Maharashtra Election : महाराष्ट्र राज्य विधान सभा चुनाव परिणामों ने हर किसी को चौंका दिया है. महाविकास अघाड़ी की बुरी तरह से हुई पराजय और महायुति की प्रचंड जीत ने कई सवाल उठा दिए हैं. ऐसा पहली बार हुआ है, जब इन चुनाव परिणामों को देख कर महाराष्ट्र की जनता भी गुस्से में है. तो वहीं विपक्ष यानी कि ‘महाविकास अघाड़ी’ की तरफ से हार को स्वीकार करने की बजाय चुनाव आयोग व सरकारी मशीनरी पर ही सारा दोश मढ़ा जा रहा है. उधर उद्धव ठाकरे और संजय राउत ने अपनी पार्टी की पार्टी की हार का ठीकरा चुनाव आयोग के साथ ही पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पर फोड़ा है, मगर कोई भी अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखना चाहता. जबकि ‘महा विकास अघाड़ी की इस पराजय के पीछे सरकारी मशीनरी और चुनाव आयोग की करतूतों के साथ इन दलों के अंदर पल रहे ‘पैरासाइट्स / परजीवी तथा इन दलों की अपनी कार्यशैली कम जिम्मेदार नहीं है. तो वहीं इस बार पूरे महाराष्ट्र में ‘आरएसएस’ जमीनी सतह पर बहुत ही ज्यादा सक्रिय रहा.
भजपा और आरएसएस ने जम कर वोटरों को ढर्म की चाशनी चटाई. चुनाव के दौरान सक्रिय रहे पत्रकार भी विपक्षी दलों की हार से आश्चर्यचकित हैं, मगर किसी ने भी इन की कार्यशैली की कमियों की तरफ इशारा न चुनाव के दौरान किया था और परिणाम आने के बाद कर रहे हैं. किसी को भी दोश देने से पहले जरुरत होती है कि पहले आप अपना घर मजबूत करें, अफसोस विपक्षी दलों के घर के अंदर ही मतभेद और एकदूसरे को नीचा दिखाने की आग धधकती रही.
विपक्षी दल व कुछ राजनैतिक विश्लेशक दावा कर रहे हैं कि भाजपा समर्थित ‘महायुति’ को ‘लाड़ली बहना योजना’, जिस के तहत महिलाओं को हर माह 1500 दिए गए, ने जिताया. यह एक फैक्टर हो सकता है मगर बड़ा फैक्टर नहीं. महज इस योजना के चलते ‘महायुति’ के खाते में 288 में से 230 सीटें और महाविकस अघाड़ी केवल 49 पर सिमट जाए, यह नहीं हो सकता. बहरहाल, महाराष्ट्र राज्य के दल गत चुनाव परिणाम इस प्रकार रहे. भजपा 132, शिवसेना शिंदे गुट 57, एनसीपी अजीत पवार गुट 41 सीट, शिवसेना उद्धव गुट 20, कांग्रेस 16 और एनसीपी शरद पवार गुट 10 सीटें.
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणामों के विश्लेशण करने से पहले विपक्षी दलों की हार की मूल वजह पर एक नजर डाना जरुरी है. ‘यथा राजा तथा प्रजा.’ यही सच है. 2014 से बौलीवुड और विपक्षी दलों की कार्यशैली एक जैसी हो गई है. इसी वजह से बौलीवुड की हर फिल्म व हर दिग्गज कलाकार बौक्स औफिस पर डूब रहा है, तो वहीं विपक्षी दल हर चुनाव हारते जा रहे हैं.
2014 के बाद बौलीवुड दो खेमों में बंट चुका है. एक खेमा वह है जो कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ या ‘द साबरमती रिपोर्ट’ जैसी सरकार परस्त व धर्म बेचने वाली प्रपोगंडा सिनेमा बना रहा है, जिसे सरकारी मशीनरी से भरपूर मदद मिल रही है तो दूसरी तरफ वह खेमा है जो कि पैरासइट्स / परजीवियों की सलाह पर काम करते हुए घटिया फिल्में बनाने के साथ ही फिल्म के प्रमोशन के लिए जनता व पत्रकारों से दूर हो कर कुछ शहरों के कालेज ग्राउंड या माल्स में जा कर भाड़े की भीड़ बुला कर अपनी फिल्म के सुपरडुपर हो जाने के दावे करते रहते हैं. पर फिल्म बौक्स औफिस पर धराशाही हो जाती है.
