भाजपा ने जब पाकिस्तान के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण करने की योजना पर काम किया तो बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने अपनी रणनीति बदल दी. सर्जिकल स्ट्राइक के पहले मायावती ‘दलित ब्राहमण गठजोड़’ की बात कर रही थीं, अब वह ‘दलित मुस्लिम गठजोड़’ को सफल बनाने की दिशा में जुट गई हैं.
कांशीराम के परिर्निवाण दिवस के मौके पर रैली में मायावती ने करीब 90 मिनट का अपना भाषण दिया. जिससे बसपा की आगे की रणनीति का खुलासा हुआ. मायावती की इस रैली में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों से मुस्लिम महिलाओं को रैली में लाया गया था. इनको रैली में अलग से बैठाया गया. जिससे मुस्लिम महिलाओं की संख्या को दिखाया जा सके. अपने भाषण में मायावती ने मुसलिमों को कई बार पुचकारा तो कई बार डराया भी.
असल में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भाजपा ने ‘मोदी का नाम और सेना का काम’ योजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया है. शुरूआती दौर में भाजपा को देश के भीतर लोगों से जिस तरह से समर्थन मिला उसके बाद से भाजपा में उत्साह है. उत्तर प्रदेश में चुनावी साल है. यहां भाजपा ने इस योजना को तेजी से आगे बढ़ाने की तैयारी की है.
रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर का जिस तरह से सम्मान समारोह किया गया उससे यह साफ हो गया कि भाजपा सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण कर रही है. ऐसे में बसपा ने इसका जवाब देने की योजना बनाई और मुसलिमों को अपनी ओर खिंचने के लिये ‘दलित मुस्लिम गठजोड़’ की बात शुरू की.
मायावती का सोचना है कि दलित-मुसिलम गठजोड़ अकेले 40 फीसदी से बड़ा वोट बैंक है. कागजी आंकड़ेबाजी देखें तो मायावती की बात में दम है. जमीनी स्तर पर देखे तो अब दलित मायावती के साथ एकजुट नहीं रह गया है. उसमें बहुत सारी जातियां बसपा से टूट चुकी हैं.