उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की साख दांव पर लगी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से भाजपा को 73 संसदीय सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 2014 से 2017 के बीच 3 सालों में गंगा यमुना के इस प्रदेश में बहुत सारा पानी बह चुका है. केन्द्र सरकार में आने के बाद भाजपा ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिससे उसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी जीत का भरोसा हो सके. ऐसे में भाजपा को उत्तर प्रदेश में किसी ऐसे कद्दावर नेता की तलाश है जो बसपा की मायावती और सपा के मुलायम सिंह यादव का मुकाबला कर सके. उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास इस कद के नेता का अभाव है. भाजपा में कल्याण सिंह को जनाधर वाला नेता माना जाता था. राजनाथ सिंह में भी वह जनाधर कभी नहीं दिखा. कल्याण सिंह राजस्थान में राज्यपाल है. उनको उत्तर प्रदेश की राजनीति में लाया नहीं जा सकता. उनकी उम्र भी ज्यादा हो चुकी है.

भाजपा उत्तर प्रदेश में दलित और पिछडे वर्ग के नेता पर दांव लगाने को तैयार नहीं है. उत्तर प्रदेश में भाजपा ऊंची जातियों को नाराज नहीं करना चाहती. ऐसे में भाजपा की सोच है कि किसी ऐसे चेहरे को उतारा जाये जो अपने ओजस्वी भाषणों से जनता के दिल में जगह बना सके और मुलायम मायावती का मुकाबला कर सके. भाजपा के पास इसको लेकर 2 चेहरों पर विचार चल रहा है. एक नाम गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ का है. योगी आदित्यनाथ भाजपा के फायरब्रांड नेता है. उनकी छवि हिन्दुत्ववादी है. पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में उनका असर है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह योगी आदित्यनाथ के पक्षधर हैं. केन्द्र सरकार में प्रभावी भाजपा के ही कुछ नेता योगी के विरोध में हें. ऐसे में भाजपा नेताओं को केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का नाम सबसे मुफीद लग रहा है.

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