वास्तव में जब से बौलीवुड के दिग्गजों ने अपनी कार्यशैली बदली है तब से उन का आम दर्शकों से संबंध विच्छेद हो गया है और अब इन्हें जनता की नब्ज की पहचान नहीं रही कि जनता किस तरह का सिनेमा देखना चाहती है.
ठीक यही हालत राजनीतिक जगत में है. राजनीति में सत्तापक्षा के पास धन बल के साथ ही धर्म भीरू जनता है. सत्ता पक्ष हिंदू धर्म को बचाने व राष्ट्र को मजबूत बनाने के नाम पर आम जनता को मूर्ख बनाते हुए चुनाव दर चुनाव अपनी विजय पताका फहराता जा रहा है. दूसरी तरफ विपक्ष में बैठे पुराने नेता अपनेअपने दलों के मठाधीशों व पैरासाइट्स / परजीवियों की गलत राय पर चलते हुए चुनाव दर चुनाव पराजय का मुंह देखते जा रहे हैं.
अब जब हम इसी तर्ज पर इस बार के महाराष्ट्र चुनाव की जांच पड़ताल करते हैं तो यह बात साफ तौर पर उभर कर आती है कि आम जनता ने इन्हें नहीं हराया बल्कि इन्हें इन के परजीवियों और खुद को खुदा मानने वालों ने ही हराया है. अन्यथा महज ठाणे क्षेत्र की दो तीन सीटों पर प्रभुत्व रखने वाले एकनाथ शिंदे की पार्टी कैसे 57 सीटें जीत गई. अथवा शरद पवार के गढ़ को महज 5 माह पहले संपन्न लोकसभा चुनावों न भेद पाने वाले अजीत पवार ने इस बार कैसे नेस्तानाबूद कर 41 सीट जीत लीं.
इस बार महाराष्ट्र में अमित शाह से ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी सभाओं में खाली पड़ी कुर्सियों को देख कर विपक्षी दल और विपक्षी दलों का समर्थन करने वाले पत्रकार गदगद होते रहे और दावा करते रहे कि इस बार भाजपा समर्थित ‘महायुति’ का विस्तार गोल हो जाएगा. मगर विपक्षी दल के नेता और यह पत्रकार इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे थे कि इस बार भाजपा और आरएसएस असली खेल क्या कर रही है.
इस बार महायुति ने चुनावी सभाओं में भाड़े की भीड़ बुलाने पर पैसा खर्च नहीं किए, जबकि विपक्षी पार्टीयां चुनावी सभाओं में भीड़ बुलाने पर ही ध्यान केंद्रित रखा. आम जनता से सीधा संपर्क बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. वहीं भाजपा और आरएसएस हर दरवाजा खटखटाते रहे. सब से पहले आरएसएस व भाजपा के कार्यकर्ता घरघर जा कर दो पन्नों का हिंदी व मराठी भाषा में छपे पम्पलेट बांटे, जिस का शीर्षक है- मतादाताओं से विनम्र अपील’. इस में राष्ट्र निर्माण, देश की आंतरिक सुरक्षा, विकास वगैरह को ध्यान में रख कर वोट देने की बात लिखी है.
आरएसएस के कार्यकर्ता यह पम्पलेंट देने के साथ ही हर घर के सदस्य से कम से कम 5 मिनट तक बात कर उन्हें भाजपा व महायुति के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करने का काम किया. इस के बाद उम्मीदवार की तरफ से हर घर अपनी व अपने नेता की तस्वीर सहित पोस्टर भिजवाने गए. फिर सभी के पास वोटर पर्ची भिजवाई जिस में उम्मीदवार की तस्वीर के साथ ही मतदान केंद्र पर ले कर जाने वाली जानकारी अंकित थी. जबकि चुनाव आयोग की तरफ से हर वोट के पास जानकारी भेजी जा चुकी थी.
