ये वही लालकृष्ण आडवाणी हैं जिन की एक आवाज पर कभी उग्र हिंदूवादी अपना सिर कटाने के लिए तैयार रहते थे. उन के रथयात्रा वाले फोटो भाजपाइयों के ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाते थे जिन में वे कृष्ण की तरह रथ हांक रहे हैं. अपने कंधों पर भाजपा को ढोते सत्ता के सिंहासन तक ले जाने वाले इस बुजुर्ग की इतनी दयनीय और हास्यास्पद हालत हो जाएगी, यह बात वाकई उम्मीद से परे है.

राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार न बनाए जाने पर सोशल मीडिया पर आडवाणी को ले कर खूब चुटकियां ली गईं. एक पोस्ट, जिस के फोटो में वे सिर पकड़ कर बैठे हैं, में कहा गया कि देखो, आज फिर एक सामान्य जाति का होनहार युवक आरक्षण की बलि चढ़ गया. एक दूसरी पोस्ट में राष्ट्रपति पद के शपथग्रहण समारोह में वेटर उन से पूछ रहा है कि सर, क्या लाऊं? तो वे कह रहे हैं कि लेने तो शपथ आया था, तू जलजीरा ही ले आ. मजाक उड़ाने वालों में हिंदूवादियों और भक्तों की भी खासी तादाद है. कम से कम अपने पितृपुरुष का मजाक तो उन्हें यों नहीं उड़ाना चाहिए. शुरू में मिली सहानुभूति का हास्य में तबदील होना हिंदुत्व के संस्कारों पर प्रश्नचिह्न लगने जैसी बात ही है.

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