देश में भूख से होने वाली मौतों को लेकर राजनीति करना अलग बात है और सच्चाई इससे बहुत अलग है. हर राज्य में हर सरकार के शासनकाल में ऐसी मौतें होती हैं. जो सत्ता में दल होता है वह अपना बचाव करता है और जो विपक्ष में होता है वह सत्ता की आलोचना करता है. भूख से होने वाली मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बेहद गंभीर है. वहां ऐसे मामलों की मानिटरिंग होती है. सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा है कि भूख से होने वाली मौत के मामले में उस जिले के डीएम को सीधा जिम्मेदार माना जायेगा. तमाम समाजसेवी संगठन इसका हिस्सा हैं. जिससे कि गडबडी न हो और भूख से होने वाली मौतों को रोका जा सके.
केन्द्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार तक ऐसे पुख्ता प्रबंध करने का दावा करते है कि कोई मौत भूख से नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी आज तक किसी जिले के डीएम को भूख से मौत का जिम्मेदार मान कर कोई सजा नहीं दी गई है. दरअसल भूख से मौत का एक तकनीकी पेंच है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण कभी भी भूख नहीं लिखा जाता है.
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के हैदरगढ तहसील के पकरिया गांव में 40 साल के श्रीकांत दीक्षित की मौत को भूख से हुई मौत मानने से प्रशासन ने इंकार कर दिया है. बाराबंकी जिला प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में श्रीकांत के शरीर में 50 ग्राम खाना निकला है जिससे पता चलता है कि उसकी मौत भूख से नहीं हुई है.
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