उम्मीदवार ने सड़क पर रैली निकालने के साथ ही हर इमारत / सोसायटी के गेट पर रूक कर लोगों से बात की, कुछ सोसायटी के सदस्यों ने गेट पर उस उम्मीदवार की आरती भी उतारी. मतदान से एक दिन पहले 19 नवंबर को आरएसएस के कार्यकर्ता घरघर जा कर सभी से वोट डालने का निवेदन किया. मतदान वाले दिन आरएसएस कार्यकर्ता सुबह 9 बजे और फिर दोपहर 2 बजे घरघर पहुंच कर पूछा कि वोट दिया या नहीं और जिस ने उस वक्त तक नहीं दिया था, उस से कहा कि आप हमारे साथ चले और अपने हक का उपयोग करें.
आरएसएस कार्यकर्ता सिर्फ भाजपा उम्मीदवार ही नहीं बल्कि एकनाथ शिंदे और अजीत पवार के दल के उम्मीदवार के क्षेत्र में भी इसी तरह सक्रिय रहे. इसी के साथ शहरी क्षेत्रों में कुछ भाजपा उम्मीदवारों ने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर चुके लड़केलड़कियों को अपना पीआरओ बना कर घरघर भेजा. मजेदार बात यह है कि इन में से कई तो महज 228 या 500 वोट से जीत गए.
इस के विपरीत कांग्रेस, शिवसेना उद्धव गुट और एनसीपी शरद पवार गुट के उम्मीदवार तो सिर्फ अपने बडे़ नेताओं की रैली में जुट रही भीड़ के बल पर जीत जाने के भ्रम में बैठे रहे. यह सभी पैरासाइट्स / परजीवी ही कहे जाएंगे. इतना ही नहीं महाविकास अघाड़ी के नगर सेवक वगैरह भी अपनेअपने औफिसों को शोभायमान करते रहे. इन सभी में अहम ही नजर आता है.
बतौर उदाहरण हम ‘ओवला माजीवाड़ा’ विधान सभा क्षेत्र की बात कर लें. यहां से महयुति की तरफ से एकनाथ शिंदे के शिवसेना गुट के उम्मीदवार प्रताप बाबू राव सरनाइक थे. जिन की टक्कर उद्धव ठाकरे की शिवसेना के उम्मीदवार नरेश मणेरा से थी. मतदान से पहले तक इस क्षेत्र की जनता को पता ही नहीं था कि नरेश मणेरा उम्मीदवार हैं. नरेश मणेरा तो छोड़िए, उद्धव ठाकरे गुट की नगरसेवक तक ने कोई प्रचार नहीं किया. इसी चुनाव क्षेत्र में एक कालोनी है, जहां 40 इमारतें / सोसायटी हैं. इसी कालेनी के अंदर भाजपा और शिवसेना, उद्धव ठाकरे गुट की नगर सेविका का औफिस हैं. भाजपा कार्यालय दिनभर खुला रहता, चहल पहल बनी रहती थी. जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना का औफिस दोपहर 11 से एक बजे तक और शाम को 6 से 8 बजे तक खुलता, नगरसेविका आ कर बैठती थी. औफिस से बाहर वह खड़ी कभी नजर नहीं आई.
उन्होने इस कालोनी की 40 सोसायटी वालों से भी बात कर शिवसेना, उद्धव गुट के उम्मीदवार को जिताने की बात नहीं की. उम्मीदवार नरेश मणेरा खुद भी किसी से नहीं मिले और न ही तो घर घर वोटर पर्ची ही भिजवाई. ऐसे में आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि आप चुनाव जीत जाएंगे और अब आप दूसरों पर दोष मढ़ रहे हैं. यदि आप वोटरों के बीच नहीं जाएंगे तो आप वोटर की नब्ज कैसे पहचान सकते हैं. अब वह वक्त गया जब बाला साहेब ठाकरे के नाम पर आप घर बैठे चुनाव जीत सकते थे.
