हार्दिक पटेल भी अरविंद केजरीवाल की राह पर चलते हुए दिखाई पड़ रहे हैं क्योंकि उन के बयानों में विरोधाभास नजर आता है, जो कभी अन्ना आंदोलन के समय अरविंद केजरीवाल के बयानों में देखा जाता था. केजरीवाल भी अन्ना आंदोलन के समय कहते थे कि हम राजनीति में नहीं आएंगे, हम तो केवल जनलोकपाल बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं ताकि देश से भ्रष्टाचार को दूर किया जा सके. आज केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं लेकिन कभी अपनी सरकार बनने के तुरंत बाद जनलोकपाल कानून लाने की बात करने वाले केजरीवाल की सरकार आज भी जनलोकपाल कानून लाने पर विचारविमर्श ही कर रही है. आज हार्दिक पटेल ने भी अखिल भारतीय स्तर पर एक गैरराजनीतिक संगठन ‘पटेल नवनिर्माण सेना’ बना लिया जो देशभर में फैले पाटीदार समाज को संगठित कर के उन के हक की लड़ाई लड़ेगा. हार्दिक पटेल भी केजरीवाल की तरह पहले अपने आंदोलन के माध्यम से अपने संगठन को मजबूत करेंगे. बाद में हो सकता है ‘पटेल नवनिर्माण सेना’ भी एक राजनीतिक संगठन का रूप ले ले. दिल्ली में पत्रकारवार्ता में पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने इस विकल्प को भी खुला रखा है कि भविष्य में अपनी मांगों की पूर्ति के लिए वे राजनीति में भी आ सकते हैं.
हार्दिक पटेल राष्ट्रीय स्तर के नेता बनें, इस में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को राजनीति में आने का पूर्ण हक है, जिस की इजाजत सभी को भारत का संविधान देता है. लेकिन हार्दिक पटेल को अगर राष्ट्रीय स्तर का नेता बनना है तो उन्हें अपनी जानकारियों को भी मजबूत करना पड़ेगा. एक तरफ तो वे यह कह रहे हैं कि झारखंड के कुर्मी समुदाय नेहरू के कारण बदहाली का शिकार हैं, जबकि हकीकत यह है कि झारखंड में वर्ष 1932 से ले कर वर्ष 2004 तक झारखंड के कुर्मी समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दरजा प्राप्त था, जिसे वर्ष 2004 में तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल कर दिया गया था.
तत्कालीन सरकार के इस फैसले का झारखंड के कुर्मी समुदाय ने जोरशोर से विरोध किया था. दूसरी तरफ उन्हें नीतीश कुमार और सुदेश महतो जैसे राजनीतिक लोगों का समर्थन लेने या देने में कोई परहेज नहीं है. लेकिन गुर्जर आंदोलन के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैसला के राजनीति में आ जाने के कारण वे उन का सहयोग नहीं लेना चाहते हैं. हार्दिक पटेल ने पटेलों को इंसाफ दिलाने के लिए जो कदम उठाया है वह उन के समाज का मामला है. लेकिन अगर उन्हें राजनीति में आना ही है तो खुल कर सामने आएं न कि मुद्दों को तलाश करें क्योंकि उन्होंने भी केजरीवाल की तरह भष्टाचार को दूर करने के नाम पर देशभर के लोगों को इकट्ठा कर के अपनी पार्टी बना ली और हार्दिक भी पटेलों को आरक्षण दिलवाने के नाम पर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पैठ बनाने की ओर अग्रसर हैं. हालांकि यह सब इतना आसान नहीं होगा. मौजूदा स्थिति यह है कि हार्दिक पटेल ने जो पटेलों को जमा कर आरक्षण पर आंदोलन खड़ा किया था उस की धार अब कुंद पड़ गई है. बीते दिनों न तो कोई बड़ी सरगर्मी दिखी और न ही हार्दिक के बगावती तेवर.