सालभर पढ़ाई करने के बाद जब बच्चा परीक्षा उत्तीर्ण करता है तो नई कक्षा में पहुंचने का उत्साह और खुशी चरम पर होती है. भविष्य के सुंदर सपने आंखों में तैरते हैं. मगर अफगानिस्तान में 6ठी कक्षा पास करने वालि लड़कियों की आंखों में आंसू हैं. वहां भविष्य के सुंदर सपने नहीं बल्कि डर और अंधकार है. हताशा और अवसाद है क्योंकि अफगानिस्तान का दमनकारी तालिबानी शासन 6ठी कक्षा के बाद लड़कियों को आगे पढ़ने की इजाजत नहीं देता.

काबुल में रहने वाली 13 वर्षीया सेतायेश साहिबजादा अपने भविष्य को ले कर चिंतित है और अपने सपनों को साकार करने के लिए स्कूल नहीं जा पाने के कारण उदास है. साहिबजादा कहती है, ''मैं अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती. मैं टीचर बनना चाहती थी लेकिन अब मैं पढ़ नहीं सकती, स्कूल नहीं जा सकती.''

बहारा रुस्तम (13) काबुल स्थित बीबी रजिया स्कूल में 11 दिसंबर को आखिरी बार स्कूल गई थी. उसे पता है कि उसे अब आगे पढ़ने का अवसर नहीं दिया जाएगा. तालिबान के शासन में वह फिर से कक्षा में कदम नहीं रख पाएगी. उस की सारी सहेलियां छूट जाएंगी. अब वह उन के साथ खेल नहीं पाएगी. उन से अपने सुखदुख नहीं बांट पाएगी.

लड़कियों की पढ़ाई पर रोक

अफगानी लड़कियां तालिबानी शासन, जो शरीयत पर चलता है, के तहत 6ठी कक्षा पास करने के बाद घरों में कैद कर दी जाएंगी. उन की शादी हो जाएगी, फिर वे बच्चे पैदा करेंगी, नौकरों की तरह ताउम्र किसी दूसरे के घर के काम करेंगी, मारीपीटी जाती रहेंगी, फिर एक दिन मर कर जलील जिंदगी से मुक्त हो जाएंगी.

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