ऋचा जोगी इतनी सुंदर और आकर्षक महिला हैं कि उनकी तुलना सिने तारिकाओं से न करना उनके साथ ज्यादती होगी. ऋचा को छत्तीसगढ़ के लोग किस्मत का धनी भी कहते हैं.उनकी शादी 6 दिसंबर 2011 को छतीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के इकलौते बेटे अमित जोगी के साथ दिल्ली के कान्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में हुई थी. इस प्रीतिभोज में देश की सियासी दिग्गज हस्तियों ने शिरकत की थी इनमें सोनिया गांधी और लालकृष्ण आडवाणी के नाम उल्लेखनीय हैं. इस दिन अमित और ऋचा दोनों ने सोनिया गांधी का स्वागत बस्तर का पारम्परिक गौर सींग पहन कर किया था.
तब गांधी नेहरू परिवार और अजीत जोगी के रिश्ते बहुत मधुर थे इसी मधुरता के चलते सोनिया गांधी ने अजीत जोगी को छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री बनाने तत्कालीन दिग्गजों विध्याचरण शुक्ल और मोतीलाल वोरा की नाराजी की भी परवाह नहीं की थी. इसके बाद बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद अजीत जोगी को भी नहीं थी. वे राज्यसभा का टिकिट चाहते थे लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने मना कर दिया तो वे इतने गुस्सा उठे कि पार्टी ही छोड़ दी और अब अपनी अलग पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस बनाकर तीसरी ताकत बनने का सपना देख रहे हैं.
बसपा के साथ गठबंधन कर चुनावी ताल ठोक रहे अजीत जोगी की यह राह आसान नहीं है लेकिन इस राह को आसान बनाने वे जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. एक हादसे में अपने दोनों पैर गंवा बैठे अजीत जोगी को बेहतर मालूम है कि अगर वे सम्मानजनक सीटें नहीं ले जा पाये तो कहीं के नहीं रहेंगे.
सुर्खियों में बने रहने के तमाम टोटकों के जानकार अजीत जोगी का आत्मविश्वास इन दिनों लड़खड़ाया हुआ भी है पिछले दिनों उन्होने घोषणा कर डाली के वे चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन दूसरे ही दिन अपने बयान से पलटी मारते हुये बोले कि वे अपनी परंपरागत सीट मारवाही से चुनाव लड़ेंगे जिसे जोगी लेंड भी कहा जाता है. राज्य के सियासी हल्कों में यह माना जा रहा है कि जोगी अब अपने फैसले मायावती के इशारों पर लेने मजबूर हो चले हैं क्योंकि गठबंधन के तहत उन्हें छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री घोषित किया जा चुका है.
इस न और फिर हां के माने कोई समझ पाता इससे पहले ही उन्होने अपनी बहू ऋचा को बसपा में भेज दिया और उन्हें अकलतरा सीट से बसपा का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया. इसके पहले ऋचा कई बार कह चुकीं थीं कि राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन आर पार की लड़ाई लड़ रहे अपने ससुर का तनाव भी वे देख रहीं हैं जिन्होने पहले राजनांदगव सीट से मुख्यमंत्री रमन सिंह को टक्कर देने की चुनौती दी थी लेकिन अब उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही कि वे रमन सिंह के खिलाफ मैदान में उतरें. इस सीट पर कांग्रेस करुणा शुक्ला को लड़ा रही है जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी हैं और भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में आईं हैं.
अकलतरा ही क्यों – अपनी बहू के बाबत अजीत जोगी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते इसलिए उन्होने जांजगीर – चांपा जिले की अकलतरा सीट को चुना जो बसपा के प्रभाव बाली है हालांकि 2013 में यह सीट कांग्रेस के चुन्नीलाल साहू ने जीती थी लेकिन 2008 के चुनाव में इस सीट से बसपा के सौरभ सिंह ने नीला झण्डा फहराया था. इस बार भी बसपा यहाँ से भाजपा और कांग्रेस को कड़ी टक्कर देने की गरज से एक ब्राह्मण उम्मीदवार को उतारने बाली थी लेकिन ऋचा की उम्मीदवारी से समीकरण बदले हैं.इस सीट पर मतदाताओं की संख्या लगभग 1 लाख 98 हजार है जिनमें से कोई 65 हजार दलित समुदाय के वोट हैं जो बसपा और कांग्रेस में बंट जाते थे और कुछ भाजपा को भी मिल जाते थे.
