मध्य प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य जिला बैतूल आमतौर पर शांत रहता है, लेकिन इन दिनों यहां अशांति की आंच सुलग रही है. वजह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का 8 फरवरी को प्रस्तावित हिन्दू सम्मलेन है, जिसकी तैयारियां संघ और उसके आनुषांगिक संगठन और भाजपा बीते छह महीनों से कर रहे थे. इस सम्मेलन में आरएसएस  के मुखिया मोहन भागवत की खासी दिलचस्पी थी और अभी भी है ,  जो अब चिंता में तब्दील होती जा रही है. भागवत की चिंता यह नहीं है कि कुछ आदिवासी संगठनों ने उनका पुतला फूंका. भागवत की असल चिंता यह है कि क्यों आदिवासी खुद को हिन्दू मानने तैयार नहीं और किस जतन से उन्हें खुद को यह कहने राजी किया जाये.

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं

गौरतलब है कि जनवरी के तीसरे हफ्ते से ही आदिवासी संगठनों ने इस हिन्दू सम्मेलन में शामिल होने से न केवल इंकार कर दिया था, बल्कि यह सवाल भी पूछना शुरू कर दिया था कि वे हिन्दू किस बिना पर हैं. इस सवाल का सटीक जबाब न पहले किसी के पास था न आज है. हां कुछ आरोप प्रत्यारोप जरूर हैं, जिनका हिन्दू या सनातन धर्म के इतिहास से गहरा ताल्लुक है. जब पूरे देश में गणतन्त्र दिवस समारोह पूर्वक मनाया जा रहा था तब बैतूल में आदिवासी समाज संगठन इस आशय के पर्चे बांट रहा था कि आदिवासी इस हिन्दू सम्मेलन का बहिष्कार करें, क्योंकि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं.

विवाद कितना संवेदनशील और विस्फोटक है इसका अंदाजा समस्त आदिवासी समाज संगठन के संयोजक कल्लू सिंह के इस बयान से लगाया जा सकता है कि हम आदिवासी बड़ादेव का पूजन करते हैं, हमारा हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नहीं, हमें तो आरएसएस जबरन हिन्दू बनाने पर उतारू है. बक़ौल कल्लू सिंह आदिवासियों के कोई 20 संगठन उनके साथ हैं और बहिष्कार का समर्थन कर रहे हैं. इधर आरएसएस को यह बयान और विरोध रास नहीं आये, तो उसने आदिवासियों को इस सम्मेलन में लाने की कोशिशें और तेज कर दीं.

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