रेस के वोट मिल कर 22 प्रतिशत के करीब हो जाते हैं. उस चुनाव में 20 सीट जीतने वाली जदयू को 24 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 12 सीटों पर कब्जा जमाने वाली भाजपा की झोली में 14 फीसदी वोट पड़े थे. पिछले लोकसभा चुनाव के आकंड़ों को देख कर साफ हो जाता है कि अगर राजद, कांगे्रस और लोजपा एकजुट हो कर चुनाव लड़े तो जदयू और भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं और पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा सीटें झटक सकते हैं.

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