कम ही लोग जानते हैं कि ऋचा जोगी मूल रूप से दलित समुदाय की हैं इसलिए उन्हें इस सीट से उतारा जा रहा है जहां उन्हें बसपा प्रत्याशी होने का अतिरिक्त फायदा मिलेगा. आदिवासी वोटों को खुद अजीत जोगी साधेंगे. फौरी तौर पर ऋचा की जीत में कोई शक नहीं लेकिन मुक़ाबला उतना आसान होगा नहीं जितना कि अजीत जोगी मान कर चल रहे हैं.उनकी बहू को हराने कांग्रेस और भाजपा दोनों एड़ी चोटी का ज़ोर लगा देंगे. भाजपा भी इस सीट पर काबिज हो चुकी है और इस बार दलित और आदिवासी वोटों के बंटबारे में अपना फायदा देख रही है. उसे सवर्ण वोट अपने पाले में आने की पूरी उम्मीद है.
एक परिवार से चार – अब चटखारे लेकर छत्तीसगढ़ के लोग चर्चा कर रहे हैं कि पूरा जोगी खानदान ही चुनाव में कूद पड़ा है. मारवाही से अजीत जोगी खुद लड़ने की बात कह चुके हैं और उनकी डाक्टर पत्नी रेणु जोगी कोटा सीट से कांग्रेस की विधायक हैं. दिलचस्प बात यह है कि रेणु जोगी तीन बार से इस सीट से कांग्रेस से जीत रहीं हैं और इस बार भी टिकिट मांग रहीं हैं. कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस अगर इस बार उन्हें टिकिट नहीं भी देती है तो वे अपने पति की पार्टी से लड़ सकतीं हैं. कोटा में रेणु जोगी की लोकप्रियता किसी सबूत की मोहताज नहीं है अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के टिकिट न देने पर उनकी लोकप्रियता पर कहीं ग्रहण न लग जाये.
अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी भी चुनाव लड़ेंगे जिनकी सीट अभी तय नहीं हुई है एक संभावना यह भी है कि पत्नी और पिता को जिताने वे न लड़ें लेकिन जब तक वे खुद घोषणा नहीं कर देते तब तक उनकी दावेदारी खारिज नहीं होगी. अमित जोगी भी अभी विधायक हैं.
प्रतिभाशाली लेकिन अभिशप्त परिवार – अजीत जोगी ने पूरा कुनवा दांव पर लगाकर कहीं आफत तो मोल नहीं ले ली इस सवाल का जबाब तो 11 दिसंबर को मिलेगा लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि महत्वाकांक्षी जोगी परिवार के सभी सदस्य प्रतिभाशाली हैं. अजीत जोगी खुद आईएएस और आईपीएस अधिकारी रहे हैं इसके पहले वे लेक्चरार थे. बेहद गरीब परिवार में पले बढ़े अजीत जोगी को चाणक्य कहे जाने बाले अर्जुन सिंह कलेक्टरी छुड़बाकर राजनीति में लाये थे और उन्हें छत्तीसगढ़ का पहला मुख्यमंत्री बनबाने में भी उनका रोल अहम रहा था. तब उनका मकसद ब्राह्मण लाबी को ठेंगा बताना था.
साल 2003 के चुनाव में अजीत जोगी की अगुवाई में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसी दुर्गति का शिकार हुई कि आज तक उससे उबर नहीं पाई 2008 और 2013 में भी वोटर ने कांग्रेस को नकार दिया तो अजीत जोगी पर वैसी ही उंगलियां उठीं थीं जैसी मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह को लेकर उठती रहीं थीं.इस चुनाव में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को हाशिये पर डाल दिया है यही हश्र अजीत जोगी का भी होना तय था लेकिन बगाबत करते उन्होने खुद की पार्टी बना ली.
रेणु जोगी विधायक और डाक्टर होने के साथ साथ अच्छी लेखिका भी रहीं हैं एक वक्त में उनकी रचनाएँ देश की नामी पत्रिकाओं में छपती थीं लेकिन राजनीति में आने के बाद उन्होने लिखना बंद कर दिया.उनके भाई रत्नेश सलोमन मध्यप्रदेश में मंत्री रह चुके हैं.