इस चुनाव क्षेत्र में प्रताप सरनाइक को 184178 वोट मिले, जबकि नरेश को महज 76020 वोट मिले. यानी कि प्रताप सरनाइक ने 108158 वोटो से जीत हासिल की. यह महज एक उदाहरण है, मगर इस चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी, शरद पवार की पार्टी और उद्धव ठाकरे की पार्टी के कार्यकर्ता, नगर सेवक आदि इसी तरह से सिर्फ बड़ी रैलियों में नजर आने के अलावा कहीं नजर नहीं आए.
माना कि इन दलों के पास भाजपा की तरह धन बल की कमी है, पर इन के उम्मीदवार, इन के कार्यकर्ता अपने घर से निकल कर आम जनता तक शारीरिक रूप से तो पहुंच कर अपनी बात कह सकते थे. पर ऐसा करना इन लोगों ने अपनी शान के विपरीत समझा. यही वजह है कि अब तक शिवसेना, उद्धव गुट का गढ़ रहा मुंबई की सीटें भी उद्धव ठाकरे नहीं बचा पाए.
क्या रहा स्ट्राइक रेट
अब पहले चुनाव परिणामों के नतीजों का विश्लेषण कर लिया जाए. भाजपा ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा और 132 पर जीत हासिल की, यानी कि भाजपा का स्ट्राइक रेट 89 प्रतिशत रहा. जबकि शिंदे गुट की शिवसेना ने 81 सीटों पर चुनाव लड़ कर 57 पर जीत हासिल की तो इन का स्ट्राइक रेट 70 प्रतिशत रहा, एनसीपी अजीत पवार गुट ने 59 सीटों पर चुनाव लड़ कर 41 सीटें जीत लीं. इन का स्ट्राइक रेट 69 प्रतिशत रहा. कांग्रेस 100 सीटों पर लड़ कर महज 16 सीटें जीती, इन का स्ट्राइक रेट रहा 16 प्रतिशत, शिवसेना, उद्धव ठाकरे गुट 94 सीटों पर लड़ कर 20 सीटें जीती, स्ट्राइक रेट रहा 21.3 प्रतिशत, शरद पवार की एनसीपी 86 सीटों पर लड़ कर केवल 10 पर जीत हासिल की, स्ट्राइक रेट रहा 11.6 प्रतिशत.
शिवसेना, उद्धव गुट ने इसे बेइमानी की जीत व ईमानदारी की हार की संज्ञा दी है. संजय राउत ने ‘सामना’ में लिखा है, ‘‘ महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं. मगर यह जनमत यानी कि जनादेश नहीं है. महायुति को 230 सीटें मिल सकती हैं, इस पर कौन यकीन करेगा. यह नतीजा विचलित करने वाला है. सरकार के खिलाफ प्रचंड आक्रोश फिर भी इतनी सीटें. कैसे?
महाराष्ट्र की धरती पर बंटेंगे तो कटेंगे जैसे जहरीले प्रचार अभियान के तीर चलाए गए, पर चुनाव अयोग ने कोई आपत्ति नहीं उठाई. अब गर पैसे के बल पर चुनाव जीतना है तो फिर लोकतंत्र को ताला ही जड़ देना होगा और यहां पर केवल अडाणी की पार्टी ही चुनाव लड़ सकेगी.’..वगैरह..वगैरह’.
संजय राउत ने जो कुछ सामना में लिखा है, उस के पीछे उन की अपनी बौखलाहट है, क्योंकि अब उन्हें अहसास हो गया है कि अगली बार वह राज्य सभा नहीं पहुंच पाएंगे. अगर उद्धव ठाकरे अपने दल की हार पर गंभीरता से विचार करें, तो उन्हें पता चलेगा कि इस हार के लिए असली दोषी संजय राउत और उन का बड़बोलापन ही है.
