चार माह पहले जिस भाजपा ने उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत हासिल किया वही भाजपा अब उपचुनाव में उतरने से पहले डर रही है. असल में अगस्त माह तक भाजपा को उत्तर प्रदेश में लोकसभा के 2 और विधानसभा के 5 उपचुनाव से गुजरना है. विधानसभा के 5 उपचुनाव से बचने के लिये वह विधानपरिषद के पीछे दरवाजे से अपना बचाव कर सकती है पर लोकसभा के 2 उपचुनाव का मुकाबला उसे करना ही होगा. लोकसभा की यह दो सीटे गोरखपुर और फूलपुर हैं. गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री है और फूलपुर के सांसद केशव मौर्या उत्तर प्रदेश सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं. दोनों को ही शपथ लेने के 6 माह के अंदर लोकसभा से इस्तीफा देकर विधानसभा का चुनाव लड़ना है. योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य जिन सीटों से चुनाव लड़ेंगे वहां के विधायको को इस्तीफा देकर सीट खाली करनी पड़ेगी.

भाजपा दोनो ही नेताओं के लिये ऐसी सीट की तलाश में है जहां से वह चुनाव हारे नहीं. इन नेताओं के द्वारा खाली की गई लोकसभा सीट पर भी ऐसे लोगों को चुनाव लड़ाना है जो चुनाव न हारे. उपचुनाव में हार का प्रभाव योगी सरकार पर पड़ेगा. हार का मतलब होगा कि भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है. भाजपा को अपने 3 दूसरे नेताओं के लिये भी विधानसभा या विधान परिषद की सदस्यता का रास्ता बनाना है. इनमें उपमुख्यमंत्री डाक्टर दिनेश शर्मा, मंत्री स्वतंत्र देव सिंह और मोहसिन रजा शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में पहली बार एक साथ इतनी संख्या में ऐसे लोगों को प्रदेश सरकार में मंत्री बनाया गया, जो विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं हैं.

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