प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी का वही अंजाम न हो जो अटल बिहारी वाजपेई सरकार का 2004 में हुआ था. यह डर पूरी टीम मोदी को सता रहा है. यही वजह है कि जैसेजैसे चुनाव का समय करीब आता जा रहा है, नईनई घोषणाएं की जा रही हैं. पहले यह माना जा रहा था कि राममंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नई संसद जैसी उपलब्धियों के सहारे ही भाजपा 2024 के चुनाव मैदान में उतरेगी जैसे वर्ष 2004 में तत्कालीन भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने किया था. उस समय ‘इंडिया शाइनिंग’ के नाम पर भाजपा को लगा कि उस की जीत होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. अटल सरकार आत्मविश्वास से इतना भरी हुई थी कि उस ने समय से 6 माह पहले ही चुनाव करवा लिया.

मुगालते में थी भाजपा

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की हार पर पहले कोई नेता कुछ सुनना ही नहीं चाहता था. उस के पास तर्क होते थे कि एनडीए के पास अटल जैसा नेता, प्रमोद महाजन जैसे कुशल प्रबंधक, ‘इंडिया शाइनिंग’ और ‘फील गुड’ जैसे नारे थे. उन के सामने बिखरा हुआ विपक्ष था. कांग्रेस यूपीए गठबंधन बना रही थी, जिस में तमाम नेता थे. सोनिया गांधी के ऊपर विदेशी मूल का ठप्पा लगा था. वे अच्छा भाषण नहीं कर पाती थीं. गठबंधन के दूसरे दल एकदूसरे के साथ चलने को तैयार न थे. माहौल पूरी तरह से अटल सरकार के पक्ष में था. मौसम अनुकूल देख चुनाव समय से पहले करा लिया गया.

भाजपा अपनी जीत को ले कर पूरी तरह आश्वस्त थी. चुनावी नतीजों के एक दिन पहले प्रमोद महाजन ने प्रधानमंत्री वाजपेयी के सामने भारत का नकशा ले कर यह व्याख्या की कि भाजपा 1999 के चुनावों के मुकाबले कहीं अधिक सीटें जीतने वाली है.

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