चुनाव के वक्त टिकट बंटवारे को ले कर ‘महायुति’ में भी मतभेद रहे होंगे, मगर वह मतभेद बाहर नहीं आए. जबकि महाविकास अघाड़़ी के यहां टिकट बंटवारे के मतभेद बहुत बड़ा मुद्दा बन कर आम लोगों के सामने आता रहा और यह काम संजय राउत ही कर रहे थे हर मीटिंग के बाद संजय राउत बाहर आ कर बेवजह की बयान बाजी करने के साथ ही मुख्यमंत्री शिवसेना, उद्धव गुट का ही होना चाहिए कि रट लगाते रहे. इस तरह देखा जाए तो उद्धव ठाकरे के लिए संजय रउत ने दुष्मन का ही काम किया, पर उद्धव ठाकरे सच को कब समझ पाएंगे पता नहीं.
इस के अलावा चुनावों के दौरान उद्धव ठाकरे के कुछ बयानों का मतलब यह निकाला गया कि वह भाजपा के साथ जा सकते हैं. मगर उद्धव ठाकरे या संजय राउत की तरफ से इस को ले कर स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. इस का खामियाजा भी उद्धव ठाकरे की पार्टी को झेलना पड़ा. इतना ही नहीं बाल ठाकरे की आवाज में एक जोश हुआ करता था, उन के भाषण सुन कर लोग उन की तरफ खिंचते थे. मगर उद्धव ठाकरे या आदित्य ठाकरे की आवाज में वह बात नहीं है. संजय राउत बयानबाजी करने में माहिर हैं, पर वह कुछ ज्यादा ही बड़बोले है, जिस का नुकसान पार्टी को हो रहा है. इस के अलावा जब तक बाल ठाकरे जिंदा रहे, तब तक उद्धव ठाकरे ने पार्टी की राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय भूमिका नहीं निभाई.
150 चुनाव याचिकाएं होगी दाखिलः जीते हुए विधायक देंगें इस्तीफा ?
चुनाव में बुरी तरह से हारने के बाद कांग्रेस, शरद पवार और उद्धव ठाकरे गुट ने जम कर चुनाव आयोग पर वार किया है और इन का आरोप है कि ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी की गई. इसी के चलते इन दलों ने योजना बनाई है कि इन के 150 उम्मीदवार प्रति बूथ 47 हजार रूपए भर कर चुनाव आयोग से वीवीपैट की मिलान कराने के लिए कहेंगे. तो वहीं इस पर विचार किया जा रहा है कि सभी विधायक इस्तीफा दें, इस पर कितना अमल होगा, यह कहना मुश्किल है पर यदि ऐसा हुआ तो चुनाव आयोग पर दबाव जरुर बनेगा.
वायनाड और झारखंड की बजाय महाराष्ट्र पर रहा भाजपा का सारा जोर
महाराष्ट्र में आम राय यही बन रही है कि केंद्र सरकार और भाजपा की सरकारी मशीनरी ने वायनाड और झारखंड की बजाय सारा खेल महाराष्ट्र में किया जिस के पीछे कई वजहें हैं. आरोप लगाए जा रहे हैं कि गुजरात से कंटेनर में भर कर 3400 करोड़़ रूपए महाराष्ट्र ला कर चुनाव में बांटे गए. भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े को मतदान से दो दिन पहले 5 करोड़ रूपए नगद के साथ पकड़ा गया. कहा जा रहा है कि भाजपा ने इस नीति पर काम किया कि ‘झारखंड ले लो और महाराष्ट्र दे दो’.
अब यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी के अंदर मौजूद कुछ जयचंद तो भाजपा के इशारे पर काम करते हुए कांग्रेस को हराने में अहम भूमिका निभाई. भाजपा के लिए महाराष्ट्र महत्वपूर्ण क्यों है. पहली बात तो इस वक्त 2 लाख करोड़ का धारावी प्रोजेक्ट अहम है. धारावी के रिडेवलपमेंट का कमा अडाणी को दिया गया है और चुनावी सभा में उद्धव ऐलान करते रहे हैं कि चनाव जीतने के बाद उन की सरकार अडाणी से धारावी का प्रोजेक्ट छीन लेगी. अब भला अडाणी दो लाख करोड़ के प्रोजेक्ट को जाने से देने के लिए धन बल सहित हर तरह की मदद भाजपा की की होगी, ऐसे आरोप लग रहे हैं.
