पार्वती बागरे भोपाल के नजदीक रायसेन जिले के उदयपुरा के सरकारी कालेज में अतिथि विद्वान के पद पर कार्यरत हैं. बीती 11 फरवरी को पार्वती जब भोपाल के नीलम पार्क में मुंडन कराने बैठीं तो उनके लंबे घने और काले बालों पर उस्तरा चलते देख प्रदेश भर से आए कई अतिथि विद्वानों ने घबराकर आंखे बंद कर लीं थीं. कुछ सहेलियों सहित खुद पार्वती की आंखों से भी झर झर आंसू गिर रहे थे. मुंडन कर रहा हज्जाम बाल उनके सामने बिछाता जा रहा था. दृश्य वाकई वितृष्णा वाला था. इन अतिथि विद्वानों को सुकून देती इकलौती बात यह उम्मीद थी कि शायद इस महिला मुंडन से भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह घबराकर उनकी मांगे मान लें.
ये अतिथि विद्वान सरकार से ज्यादा कुछ नहीं बस इतना चाहते हैं कि उन्हें नौकरी में नियमित कर दिया जाये. इस बाबत उनकी खोखली दलील यह है कि वे लंबे समय से कालेजों में संविदा पर पढ़ा रहे हैं, इसलिए नियमित होना उनका हक है. इन लोगों को असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर सरकार द्वारा पीएससी के जरिये भर्ती करने पर भी एतराज है. गौरतलब है कि कुछ दिन पहले भोपाल में ही कुछ महिला अध्यापकों ने इसी तरह सार्वजनिक रूप से मुंडन करवाया था तो सरकार ने उनकी मांगे मान लीं थीं.
चूंकि तब महिलाओं द्वारा करवाया गया वह पहला मुंडन था इसलिए उस पर खूब बवाल मचा था और हमदर्दी भी उन्हीं के हिस्से में आई थी, लेकिन सूबे में जिस तेजी से अपनी जायज और नाजायज मांगें मनवाने कर्मचारी मुंडन करवा रहे हैं उससे लगता है मुंडन अब विरोध का नहीं बल्कि ब्लेकमेलिंग का हथियार बनता जा रहा है. महिलाएं अगर मुंडन कराएं तो चर्चा कुदरती तौर पर ज्यादा होती है क्योंकि आमतौर पर औरतें मुंडन नहीं करातीं. अब हो यह रहा है कि अपनी मांगों का पुलिंदा लेकर राज्य भर के मुलाजिम भोपाल आते हैं और मुंडन कराने बैठ जाते हैं. पुरुष कर्मचारियों के मुंडन पर सरकार ने ध्यान देना बंद कर दिया तो महिला कर्मचारियों ने बाल मुड़ाना शुरू कर दिया.
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