कांग्रेस सांसद शशि थरूर की एक टिप्पणी पर भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर कांग्रेस पर टूट पड़ी है. थरूर अपनी टिप्पणी से विवादों में घिर गए हैं. बेंगलुरू लिटरेचर फेस्टिवल में संघ के एक नेता का हवाला दे कर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना शिवलिंग पर बैठे बिच्छू से कर दी थी. उन्होंने कहा था आरएसएस के एक अनाम सूत्र ने एक पत्रकार से बातचीत में बेहद विचित्र तुलना की थी. कहा था कि मोदी शिवलिंग पर बैठे बिच्छू जैसे हैं, जिसे आप न हाथ से हटा सकते हैं और न ही चप्पल से मार सकते हैं.
शशि थरूर ने अपने बयान में संघ के एक अनाम सूत्र द्वारा एक पत्रकार के समक्ष की गई टिप्पणी का जिक्र किया है. विवाद बढ़ने पर उन्होंने उस लेख का लिंक भी ट्वीटर पर शेयर किया. हालांकि विवाद बढ़ने पर उन्होंने कहा कि यह टिप्पणी 6 साल से पब्लिक डोमेन में है.
मालूम हो कि शशि थरूर ने जिस लेख का हवाला दिया है वह दिल्ली प्रेस की कारवां पत्रिका में मार्च, 2012 में ‘द एंपरर अनक्राउंड’ नाम से पत्रिका की वेबसाइट पर छपा था.
लंबे लेख के आखिरी पैराग्राफ में लिखा है, मेरे गुजरात छोड़ने से पहले आरएसएस के एक नेता ने कटुता के साथ कहा, शिवलिंग में बिच्छू बैठा है. ना उस को हाथ से उतार सकते हो, ना उस को जूता मार सकते हो.
In view of the unseemly demonisation of an out of context remark today involving a scorpion metaphor, my book #TheParadoxicalPrimeMinister cites & footnotes this article — please see the last paragraph of this article. https://t.co/wgrBrjiM7T
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) October 28, 2018
थरूर की टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए भाजपा ने कांग्रस अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी मांगने को कहा है. पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने कहा कि राहुल गांधी खुद को शिव भक्त कहते हैं और उन के नेता शिवलिंग पर चप्पल फेंकने की बात कहते हैं. क्या यह भगवान शिव का अपमान नहीं है?
रविशंकर प्रसाद ने चेतावनी भी दी कि हिंदू देवीदेवताओं का ऐसा अपमान यह देश सहन नहीं करेगा. उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछा है कि क्या वह शिवलिंग पर चप्पल फेंकने वाले थरूर के बयान का समर्थन करते हैं.
एक और केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह ने कहा कि अगर पाकिस्तान होता तो शशि थरूर की जुबान को चुप कर दिया गया होता. उन्होंने प्रधानमंत्री का अपमान नहीं किया, करोड़ों हिंदुओं और भगवान शिव को अपमानित किया है.
पिछले कुछ समय से भाजपा नेता बातबात पर देवीदेवताओं पर अपमान को ले कर आवाज उठाने लगते हैं. 4-5 सालों से नेताओं द्वारा आपस में की गई टीकाटिप्पणियों, मानहानि, भावनाओं को ठेस के आरोपों के मामले अदालतों में बड़ी तादाद में पहुंचे हैं.
नेताओं पर परस्पर टिप्पणियों से पार्टियां आमनेसामने आ जाती है. राजनीतिक पार्टियों में जरा भी सहनशक्ति दिखाई नहीं देती. वह हर बयान, टिप्पणी को राजनीतिक नफानुकसान से तोलती है. बातबात पर देवीदेवताओं के अपमान, धार्मिक भावनाओं को ठेस की बात को बीच में ले आती है. खासतौर से संघभाजपा के नेताओं की भावना बहुत जल्दी आहत होती है.
यह स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा ही है और लोकतंत्र का मूल आधार है. लोकतंत्र में जनता के मौलिक अधिकारों की बहुत अहमियत है लेकिन राजनीति में असहमति घटती जा रही है और आपसी टकराव बढ़ रहे हैं. यह देश, समाज के लिए अच्छे संकेत नहीं है.
कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं चाहती उस के नेता और उस के कामकाज पर सवाल खड़े हो. विपक्ष के विचारों और प्रतिकूल टिप्पणियों या किसी नेता के खिलाफ बयानों का स्वागत करना तथा बदलाव के लिए तत्पर रहना किसी भी देश की जनता के सुखशांति एवं प्रगति के लिए आवश्यक है.
सरकार और राजनीतिक पार्टिंयां कभीकभी सामाजिक अधिकारों की बात करने वाले लोगों या सत्ता के विरुद्घ आवाज उठाने वाले लोगों को इस का हवाला दे कर उन पर कठोर कारवाई पर उतारू दिखती है.
तानाशाही प्रवृत्तियां हमेशा विरोधी आवाज को दबाने के प्रयास करती आई हैं. राजशाही और तानाशाही शासनों में विरोधियों की आवाजों को हमेशा कुचला गया. लोकतंत्र ने अभिव्यक्ति की यह आजादी प्रदान की है.
पर स्वतंत्रता का अर्थ यह भी नहीं है कि कुछ भी बोल कर या लिख कर उस का दुरुपयोग किया जाए. उसे कानून द्वारा परिभाषित दायरे में रह कर बोलता पड़ता है. उल्लंघन किए जाने पर दंडित किए जाने का प्रावधान भी है.
समाज के समग्र विकास के लिए अभिव्यक्ति की आजादी उतनी ही जरूरी है जितना जीने का अधिकार है. तभी सही मायने में देश विकास की राह में आगे बढ़ेगा.