इस के अलावा भी महाराष्ट्र में अडाणी के कई प्रोजेक्ट लंबित हैं. दूसरी बात यह है कि भाजपा कुछ समय से देश की आर्थिक राजधानी को मुंबई से अहमदाबाद, गुजरात ले जाने के लिए भी प्रयासरत है. 2014 के बाद कई बड़े प्रोजेक्ट व कई बड़े उद्योगपति महाराष्ट्र से गुजरात पहुंच चुके हैं.
लाड़ली बहना योजना
आज विपक्ष इस बात पर चिल्ला रहा है कि एकनाथ शिंदे की सरकार की 1500 रूपए देने की ‘लाड़की बहना योजना’ ने महायुति को जिता दिया. पहली बात तो हमें इस योजना के चलते दो तीन प्रतिशत से ज्यादा वोटों में फर्क पड़ना नजर नहीं आता. पर अहम सवाल यह है कि इस का फायदा विपक्ष को क्यों नहीं मिला? जबकि उद्धव ठाकरे, शरद पवार आदि ने अपनी चुनावी सभाओं में घोषणा की थी कि वह ‘लाड़ली बहना योजना’ के तहत चुनाव जीतने पर 1500 की बजाय 3 हजार रूपए देंगे, पर महिलाओं ने इन की बातों पर यकीन क्यों नहीं किया. इस की वजह जमीनी सतह पर काम न करना.
जब जुलाई माह में एकनाथ शिंदे की भाजपा समर्थित सरकार ने ‘लाड़ली बहना योजना’ के तहत हर महिला को 1500 रूपए देने की घोषणा की थी और कहा था कि पहली किश्त रक्षा बंधन के अवसर पर दी जाएगी, तो भाजपा, अजीत पवार व शिंदे की पार्टी के कार्यकर्ता औनलाइन फार्म भरने में औरतों की मदद कर रहे थे. पर उद्धव गुट, शरद पवार गुट और कांग्रेस के लोगों ने इस से दूरी बना कर रखी हुई थी. जबकि उस वक्त इन्हें पता था कि यह तो चुनावी छुनछुना है.
ऐसे में इन्हे भी आगे बढ़ कर महिलाओ के फार्म भरने में मदद करनी चाहिए थी. हमें पता है कि उद्धव ठाकरे व कांग्रेस के कार्यकर्ताओं व नगर सेवकों के पास जब महिलाएं गई कि उन का फार्म भरवा दें, तो इन लोगों ने मदद नहीं की, बल्कि यह कह कर चलता कर दिया कि भाजपा के कार्यायल में जाएं. जबकि फार्म तो इंटरनेट पर भरने थे. अगर शिवसेना, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी अपने क्षेत्र के मतदाता महिलाओं के फार्म भरवाए होते तो उन्हें भी रकम मिलती और अब यकीन करते कि कांग्रेस व उद्धव की सरकार आने पर उन्हें 1500 से बढ़ा कर 3 हजार मिलेंगें पर ऐसा नहीं हुआ.
‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का सही जवाब देने में विपक्ष रहा असफल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने नारा दिया था कि ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जिस से वह समाज में हिंदू मतों का धुरीकरण कर सके, जिस में वह सफल रहे. इस के जवाब में कांग्रेस ने कहा, ‘एक हैं तो सेफ हैं.’’ पर योगी आदित्यनाथ के नारे के जवाब में विपक्ष मतदाताओं को समझाने में असफल रहा कि ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ की बात करने वाले ही किस तरह समाज को बांटने का काम कर रहे हैं.
