शराबबंदी का असर
बिहार के सिवान के महादेव सहायक थाना क्षेत्र के बंगाली पकड़ी इलाके की रहने वाली लाडो देवी ने अपने शराबी पति को जेल भिजवा दिया. दरअसल, लाडो देवी का पति विकास राजभर रोज शराब पी कर उस के साथ मारपीट करता था. लाडो देवी उसे रोज समझाती कि शराब पीना छोड़ दे, पर विकास कुछ सुनने को तैयार नहीं था. लाडो ने उसे शराबबंदी कानून का डर भी दिखाया, पर विकास उस की बातों की खिल्ली उड़ाता रहता था. तंग आ कर लाडो देवी ने थाने में अपने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी. उस के बाद थाना इंचार्ज शंभूनाथ सिन्हा दलबल के साथ विकास के घर पहुंचे और उसे नशे की हालत में गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.
इस के पहले सिवान के ही मटुक छपरा गांव की पूनम ने अपने पियक्कड़ पति को शराब पीते रंगे हाथ गिरफ्तार करा दिया था.
शराबबंदी का असर
राज्य में शराबबंदी के बाद 16 साल से अलगअलग रह रहे मियांबीवी एक बार फिर शादी के बंधन में बंध गए और उन्होंने अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने की कसमें खाईं. दोनों को मिलाने में उन की बेटी ने खास रोल अदा किया.
मामला सासाराम के मेहंदीगंज थाना इलाके का है. 16 साल पहले अपने पति जय गोविंद सिंह की दारूबाजी से तंग आ कर उस की बीवी विजयंती देवी ने उसे छोड़ दिया था. उस समय विजयंती देवी अपनी एक साल की बेटी को ले कर घर से निकल गई थी और मायके में रहने लगी थी. उस के बाद जय गोविंद ने उसे कई बार मनाने और घर वापस लौटने की गुजारिश की, लेकिन विजयंती देवी इस बात पर अड़ी रही कि जब तक वह शराब नहीं छोड़ेगा, तब तक वापस नहीं लौटेगी.
साल दर साल गुजरते गए. उन की बेटी गुड्डी ने अपने मांबाप को दोबारा मिलाने की कोशिश शुरू की और उन दोनों ने एक बार फिर से एकदूसरे के गले में वरमाला डाल कर शादी रचा ली. हार में शराबबंदी का अब सुकून भरा असर दिखने लगा है. औरतें इस को ले कर काफी सचेत हो गई हैं. बिहार महिला आयोग के शिकायत रजिस्टर को देखने के बाद आसानी से पता चल जाता है कि इस से महिलाओं को क्या और कितना फायदा हुआ है. आयोग की अध्यक्ष अंजुम आरा बताती हैं कि शराबी पति द्वारा की गई पिटाई और झगड़े से तंग औरतों की रोजाना 3-4 शिकायतें आयोग को मिलती थीं, पर शराबबंदी के 8 महीने गुजरने के बाद ऐसा एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ है. इस से साफ हो जाता है कि शराब पर बैन लगने से सब से ज्यादा फायदा औरतों को मिला है.
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, औरतों पर होने वाली तकरीबन 80 फीसदी हिंसक वारदातें नशे की हालत में ही होती हैं. साल 2015 में बिहार विधानसभा का पिछला चुनाव जीतने के बाद 20 नवंबर, 2015 को नीतीश कुमार ने ऐलान किया था कि 1 अप्रैल, 2016 से बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी. बिहार में औरतें काफी दिनों से शराब पर रोक लगाने की मांग करती रही थीं. 1 अप्रैल, 2016 से राज्य में पूरी तरह से शराब बनाने, बेचने, खरीदने और पीने पर रोक लगी हुई है, जिस के बेहतर नतीजे अब सामने आने लगे हैं. शराब पीना कितना खतरनाक और जानलेवा है, इस के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर किया जा सकता है. संगठन के आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल आबादी के 30 फीसदी लोग शराब पीते हैं, जिन में से 13 फीसदी लोग रोज शराब पीने के आदी हैं. हर साल ही शराब पीने वालों का आंकड़ा 8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है. गांवों के 45 फीसदी लोग शराब पीने के आदी हैं और सड़क हादसों में होने वाली कुल मौतों में 20 फीसदी मौतें शराब पीने से होती हैं. शराबबंदी के पीछे गांव की औरतों का दुखड़ा है, जिसे उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सुनाया था और शराब पर रोक लगाने की गुहार लगाई थी. 9 जुलाई, 2015 को मद्य निषेध दिवस के मौके पर पटना के श्रीकृष्ण मैमोरियल हाल में स्वयंसहायता समूह की औरतों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने कड़वे अनुभव सुनाए थे.
खगडि़या के चौथम गांव की आशा देवी, गया के खिजसराय गांव की रेखा देवी और मुजफ्फरपुर की गीता ने मुख्यमंत्री को बताया था कि किस तरह से उन्होंने गांव की औरतों के साथ मिल कर अपने इलाके में शराब पर रोक लगा दी है.
