मैं देवास से इंदौर उपनगरीय बस से यात्रा कर रही थी. बस में भीड़ थी. ग्राम क्षिप्रा से एक गरीब वृद्धा, जिन की उम्र लगभग 75 वर्ष या ज्यादा रही होगी, अकेली ही बस में सवार हुईं.

परिचालक ने जगह कर के उन्हें मेरे पास बैठा दिया. चर्चा के दौरान वृद्धा ने बताया कि वे अपने एकमात्र पुत्र से मिलने इंदौर जा रही हैं, जो उन्हें वृद्धावस्था में असहाय छोड़ कर किसी बात पर नाराज हो कर इंदौर आ गया था. मां का हृदय न माना और तमाम अवरोधों, शारीरिक अक्षमता के बावजूद वे व्याकुल हो उस से मिलने को जा रही थीं.

परिचालक आया और उस ने उन से किराया मांगा. वृद्धा द्वारा कम किराया देने पर वह पूरा किराया देने को कहने लगा. पर्याप्त किराया न होने से याचनात्मक स्वर में मजबूरी बता कर वृद्धा ने उस से उतने ही पैसे रखने को कहा.

वस्तुस्थिति समझ और बेटे से मिलने की व्याकुलता देख परिचालक का व्यवहार एकदम विनम्र हो गया और वृद्धा को वे पैसे भी वापस कर दिए, यह कह कर कि इस से कुछ खा लेना, मां समान हो, पैसे क्या लेना  परिचालक ने पूरी यात्रा में वृद्धा का ध्यान रखा तथा गंतव्य पर उन्हें सहारा दे कर बस से उतार दिया. परिचालक के इस व्यवहार से मन अगाध आस्था से भर गया.

विद्या व्यास

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पड़ोस में एक माताजी अपने बेटे के साथ रहती हैं. मातापिता की उम्र करीब 65 साल है. बेटा स्कूल में पढ़ाता है. उस की शादी नहीं हुई है. एक दिन बेटा अपनी मां से बोला, ‘‘मां, चलो तुम्हें नई साड़ी खरीद दूं.’’

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