प्रचार में आक्रामता का अभाव
इस के अलावा विपक्षी पार्टियां आम मतदाता, किसानों की समस्याओ को सही ढंग से उठाने में विफल रहीं. यह लोग महंगाई के मुद्दे पर खामोश ही रहे. कांग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान आक्रामक नहीं रही. आखिर संविधान की दुहाई देने और खुद को ‘राष्ट्र प्रहरी’ बताने वाली कांग्रेंस ने कैसे धर्म की अफीम चटाने वालों का सच जनता तक नहीं पहुंचा पाई, इस पर गहन विचार करने की जरुरत है.
वास्तव में कांग्रेस के अंदर ही बैठे नाना पटोले व वेणुगोपाल जैसे ही जय चंद हैं. यह तो सिर्फ मुख्यमंत्री बनने के लिए ताल ठोकते रहे, पर वोटरों को कांग्रेस के पक्ष में लाने की दिशा में कोई काम नहीं किया. सब कुछ राहुल गांधी के भरोसे रहे. उद्धव ठाकरे की सब से बड़ी गलती यह रही कि इस चुनाव के दैारान वह खुद चेहरा नहीं बने. उन की पार्टी के तमाम उम्मीदवारों के पोस्टरों में उद्धव व बाल ठाकरे का चेहरा प्रमुख नहीं रहा. इन्हें एकनाथ शिंदे से कुछ तो सीखना चाहिए. रिजल्ट आने के बाद दूसरे दिन विजयी बनाने के लिए मतदाताओं को धन्यवाद देने के विज्ञापन में एकनाथ शिंदे ने खुद को केंद्र में रखा. अपने अगलबगल में अजीत पवार व देवेंद्र फड़नवीस की छोटी तस्वीर रखी और बाला साहेब ठाकरे तथा मोदी की तस्वीर को उपर बड़े आकार में दिया. इस तरह उन्होने मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दावेदारी भी ठोक दी.
ज्योतिषी की भविष्यवाणी भी कांग्रेस को रही डुबा
कांग्रेस को डुबाने में एक मशहूर ज्येातिषी की भी अहम भूमिका की तरफ कुछ लोग इशारा कर रहे हैं. इन दिनों एक यूट्यूब चैनल पर हर रविवार कांग्रेस व राहुल गांधी के ग्रहों की बात कर उन्हें 2024 के हर चुनाव में प्रचंड जीत हासिल होने व मोदी के बुरे वक्त की भविष्यवाणी करते रहे हैं.
लोकसभा चुनाव से ले कर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा के चुनावों में भी उन्होंने कांग्रेस के ही विजय होने की बात कही थी. पर उन की भविष्यवाणियां गलत निकली, तो सफाई में कह दिया कि फलां ग्रह की वजह से ईवीएम का खेल हो गया. महाराष्ट्र व झारखंड चुनाव से पहले भी इस ज्येतिषी ने कांग्रेस गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिलाया था. अब फिर वह ईवीएम पर सारा दोष मढ़ेगें. कांग्रेस, शरद पवार व उद्धव ठाकरे को कम से कम ऐसे ज्योतिषियों के मायाजाल में फंसने से बचना चाहिए.
शरद पवार, प्रियंका चतुर्वेदी और संजय राउत के लिए राज्यसभा का रास्ता बंद
अब जो महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के परिणाम आए हैं, उन के चलते अब शरद पवार, प्रियंका चतुर्वेदी और संजय राउत के लिए राज्यसभा की राह पकड़ना मुश्किल हो गया. शरद पवार व प्रियंका चतुर्वेदी का राज्यसभा का कार्यकाल 3 अप्रैल 2026 के तथा संजय राउत का कार्यकाल 1 जलुाई 2028 को खत्म होगा. पर अब विधान सभा में ‘महायुति’ के पास इतनी ताकत नहीं रही कि वह इन्हें राज्यसभा में भेज सके.