अमेरिका में जन्मे अमित जोगी ने कानून की डिग्री गोल्ड मेडल के साथ हासिल की थी लेकिन उनकी छवि एक बिगड़ेल बेटे की रही है. एनसीपी नेता राम अवतार जग्गी हत्या कांड में उनका फंसना भी कांग्रेस को काफी महंगा पड़ा था अलावा इसके अमित जोगी विधायकों की खरीदफ़रोख्त बाले सीडी कांडों के लिए भी बदनाम रहे हैं. इसी के चलते कांग्रेस ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया था.
खुद अजीत जोगी उस वक्त आलोचना का शिकार हुये थे जब छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होने अपनी बेटी अनुषा जोगी की कब्र खुदबाई थी और उसकी हड्डियाँ अपने साथ ले गए थे .अनुषा ने इंदौर में आत्महत्या की थी क्योकि वह प्रेम विवाह करना चाहती थीं और जोगी दंपत्ति इसके लिए तैयार नहीं थे.ऐसे कई विवाद और परेशानियाँ जोगी परिवार के साथ जुड़े हैं जिनमें से अहम है अजीत जोगी की जाति आदिवासी न होना जबकि तमाम उपलब्धियां उन्होने आदिवासी होने की बिना पर ही ली हैं.उनकी जाति का मुकदमा अभी भी हाइ कोर्ट में चल रहा है.कई लोग उन्हें सतनामी बताते हैं जो दलित समुदाय में आते हैं.ईसाई धर्म को मानने बाले अजीत जोगी ने जबलपुर के केंट इलाके के ईसाई कब्रिस्तान में पूरे परिवार के लिए कब्रें बुक करबा रखीं हैं.
गुजरे कल की इन बातों की मौजूदा चुनाव में ख़ासी अहमियत है कि तिकड़मी अजीत जोगी अपनी ज़िंदगी में कभी स्पष्ट और ईमानदार नहीं रहे. तीन साल का उनका मुख्यमंत्रितव काल छत्तीसगढ़ का सबसे घटिया दौर था.कभी राजीव गांधी के लिए रायपुर एयर पोर्ट पर खाना और नाश्ता ले जाने बाले कलेक्टर रायपुर अजीत जोगी दिल्ली में जानबूझकर उसी चर्च में जाते थे जिसमें सोनिया गांधी जातीं थीं.खुशामद और चापलूसी कोई प्रतिभाशाली आदमी करे तो उसकी गुणवत्ता कुछ और होती है लेकिन अजीत जोगी का अहंकार रिश्तों , मित्रता और राजनीति में भी हर कभी दिखता रहा है. पारदर्शिता का अभाव भी उनमें है इसलिए आज भी छत्तीसगढ़ की जनता उनसे नाक भों सिकोड़ती है और इसीलिए सोनिया राहुल गांधी ने उनसे दूरी बना लेना बेहतर समझा था.
अब मायावती के सगे वे हो गए हैं लेकिन मायावती ने ऐसे कई जोगी अपनी ज़िंदगी में देखे हैं इसलिए वे भी किसी का भरोसा नहीं करतीं न ही कोई उन पर भरोसा करता. देखना वाकई दिलचस्प होगा कि यह जोड़ी कोई गुल छत्तीसगढ़ में खिला पाती है या फुस्सू साबित होती है संभावना दूसरी बात की ज्यादा छत्तीसगढ़ के हालातों को देखते लगती है क्योंकि सीधा मुक़ाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है. मध्यप्रदेश के चुनावी परिद्रष्य में दिग्विजय सिंह के न होने से कोई नुकसान कांग्रेस को होता नहीं दिख रहा है लेकिन अजीत जोगी मामूली ही सही नुकसान तो कांग्रेस का छतीसगढ़ में करेंगे.
हालांकि राजनैतिक विश्लेषक यह मान कर चल रहे हैं कि अजीत जोगी और मायावती कांग्रेस से ज्यादा भाजपा का नुकसान करेंगे जिसे पिछले तीन चुनावों में थोक में दलित और आदिवासी वोट मिलते रहे हैं. यानि कांग्रेस के पास खोने कुछ खास नहीं है इसलिए बड़ी पार्टी होने के चलते एंटी इंकम्बेंसी वोट उसके खाते में ज्यादा जाएगा. बाकी वोटर का मूड है जिसे लोकतन्त्र कोई नहीं भाँप पाता.