रूबी प्रसाद, विधायक दुद्धी, विधानसभा क्षेत्र, सोनभद्र क्षेत्र की सियासी हालत, नक्सलवाद और जनता से जुड़े मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं. वे अंधविश्वास, गरीबी और अशिक्षा को क्षेत्र की गंभीर समस्याएं मानती हैं. पिछले दिनों शैलेंद्र सिंह ने इन्हीं मुद्दों पर रूबी प्रसाद से बातचीत की.

उत्तर प्रदेश के सब से बड़े जिले के रूप में सोनभद्र का नाम लिया जाता है. 7,388 वर्ग किलोमीटर में फैले सोनभद्र जिले का मुख्यालय रौबर्ट्सगंज है. सोनभद्र की सीमा 4 प्रदेशों, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार की सीमाओं से मिली है. यहां की जनसंख्या का घनत्व 198 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है जो प्रदेश में सब से कम जनसंख्या घनत्व है. रूबी प्रसाद सोनभद्र जिले की दुद्धी विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक हैं. आजादी के बाद वे पहली महिला हैं जो इस क्षेत्र से विधायक चुनी गई हैं. बीएससी औनर्स की पढ़ाई कर चुकी रूबी प्रसाद फिजियोथेरैपिस्ट हैं. उन के पति डा. योगेश्वर प्रसाद भी डाक्टर हैं. रूबी प्रसाद मूलरूप से झारखंड के गिरिडीह जिले की रहने वाली हैं. शादी के बाद से वे यहां रहती हैं.

आप के क्षेत्र की सब से बड़ी समस्या क्या है?

दुद्धी विधानसभा क्षेत्र छत्तीसगढ़ की सीमा से लगा है जिस के चलते नक्सलवाद यहां की सब से बड़ी परेशानी है. बेरोजगारी, गरीबी और शिक्षा का अभाव यहां के रहने वालों को अंधविश्वासी बनाने का काम करता है. अभी भी यहां औरतों को डायन बता कर मार देने की घटनाएं अकसर होती रहती हैं. गरीबी और अशिक्षा के चलते लोग बीमारियों का इलाज नहीं कराते. इलाके के पानी में 84 प्रतिशत पारा (मरकरी) है जिस से पानी पीने वाले बीमार हो  जाते हैं.  

आप अपने क्षेत्र की जनता से कैसे संपर्क रखती हैं?

हर माह की 2 तारीख को हम क्षेत्र में खुली बैठक करते हैं, जहां लोग अपनी परेशानियां बताते हैं. इसी तरह हर सप्ताह डीसीएफ कालोनी, गोंडवाना में सोमवार और बुधवार को अपने क्षेत्र के लोगों से मिलते हैं. इस के अलावा टैलीफोन के जरिए भी हम अपने क्षेत्र की जनता से संपर्क में रहते हैं.

नक्सलवाद को जनता का समर्थन क्यों मिल रहा है?

पुलिस और वन विभाग के सरकारी नौकर गांव में रहने वालों को कानून का भय दिखा क र खूब परेशान करते हैं. इन से बचने के लिए ये लोग नक्सली लोगों के संपर्क में चले जाते हैं. ऐसे में नक्सलवाद बढ़ता जा रहा है. विकास के नाम पर जंगलों में रहने वाले इन लोगों की जमीनें छीन ली गईं. जो सरकारी पटट्े दिए गए उन पर या तो दबंगों का कब्जा है या फिर वह जमीन खेती के लायक ही नहीं है. इन गरीबों की लड़कियों के साथ अकसर बलात्कार होता है. पुलिस दबंगों का साथ देती है. ऐसे में नक्सली ही इन का सहारा बनते हैं.

राजनीति में कैसे आईं?  

राजनीति में मेरे परिवार का कोई भी सदस्य कभी नहीं रहा. मेरे पति रौबर्ट्सगंज में डाक्टर हैं. मैं भी यहीं पर फिजियोथेरैपिस्ट के रूप में काम करने लगी. इस दौरान लोगों से मेलमिलाप बढ़ा, यहां की परेशानियां देखीं. कुछ लोगों से बात हुई तो विधानसभा का चुनाव लड़ने का मन बनाया. पति ने भी पूरा सहयोग दिया. वे मान रहे थे कि अगर हम इस क्षेत्र में रह रहे हैं तो यहां के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए. हम से पहले कोई महिला यहां से चुनाव नहीं जीती थी. यह एक डर भी था. किसी पार्टी का वोटबैंक भी साथ नहीं था. क्षेत्र के लोगों का भरोसा और प्यार वोट में बदल कर मिला. इस तरह से मुझे क्षेत्र की पहली महिला विधायक बनने का मौका मिला.  

आप अमेरिका यात्रा पर गई थीं. कैसी रही वह यात्रा?

इंटरनैशनल विजिट्स लीडरशिप प्रोग्राम के तहत पूरे देश से 7 लोगों को 15 दिन के लिए अमेरिका बुलाया गया था. उस में मैं अकेली महिला सदस्य थी. हमें वहां की सुरक्षा, मशीनरी, खेती और संसद की कार्यवाही देखने का मौका मिला. बहुत अच्छा लगा. बहुत नईनई बातें सीखने और देखने को मिलीं.  

आप को घरपरिवार और बच्चों की देखभाल भी करनी पड़ती है, उस के लिए वक्त कैसे निकालती हैं?

वक्त तो निकालना ही पड़ता है. मेरे 2 बेटे और 1 बेटी हैं. बड़ा बेटा कक्षा 8 में है, बेटी कक्षा 6 में और सब से छोटा बेटा कक्षा 2 में पढ़ता है. इन को होमवर्क कराना, इन की स्कूल डायरी देखना और सुबह का टिफिन बना कर देना पड़ता है. जब बाहर रहती हूं तो घर के अन्य सदस्य यह करते हैं. बच्चों को मेरे हाथ का बना पास्ता खाने में बहुत अच्छा लगता है.

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