बौक्स आयटम
कहीं 75 तो कहीं 377 वोटों से हुई जीत
बुलढाणा विधानसभा सीट पर एकनाथ शिंदे की शिवसेना के गायकवाड संजय रामभाऊ ने महज 841 वोटों से शिवसेना (यूबीटी) की महिला प्रत्याशी जयश्री सुनील शेलके को हराया.
मलेगांव सेंट्रल में ओवैसी की पार्टी औल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रत्याशी मुफ्ती मोहम्मद इस्माइल अब्दुल खलीके ने इंडियन सेकुलर लार्जेस्ट असंबेली औफ महाराष्ट्र के प्रत्याशी आसिफ शेख रशीद को 75 वोटों से हराया.
औरंगाबाद पूर्व से भाजपा प्रत्याशी अतुल मोरेश्वर सेव ने सिर्फ 2161 वोटों से चुनाव जीता.
बेलापुर सीट पर भाजपा की मंदा विजय म्हात्रे ने शरद पवार की पार्टी के प्रत्याशी संदीप गणेश नाईक को 377 वोटों से हराया.
करवी विधानसभा सीट पर शिवसेना के चंद्रदीप शशिकांत सिर्फ 1976 वोटों से विधायक बने.
शाहपुर से एनसीपी के दौलत भीका दरोदा ने 1672 वोटों से जीते
अंबेगांव से दिलीप दत्तात्रेय पाटिल ने 1523 मतों से जीत हासिल की.
जोगेश्वरी पूर्व, मुंबई से शिवसेना (यूबीटी) के अनंत ने 1541 वोटों से जीत हासिल की.
वर्सोवा से हारून खान ने 1600 से जीत पक्की की.
माहिम, मुंबई से महेश बलिराम सावंत 1316 मतों से सीट अपने कब्जे में की.
नवापुर से कांग्रेस प्रत्याशी शिरीश कुमार नाईक ने 1121 सीट हासिल की.
अकोला पूर्व, मुंबई से साजिद खान 1283 वोटों से जीते.
कर्जत जामखेड से एनसीपी (एसपी) के रोहित पवार 1243 मतों से जीते.
10 सीटों पर 5 हजार से कम अंतर से जीता महाविकास अघाड़ी.
भाजपा ने 9 सीटों पर 5 हजार मतों से कम के अंतर से चुनाव जीता
शिवसेना, शिंदे गुट की 6 और अजित पवार की एनसीपी ने 4 सीटों पर 5 हजार से कम मतों से जीत हासिल की.
एक लाख से अधिक मतों से जीतने वाले प्रत्याशी
शिरपुर से भाजपा के आशीराम वेचन पवारा ने 1,45,944 मतों से चुनाव जीता.
बागलान से भाजपा के दिलीप मंगलू बोरसे ने 1,29,297 मतों से चुनाव जीता.
चिंचवाड़ सीट से भाजपा के जगताप शंकर पांडुरंग 103865 मतों से जीते.
बोरीवली, मुंबई से भाजपा के संजय उपाध्याय 1,00,257 मतों से जीते.
कोथरुड से भाजपा के चंद्रकांत पाटिल ने 1,12,041 मतों से जीत दर्ज की.
सतारा से भाजपा के शिवेन्द्रराजे अभयसिंहराजे भोंसले ने 1,42,124 मतों से चुनाव जीता.
मालेगांव आउटर से शिवसेना प्रत्याशी दादाजी दगडू भूसे ने 1,06,606 मतों से जीत दर्ज की.
ओवाला माजीवाड़ा से शिवसेना के प्रताप बाबूराव सरनाईक 1,08,158 मतों से जीते.
कोपरी – पचपाखड़ी से सीएम एकनाथ शिंदे ने 1,20,717 मतों से चुनाव जीता.
बारामती से अजित पवार ने 1,00,899 मतों से जीत दर्ज की.
मावल से एनसीपी के सुनील शंकरराव शेलके ने 1,08,565 मतों से जीत दर्ज की.
कोपरगांव से एनसीपी के आशुतोष अशोकराव काले 124624 मतों से जीते.
पर्ली से एनसीपी के धनंजय मुंडे 140224 मतों से जीते.