नेताओं की खासियत होती है कि वह जनता के बीच रहते है. इसीलिये उनको नेता कहा जाता है. कुछ सालांे से नेता जनता से दूर होती जा रही है. ऐसे में नेता अपनी सादगी का दिखावा करने लगते है. अपने प्रबंध् तंत्रा के बलबते नेता अपनी सादगी का दिखावा करते हुये खूब प्रचार करते है. मई दिवस को मजदूर दिवस के नाम से जाना जाता है. देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक ने इस दिन मजदूरों के साथ अपना समय गुजारा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बलिया में गरीब औरतों के लिये उज्जवला योजना शुरू की. इसके तहत उनको रसोई गैस की सुविध दी जायेगी. बलिया के ही पडोस में प्रधानमंत्री मोदी की संसदीय सीट वाराणसी में दूसरा कार्यक्रम था. इसमें प्रधानमंत्री ने गरीबो को ई-रिक्शा बांटा. यहां प्रधानमंत्री ने खुद को मजदूर नम्बर वन बताया. वैसे भी लोकसभा चुनावों में नरेंद मोदी ने खुद को चाय वाले के रूप में पेश किया था. जिसका लाभ भी उनको मिला था.
बात केवल नरेंद मोदी की ही नहीं है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 2012 के चुनाव में पूरे उत्तर प्रदेश का दौरा कर जनता से संवाद बनाया था. सरकार बनने के बाद जनता दरबार से लेकर बाकी चीजे बंद हो गई. अब चुनाव आये तो गरीबों की याद आने लगी. मजदूर दिवस के दिन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गरीबों के लिये 10 रूपये में सस्ते भोजन की योजना शुरू की. गरीबों को साइकिल बांटी. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गरीब महिलाओं से भोजन पर बातचीत की. उनके साथ भोजन करने वाली महिलाओं के फोटो और वीडिया खूब दिखाये गये. मुख्यमंत्री के प्रचारतंत्र ने पूरी घटना इस तरह से पेश किया जैसे मुख्यमंत्री रोज गरीबों के साथ बैठ कर भोजन करते हो. मुख्यमंत्री के साथ भोजन के साथ गरीबों को भी मिनरल वाटर की बोतल पीने के लिये दी गई. बेहतर होता कि इस तरह का काम पूरे साल चलता जहां गरीबों को सम्मान सहित कम से कम पैसों में भोजन मिल सकता. सरकारे इस तरह के काम कर सकती है. जब मंदिरों में भंडारे चल सकते है तो सरकारे ऐसी व्यवस्था क्यो नहीं कर सकती ?
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