कंगना कंट्रोवर्सी का इस्तेमाल कर के, बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा, की तर्ज सोशल मीडिया की चर्चाओं में छाई रहती हैं. क्योंकि भाजपा पूरी सोशल मीडिया की देन है, राजनीति में एंट्री लेने और हिमांचल के मंडी से सांसद बनने का मौका भी उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल होने पर मिला था. यही कारण है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर बनी फिल्म ‘एमरजैंसी’ के प्रचार के दौरान उन के सामाजिक और राजनीतिक बयान फिर से विवादों में घिर गए हैं जो उन्होंने न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट पर जाजा कर दिए हैं.
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एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “सभी ने देखा जहां प्रदर्शन हुआ वहां क्या हुआ, प्रदर्शन के नाम पर हिंसा फैलाई गई. जहां किसान आंदोलन हुए, वहां रेप हुए, लोगों को मार कर लटकाया जा रहा था. पूरा देश चौंक गया. वो किसान आज भी वहां हैं, लौटे नहीं. उन्होंने वापस जाने का कभी सोचा ही नहीं. वे लंबी प्लानिंग से आए जैसी बांग्लादेश में हुई.”
इसी इंटरव्यू में वह आगे कहती हैं, “अमेरिका, चीन जैसी विदेशी ताकतें देश के खिलाफ काम कर रही हैं. फिल्मी लोगों को लगता है कि देश भाड़ में जाए, हमारी दुकान चलती रहेगी. ऐसा नहीं है… देश भाड़ में जाएगा तो आप भी साथ भाड़ में जाएंगे.”
इस बयान के बाद उन्हीं की पार्टी भाजपा ने हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उन से पल्ला झाड़ लिया. पार्टी ने कहा, “पार्टी कंगना के बयान से असहमति व्यक्त करती है और पार्टी के नीतिगत विषयों पर बोलने के लिए कंगना को अनुमति नहीं है.”
मगर कंगना तो कंगना है, वह यहीं तक नहीं रुकीं. एक दूसरे इंटरव्यू में उन्होंने आरक्षण और जातीय जनगणना जैसे गंभीर विषयों पर विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा, “जातिगत जनगणना पर मेरा वही स्टैंड है जो सीएम योगी आदित्यनाथ का है, साथ रहेंगे, नेक रहेंगे, बंटेंगे तो कंटेंगे. जातिगत जनगणना बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए. हमें अपने आसपास के लोगों की जाति की जानकारी नहीं है और ऐसे में जाति का पता लगाने की आवश्यकता क्यों है? आज तक जाति के आंकड़े नहीं जुटाए गए, तो अब क्यों इस प्रक्रिया की जरूरत महसूस की जा रही है?”
जब एंकर ने उन से कहा कि जातीय जनगणना के जुटाए आंकड़ों से सरकार देश कि नीतिगत फैसले तय कर सकेगी तो कंगना ने कहा, “अगर हमें विकसित भारत की तरफ जाना है तो गरीब, महिला और किसानों की ही बात होनी चाहिए. लेकिन अगर हमें देश को जलाना है, नफरत करना है या फिर एकदूसरे से लड़ना है तो जाति जनगणना होनी चाहिए.”
इन बयानों को ले कर तरहतरह की बातें होने लगी हैं. कोई इसे भाजपा का असली एजेंडा बता रहा है तो कोई कंगना का अपनी फिल्म को चर्चाओं में लाने का हथकंडा. यह दोनों बातें अपनी जगह सही हो सकती हैं मगर असली बात है कंगना को व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से लगातार मिल रहगी आधीअधूरी जानकारी. कंगना रानौत का रुझान जैसेजैसे राजनीति की तरफ होता गया है वैसेवैसे वह उन सोशल मीडिया ग्रुप्स व उस से जुड़े लोगों का हिस्सा बनती गई हैं जो सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने का काम करते हैं.
कंगना की बातें सोशल मीडिया ट्रोलर की तरह जान पड़ती हैं. वह ट्रोलर जो हर बात को देशद्रोह, धर्म और राष्ट्रवाद से जोड़ता है. दिसंबर 2020 में बीबीसी ने 88 साल की बुजुर्ग महिला किसान महिंदर कौर का एक वीडियो पोस्ट किया था. महिंदर झुकी हुई कमर के बावजूद झंडा लिए पंजाब के किसानों के साथ मार्च करती नज़र आ रही थीं.
महिंदर कौर की इस तस्वीर के बाद किसान आंदोलन के विरोधी खासकर भाजपाई आईसेल द्वारा सोशल मीडिया पर उन की तुलना शाहीन बाग में प्रदर्शन की अगुवाई करने वाली बिलकीस दादी से भी की जाने लगी थी.
उस वक्त कंगना रनौत ने बिलकीस और महिंदर कौर दोनों की तस्वीरें एक साथ ट्वीट करते हुए तंज कसा था, “हा हा. ये वही दादी हैं, जिन्हें टाइम मैगज़ीन की 100 सब से प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था….और ये 100 रुपए में उपलब्ध हैं.”
सोशल मीडिया पर फेक नैरेटिव गढ़े जाते हैं. कंगना रानावत के बयान उन्ही नैरेटिव से मिलतेजुलते दिखाई देते हैं. जैसे, साल 2021 में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कंगना रनौत ने कहा था कि ‘भारत को साल 1947 में भीख में आजादी मिली थी और देश को असली आजादी साल 2014 में मिली.’
यह ठीक उसी तरह की व्हाट्सऐप जानकारियां हैं जो सोशल मीडिया पर खूब सर्कुलेट होती हैं. ऐसी जानकारियों में पौराणिक परंपराओं का खूब बखान किया जाता है. कभीकभार तो सती प्रथा और दहेज़ प्रथा जैसी परम्पराओं का भी जस्टिफिकेशन मिलता है. इन जानकारियों में कोई तर्क नहीं होता. कोई तथ्य नहीं होते लेकिन यह सीधे और सिंपल होते हैं और प्राइड का एहसास करते हैं तो सोशल मीडिया पर रोज सुबहशाम गुड मोर्निंग गुड नाईट कि तरह पर खूब ठेले जाते हैं.
जाहिर है कंगना को अपनी फिल्म का प्रचार करना है मगर वह इस से सटीक और नपीतुली बात कह भी नहीं सकतीं क्योंकि उन के दिमाग में सोशल मीडिया कि व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की जानकारी भरी पड़ी है.