समारोह में पहुंची हजारों औरतों ने एक सुर में कहा था, ‘मुख्यमंत्रीजी, शराब को बंद कराइए. इस से हजारों घर बरबाद हो रहे हैं.’ उन्हीं औरतों के किस्सों को सुन कर नीतीश कुमार ने उसी समय ऐलान कर दिया था कि अगर वह दोबारा सत्ता में आएंगे, तो शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देंगे. तमाम विरोधों के बाद भी उन्होंने ऐसा कर दिखाया. पहले तो नीतीश कुमार ने 1 अप्रैल, 2016 को देशी दारू पर रोक लगाने का ऐलान किया था, पर बाद में 5 अप्रैल, 2016 से बिहार में हर तरह की शराब पर पाबंदी लगा दी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मानते हैं कि 2015 के विधानसभा चुनाव के पहले उन्होंने शराब पर रोक लगाने का वादा किया था और राज्य की औरतों ने उन के वादों पर यकीन कर उन्हें रिकौर्ड वोट दिए थे.
गौरतलब है कि औरतों के वोट फीसदी 54.85 के मुकाबले मर्दों का वोट फीसदी 50.70 रहा था. साल 2000 के विधानसभा चुनाव में मर्दों के मुकाबले 20 फीसदी औरतों ने वोट की ताकत का इस्तेमाल किया था. शराबबंदी के ऐलान के साथ पंचायत चुनाव में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन दे कर नीतीश कुमार ने औरतों को गोलबंद कर लिया था. इस वजह से नीतीश कुमार के लिए शराब पर पाबंदी लगाना जरूरी हो गया था. पटना के मलाही पकड़ी गांव की 42 साला फुल कुमारी देवी कहती हैं कि जब से सरकार ने शराब बंद की है, तब से वे बहुत खुश हैं. उन का शौहर अब रात को दारू पी कर घर नहीं आता है और न ही बवाल मचाता है. अब रोज वह अपने पति और बच्चों के साथ रात को खाना खाती हैं, टैलीविजन देखती हैं और उस के बाद चैन से सोती हैं. शेखपुरा जिले के बरबीघा ब्लौक के रमजानपुर गांव की औरतों ने शराब के विरोध में अपना अलग ही नियमकानून बना लिया है और उसे कड़ाई से लागू भी कर रही हैं. उन के गांव में दारू बेचने और पीने पर पूरी तरह से रोक है. औरतें जत्था बना कर पूरे गांव में घूमती रहती हैं और खुद ही इस बात की निगरानी करती हैं कि कहीं कोई चोरीछिपे दारू तो नहीं पी रहा है.
रमजानपुर की पंचायत सदस्य शलभ देवी बताती हैं कि गांव की औरतों ने मिल कर दारू के खिलाफ अपना नियम बनाया है. शराब पीते पकड़े जाने वाले से ढाई हजार रुपए जुर्माने के तौर पर वसूले जाएंगे. दारू बेचते हुए पकड़े जाने वालों से 10 हजार रुपए वसूले जाएंगे. दारू बेचने और पीने वालों को इतना जुर्माना भरने के बाद भी नहीं छोड़ा जाएगा. इतना ही नहीं, दारूबाज को औरतों से बतौर सजा 10 झाड़ू भी खाने पड़ेंगे. दारूबाजों को जुर्माना भरने के साथ सरेआम अपनी इज्जत भी गंवानी पड़ेगी.
बाज नहीं आ रहे कुछ लोग
पिछले साल अगस्त महीने में गोपालगंज में जहरीली शराब पीने से 17 लोगों की मौतें हो गई थीं. दारू पी कर कुछ देर के लिए मजा मारने की लत ने पीने वालों को तो मौत की नींद सुला दिया, लेकिन उन के घर वालों को रोनेतड़पने के लिए छोड़ दिया. मीरगंज थाने की कंचन बताती हैं कि 16 अगस्त को उन का पति शशिकांत किसी काम से गोपालगंज गया था. रास्ते में ही हरखुआ ढाले के पास उन्होंने दोस्तों के साथ दारू पी. शाम को घर लौटते ही उन्होंने पेट में दर्द की शिकायत की. जब तक वे कुछ समझ पातीं, तब तक शशिकांत ने उलटी करना शुरू कर दिया. आननफानन उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया, पर रात 8 बजे उन की मौत हो गई.
नगर थाने के इंस्पैक्टर बीपी आलोक समेत 25 पुलिस वालों को भी सस्पैंड कर दिया गया. गोपालगंज के कलक्टर राहुल कुमार ने माना कि जिले के खजूरबन्नी इलाके में शराब या जहरीला पेय पीने से 17 लोगों की मौतें हुई हैं. गोपालगंज के खजूरबन्नी गांव में देशी शराब धड़ल्ले से बिक रही थी. 17 मौतों के बाद गांव के लोगों की भी नींद खुली है और अब वे देशी दारू बनाने और बेचने वालों के खिलाफ खड़े हो गए हैं. गांव का रघुराम बताता है कि 20 रुपए में आधा गिलास और 40 रुपए में एक गिलास देशी दारू बिक रही थी. वहीं अंगरेजी शराब की बोतल एक हजार रुपए में मिलती है. खजूरबन्नी इलाका देशी दारू का एकलौता अड्डा है. बिहार में शराबबंदी का फैसला तो लागू कर दिया गया, पर देशी शराब बनाने और बेचने का गैरकानूनी काम कई इलाकों में चल रहा है और इस में लोकल पुलिस वालों की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता है. शराब पर बैन के बाद भी कोई तगड़ा नैटवर्क है, जो यह जहर बांट रहा है और कानून की धज्जियां उड़ा रहा है.